नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट का निजी स्कूलों के पक्ष में अहम फैसला आया है. अदालत ने कहा है कि दिल्ली के वह निजी स्कूल जो सरकारी जमीन पर नहीं बने हैं या फिर वो निजी स्कूल जिन्होंने स्कूल बनाने के लिए सरकार से किसी तरह की मदद नहीं ली है, वह बिना सरकार की अनुमति के फीस बढ़ा सकते हैं. लेकिन इसकी जानकारी शिक्षा निदेशालय को देनी होगी.


हालांकि हाईकोर्ट ने भी साफ कर दिया है की डायरेक्टरेट ऑफ एजुकेशन यानी शिक्षा निदेशालय इन स्कूलों के खातों को देखने के बाद यह तय करेगा कि कहीं स्कूल मुनाफाखोरी तो नहीं कर रहे. अगर शिक्षा निदेशालय अपनी जांच में मुनाफाखोरी पाता है तो स्कूलों से फीस बढ़ोतरी वापस लेने को भी कहा जा सकता है.


निजी स्कूल ने दायर की थी हाईकोर्ट में याचिका


दिल्ली हाईकोर्ट में दायर याचिका में एक निजी स्कूल ने डायरेक्टरेट ऑफ एजुकेशन यानी शिक्षा निदेशालय की तरफ से जारी किए गए उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें शिक्षा निदेशालय ने फीस बढ़ोतरी वापस लेने का निर्देश दिया था. दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर स्कूल ने कहा था की वह निजी स्कूल है उनको ना तो किसी तरह से सरकार की कोई मदद मिलती है और ना ही उन्होंने सरकार से सस्ते दर पर जमीन ली है. ऐसे में शिक्षा निदेशालय का आदेश उनके ऊपर लागू नहीं होता, जबकि शिक्षा निदेशालय ने स्कूल को निर्देश देते हुए कहा था कि वह 2016-17 के सत्र के दौरान की गई फीस बढ़ोतरी को वापस ले क्योंकि स्कूल के खाते में पहले से ही अतिरिक्त पैसा जमा है ऐसे में स्कूल को फीस बढ़ोतरी कर और पैसा वसूलने की जरूरत नहीं है.


'शिक्षा का व्यवसायीकरण ना हो' 


दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान शिक्षा निदेशालय ने कोर्ट को बताया कि शिक्षा निदेशालय का काम है कि वह यह देखें और सुनिश्चित करें कि कोई भी स्कूल शिक्षा का व्यवसायीकरण ना करें और साथ ही इस बात पर भी नजर रखे कि स्कूलों के द्वारा मुनाफाखोरी ना हो. इसी को ध्यान में रखते हुए शिक्षा निदेशालय ने निजी स्कूलों को आदेश दिया कि बिना उसकी अनुमति के पीस नहीं बढ़ाई जा सकती. शिक्षा निदेशालय की दलील थी कि कई बार स्कूलों के पास समुचित पैसा होता है उसके बावजूद वह फीस बढ़ोतरी करते हैं जिससे कि अभिभावकों के ऊपर खासा बोझ पड़ता है जिसकी अनुमति नहीं दी जा सकती.


निजी स्कूल बिना अनुमति कर सकते हैं फीस में बढ़ोतरी


याचिका पर फैसला सुनाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने साफ कहा है कि शिक्षा निदेशालय का काम है कि वह सुनिश्चित करें कि शिक्षा का व्यवसायीकरण ना हो और स्कूल मुनाफाखोरी ना करें, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि शिक्षा निदेशालय निजी स्कूलों (वो स्कूल जिनको सरकार से किसी तरह की कोई मदद नहीं मिलती और ना ही सस्ते दर पर जमीन मिली हो) को फीस बढ़ोतरी करने से नहीं रोक सकते हैं. हाईकोर्ट अपने आदेश में साफ तौर पर कहा कि ऐसे निजी स्कूलों को सत्र के शुरुआत में फीस बढ़ोतरी करने से पहले शिक्षा निदेशालय की अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी.


हालांकि हाईकोर्ट ने यह भी साफ किया है कि शिक्षा निदेशालय के पास यह अधिकार होगा कि वह स्कूलों के खातों को देखने के बाद यह तय करें कि क्या स्कूल कहीं शिक्षा का व्यवसायीकरण तो नहीं कर रहे और कहीं मुनाफाखोरी में तो शामिल नहीं है. अगर शिक्षा निदेशालय को ऐसा लगता है तो वह स्कूलों को लिखित तौर पर यह बताएगा कि स्कूल फीस बढ़ोतरी क्यों नहीं कर सकते. लेकिन ऐसा नहीं हो सकता कि बिना किसी वजह के सिर्फ इस वजह से शिक्षा निदेशालय स्कूलों में फीस बढ़ोतरी करने से रोक दें कि स्कूलों के पास सारे खर्चे निकालने के बाद भी खाते में अतिरिक्त पैसा जमा है.


शिक्षा निदेशालय दे सकता है फीस बढ़ोतरी वापस लेने का आदेश


मतलब साफ है कि दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला निजी स्कूलों के पक्ष में एक बड़ा फैसला कहा जा सकता है, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि वह मनमाने ढंग से फीस बढ़ोतरी कर लें. फीस बढ़ोतरी के लिए स्कूलों को ठोस आधार चाहिए होगा. हालांकि शुरुआती तौर पर सरकार से बिना सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को फीस बढ़ोतरी के लिए शिक्षा निदेशालय के अनुमति की जरूरत भले ही ना हो लेकिन अपने खाते शिक्षा निदेशालय के सामने रखने होंगे. अगर शिक्षा निदेशालय को ऐसा लगता है कि स्कूलों ने बेवजह ही फीस बढ़ोतरी की है और इसके जरिए वह शिक्षा का व्यवसायीकरण कर रहे हैं या फिर मुनाफाखोरी में शामिल हैं तो फिर शिक्षा निदेशालय स्कूलों से बढ़ोतरी वापस लेने का आदेश भी दे सकता है.


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