Delhi High Court On Uniform Civil Code: दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार (1 द‍िसंबर) को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की मांग करने वाली याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया. अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस मुद्दे पर सुनवाई कर चुका है और याचिकाएं खारिज कर चुका है. 


हाई कोर्ट ने कहा कि वह विधायिका को कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकता है और सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि कानून बनाना विशेष रूप से विधायिका के दायरे में है. 


कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने कहा, ''सुप्रीम कोर्ट का आदेश स्पष्ट है. हम सुप्रीम कोर्ट के आदेश के दायरे से बाहर नहीं जाएंगे. उन्हें (विधि आयोग को) हमारी जरूरत नहीं है. वे ऐसा करने के लिए संविधान की ओर से गठित एक प्राधिकार हैं. वे ऐसा करेंगे.'' 


'यूसीसी पर मामला पहले से विधि आयोग के पास' 
इसके बाद याचिकाकर्ताओं में से एक वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय और अन्य याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट से अपनी याचिकाएं वापस लेने का फैसला किया. हाई कोर्ट ने कहा कि यह मामला पहले से विधि आयोग के पास है और यदि याचिकाकर्ता चाहें तो वे अपने सुझावों के साथ आयोग से संपर्क कर सकते हैं. 


हाई कोर्ट ने पूर्व में भी कहा था कि यदि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही फैसला कर चुका है तो वह कुछ नहीं कर सकता और मार्च में सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने पहले ही लिंग तटस्थ और धर्म तटस्थ कानून के लिए उपाध्याय की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया था. 


'याचिका प्रथम दृष्टया सुनवाई योग्य नहीं' 
अप्रैल में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा था कि उपाध्याय की याचिका प्रथम दृष्टया सुनवाई योग्य नहीं है और उनसे शीर्ष अदालत के समक्ष उनकी तरफ से  किए गए अनुरोध को प्रस्तुत करने के लिए कहा था. 


'सुप्रीम कोर्ट से 2015 में यूसीसी से जुड़ी एक याचिका ली गई थी वापस' 
 हाई कोर्ट को सूचित किया गया कि मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने लिंग तटस्थ और धर्म तटस्थ कानूनों के संबंध में उपाध्याय की याचिकाओं पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि मामला विधायी क्षेत्र में आता है और 2015 में उन्होंने वहां से यूसीसी के संबंध में एक याचिका वापस ली थी. 


हाई कोर्ट में यूसीसी को लेकर 4 और या‍च‍ि‍काएं दायर 
उपाध्याय की याचिका के अलावा हाई कोर्ट के समक्ष 4 अन्य याचिकाएं भी हैं, जिनमें दलील दी गई है कि भारत को समान नागरिक संहिता की तत्काल आवश्यकता है.


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