(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
'कोई सबूत न होने के बावजूद किया केस का सामना', 2004 के मर्डर केस के आरोपी को बरी करते हुए दिल्ली HC की टिप्पणी
Delhi High Court: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक आरोपी को सबूत न होने के कारण बरी कर दिया है. साल 2004 में एक मर्डर केस में हत्या के सबूत मिटाने के चलते उसे गिरफ्तार किया गया था.
Court News: दिल्ली हाई कोर्ट ने 2004 में हुई हत्या के मामले में एक आरोपी को सबूतों के अभाव में करीब 19 साल बाद सोमवार (19 जून) को बरी कर दिया. इस व्यक्ति पर हत्या के एक मामले में सबूत मिटाने का आरोप लगा था. कोर्ट ने व्यक्ति को बरी करते हुए कहा, "कोई आपत्तिजनक सबूत नहीं होने के बावजूद इस शख्स ने कई सालों तक मुकदमे का सामना किया."
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, हाई कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष को शुरू में उस व्यक्ति के खिलाफ कुछ भी आपत्तिजनक सबूत नहीं मिला और यहां तक कि एफआईआर या प्रारंभिक आरोपपत्र में भी उसका नाम नहीं लिया गया. जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने निचली अदालत के 2011 के फैसले को चुनौती देने वाले विजय बहादुर की अपील को स्वीकार कर लिया. जिसमें उसे आपराधिक साजिश रचने और सबूतों को नष्ट करने के लिए दोषी ठहराया गया था और एक साल जेल की सजा सुनाई गई थी.
मर्डर केस में 19 साल बाद शख्स बरी
कोर्ट ने कहा कि जब अपीलकर्ता और अन्य सह-आरोपी हत्या के मुख्य आरोप से बरी हो गए और निचली कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंची कि अभियोजन पक्ष बहादुर और बाकी लोगों के हत्या के अपराध को स्थापित करने में विफल रहा तो उसे सबूत नष्ट करने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने क्या कुछ कहा?
हाई कोर्ट ने कहा कि विजय बहादुर को सबूत मिटाने के लिए स्वतंत्र रूप से दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि आईपीसी की धारा 302 (हत्या) के तहत मुख्य अपराध किसी भी आरोपी व्यक्ति के खिलाफ साबित नहीं हुआ. इसके अलावा जांच में विसंगति थी और निचली कोर्ट के मौखिक निर्देश पर अपीलकर्ता के खिलाफ पूरक आरोपपत्र दाखिल करने में भी गलती हुई.
कोर्ट ने कहा कि निचली कोर्ट के संबंधित निर्णय से कुछ असामान्य और दिलचस्प तथ्य सामने आए हैं और सबसे स्पष्ट ये है कि अपीलकर्ता के खिलाफ मामले में पूरक आरोपपत्र निचली अदालत के मौखिक निर्देश पर दाखिल किया गया था.
क्या है पूरा मामला?
गौरतलब है कि नवंबर 2004 में एक व्यक्ति ने शिकायत दर्ज कराते हुए आरोप लगाया था कि उसका ड्राइवर अपनी कार के साथ लापता हो गया. कार का इस्तेमाल टूरिज्म के लिए किया जाता था. जांच के दौरान, ड्राइवर का शव मिला और टूर के लिए टैक्सी बुक करने वाले चार लोगों को 2004 में गिरफ्तार किया गया था. बहादुर को पुलिस ने 2006 में गिरफ्तार किया था.
बहादुर को सभी आरोपों से किया बरी
हाई कोर्ट ने रिकॉर्ड पर रखे गए सबूतों पर विचार करने के बाद निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष की ओर से दिए गए सबूत दोषसिद्धि को लेकर एक ठोस आधार स्थापित करने के लिए स्वाभाविक रूप से अपर्याप्त हैं. कोर्ट मानती है कि अपीलकर्ता के खिलाफ कोई आपत्तिजनक सबूत नहीं होने के बावजूद, उसे मात्र एक अनुमान के आधार पर दोषी ठहराया गया है. अपीलकर्ता ने कोई सबूत नहीं होने के बावजूद कई वर्षों तक मुकदमे का सामना किया है. कोर्ट विजय बहादुर को सभी आरोपों से बरी करती है.
ये भी पढ़ें: