नई दिल्ली: दिल्ली में कोरोना और ब्लैक फंगस के हालातों पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार की वैक्सीनेशन नीति पर भी सवाल खड़े किए हैं. सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को वैक्सीनेशन को लेकर भी एक स्पष्ट नीति बनानी होगी क्योंकि मौजूदा नीति में जिन लोगों को वैक्सीनेशन में प्राथमिकता दी जा रही है और सुरक्षित किया जा रहा है, वह उम्रदराज लोग हैं और जो लोग वैक्सीन ना मिलने के चलते आज सुरक्षित हैं ये वो लोग हैं जो युवा हैं और देश का भविष्य है. ऐसे में केंद्र सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है.


कोर्ट ने इसके साथ ही टिप्पणी करते हुए ये भी कहा की केंद्र सरकार के हर फैसले और कदम पर भी सवाल नहीं उठाए जा सकते हैं क्योंकि यह आपदा का वक्त है और सरकार के संसाधन गंगा की तरह बह रहे हैं. कोर्ट ने इस दौरान पेट्रोल की बढ़ती कीमत का जिक्र करते हुए कहा कि यहां यह भी समझना जरूरी है कि केंद्र सरकार का खजाना खाली होता जा रहा है.


वैक्सीनेशन नीति पर टिप्पणी


दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की वैक्सीनेशन नीति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हमको आपकी वैक्सीनेशन पॉलिसी भी समझ में नहीं आ रही है. अगर आपके पास वैक्सीन है ही नहीं तो आपने सबको लगाने का ऐलान कैसे कर दिया? हमको देश के भविष्य को सुरक्षित करना था लेकिन आज की तारीख में हम उनको वैक्सीन उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हैं. इस वक्त हम उन लोगों को वैक्सीन दे रहे हैं जिनकी उम्र 70 साल है. कितने सारे युवा लोगों की इस बीमारी से मौत हो गई. यह युवा ही हमारे देश का भविष्य है.


कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को कोई तो नीति बनानी पड़ेगी, जिससे कि देश के भविष्य को सुरक्षित किया जा सके. जैसा कि दुनिया के कई देशों ने किया है. उदाहरण के तौर पर जैसे इटली ने कहा कि हम इलाज में प्राथमिकता युवाओं को देंगे फिर भले ही उम्रदराज लोगों को अस्पताल में बेड मिले या ना मिले. दिल्ली हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि 80 साल की उम्र के लोग देश को आगे नहीं ले जाएंगे. देश को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी युवा लोगों पर ही है. ऐसे में अगर हमको किसी को सबसे पहले सुरक्षित करना है तो इन युवाओं को ही करना होगा. ऐसे ही हालात रहे और हमने खुद कार्रवाई नहीं की तो भगवान भी हमारी मदद नहीं कर पाएगा.


ब्लैक फंगस के बढ़ रहे मामले


वहीं ब्लैक फंगस के लगातार बढ़ते मामलों और इलाज में इस्तेमाल होने वाले इंजेक्शन की किल्लत के मसले पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि कुछ दिनों पहले केंद्र सरकार ने 2,30,000 वायल की उपलब्धता की बात की थी लेकिन फिलहाल आज की तारीख में वह आंकड़ा सिर्फ कागजी दिख रहा है. इस बीच केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि विदेश से आने वाली ब्लैक फंगस की दवा पर कुछ शर्तों के साथ छूट दी गई है. जिस पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने जो आंकड़े पेश किए हैं उससे अभी तक साफ नहीं हो रहा कि जून महीने में देश के पास ब्लैक फंगस के इलाज में इस्तेमाल होने वाले कितने इंजेक्शन मौजूद होंगे.


इस दौरान केंद्र सरकार के वकील ने कोर्ट को बताया कि अप्रैल महीने में जहां एंफोटरइसिन बी के सिर्फ 62,000 वायल मौजूद थी तो अब उनका प्रोडक्शन बढ़ाकर 3.25 लाख का हो चुका है. इसके लिए 5 नई कंपनियों को लाइसेंस भी दिया गया है. इस तरह से जून महीने में एंफोटरइसिन बी की उपलब्धता 352000 वायल की हो सकती है.
इसी तरह से पोसकॉनजोले का उत्पादन अप्रैल महीने में 10 लाख वायल का था, जिसको बढ़ाकर 67 लाख किया जा चुका है. इसके अलावा विदेशों से 7 लाख इंजेक्शन भारत आ रहे हैं. इसके अलावा कुछ अलग-अलग जरिए से 2,00,000 और इंजेक्शन की व्यवस्था की जा रही है. इसी तरह से और कंपनियों से भी 2,30,000 वायल का इंतजाम किया जा रहा है. कई विदेशी कंपनियों ने भी भारत को यह इंजेक्शन उपलब्ध करवाने का भरोसा दिया है.


इस पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि पिछली सुनवाई के दौरान आपने 2,30,000 वायल की बात कही थी लेकिन आज की तारीख में यह 2,30,000 वायल मिलेंगे या नहीं मिलेंगे इसको लेकर भी कोई स्पष्टता नहीं है. कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा है इसका मतलब साफ है कि आप के द्वारा कोर्ट को दी गई जानकारी पूरी तरह से पुख्ता नहीं है. कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार कोर्ट को जानकारी दे रही है, वह सिर्फ उम्मीद पर आधारित है कि इन कंपनियों से इंजेक्शन मिल जाएंगे लेकिन अगर उन्होंने नहीं दिया तो क्या? कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसे माहौल में आईसीएमआर को गाइडलाइंस जारी करनी चाहिए कि अगर एक इंजेक्शन मौजूद नहीं है तो उसकी जगह किन विकल्पों का इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि इस बीमारी से लोगों की जान जा रही है और अभी तक इसको लेकर कोई स्पष्ट गाइडलाइंस भी नहीं है.


कितने इंजेक्शन की जरूरत?


इस बहस के दौरान ही कोर्ट में मौजूद वरिष्ठ वकील ने कोर्ट को जानकारी दी कि पिछले शुक्रवार को दिल्ली में ब्लैक फंगस के 620 मामले थे और 1 दिन में एक मरीज को 6 इंजेक्शन की जरूरत होती है. इसी हिसाब से जरूरत 3720 इंजेक्शन की थी लेकिन मिले सिर्फ 1920. सोमवार को ब्लैक फंगस के मामलों की संख्या बढ़कर 940 तक पहुंच गई. जरूरत थी 5640 इंजेक्शन की लेकिन मिले सिर्फ 1050. ऐसे में मरीजों का इलाज कैसे होगा? इस बीच दिल्ली सरकार के वकील ने कोर्ट को बताया कि फिलहाल आज की तारीख में दिल्ली में कुल 601 ब्लैक फंगस के मरीज मौजूद है. केंद्र सरकार ने 7260 इंजेक्शन देने की बात कही थी लेकिन फिलहाल 6,060 इंजेक्शन ही मिले हैं.


दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश में कहा कि फिलहाल दिल्ली में ब्लैक फंगस के कुल 792 मामले हैं, जिसमें 601 मामले दिल्ली सरकार के अंतर्गत आने वाले अस्पतालों और निजी अस्पतालों में हैं तो वहीं 191 मामले केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाले अस्पतालों में हैं. फिलहाल केंद्र की नीति के साथ से दिल्ली को एक मरीज के हिसाब से 1230 वायल उपलब्ध करवाए जा रहे हैं. कोर्ट ने कहा कि लेकिन अभी तक की औसत जरूरत के हिसाब से देखा जाए तो एक मरीज को इलाज के लिए दिन भर में 6 वायल की जरूरत पड़ती है.


कोर्ट ने कहा की यह भी जानकारी दी गई है कि इस बीमारी के इलाज के लिए पोसकॉनजोले नाम की दवा का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. हाइकोर्ट ने कहा कि यहां पर विशेषज्ञ, डॉक्टरों और जानकारों से यह समझना भी जरूरी होगा कि क्या अगर एक मरीज को 6 इंजेक्शन की जरूरत है और उसको 2 दिए जाए तो उसका कोई फायदा मिलेगा और अगर सिर्फ दो इंजेक्शन ले जाते हैं तो उसके साथ में कौन सी दवा दी जा सकती है, जिससे की मरीज की सेहत में सुधार हो और यह कैसे तय किया जा रहा है कि किस मरीज को पहले दवा की जरूरत है किसको बाद में? मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार यानी 4 जून को होगी. इस सुनवाई के दौरान आईसीएमआर को भी अपने रिपोर्ट कोर्ट के सामने पेश करनी होगी.


देना होगा जवाब


कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अब आईसीएमआर को इन और इस तरह के और सवालों का जवाब देना होगा और ब्लैक फंगस के इलाज को लेकर साफ तौर पर गाइडलाइंस जारी करनी होंगी. कोर्ट ने कहा कि भले ही केंद्र सरकार अपनी तरफ से कोशिश कर रही हो इस बीमारी की वैक्सीन को उपलब्ध करवाने की लेकिन यह भी एक सच है कि आज की तारीख में देश में ब्लैक फंगस के इलाज में इस्तेमाल होने वाले इंजेक्शन की भारी किल्लत है. कोर्ट ने कहा कि अगर सिर्फ आंकड़ों को ही देखते हैं तो आज की तारीख में देश में ब्लैक फंगस के इलाज में इस्तेमाल होने वाली वैक्सीन की दो तिहाई कमी है.


कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि आज भी देश में कुछ और दवाएं उपलब्ध है ऐसे में अब एक नीति की जरूरत है कि इस मरीज को कौन सी दवा दी जानी है. कोर्ट ने कहा कि केंद्र को इस बारे में भी नीति बनानी होगी कि किस मरीज को प्राथमिकता के आधार पर इंजेक्शन मुहैया कराना है, जिससे कि अगर सबकी नहीं तो कम से कम कुछ जिंदगियों को बचाया जा सके. कोर्ट ने कहा कि ऐसी नीति का निर्धारण करते समय जानकारों और विशेषज्ञों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पहले देश के भविष्य और युवाओं को सुरक्षित किया जा सके.


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