Termination Of Pregnancy: दिल्ली उच्च न्यायालय ने भ्रूण में कुछ असमान्यताओं के कारण 28 सप्ताह के गर्भ को चिकित्सकीय तौर पर समाप्त करने के मामले में एम्स के विशेषज्ञों से सोमवार को राय मांगी है. प्रारंभिक चिकित्सा रिपोर्ट में भ्रूण के जीवित होने का संकेत मिला था और इस स्तर पर गर्भाशय से भ्रूण निकाले जाने के बाद चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता हो सकती है.


न्यायमूर्ति अनु मल्होत्रा चिकित्सकीय तौर पर गर्भपात की अनुमति मांगने वाली 33 वर्षीय महिला की याचिका को सुन रहीं थी. उन्होंने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट के मद्देनजर, सवाल यह नहीं है कि क्या गर्भावस्था को ‘समाप्त’ किया जा सकता है, बल्कि सवाल यह है कि क्या ऐसा किया जाना चाहिए.


याचिकाकर्ता ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम के तहत अपनी गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की अनुमति के लिए अदालत का रुख किया है, जिसमें दावा किया गया है कि भ्रूण हृदय की असमान्यताओं से पीड़ित था और बचने की संभावना बहुत कम थी.


न्यायालय ने मेडिकल बोर्ड के गठन का दिया आदेश


न्यायालय ने 22 दिसंबर को एम्स से महिला के स्वास्थ्य जांच के लिए जल्द से जल्द मेडिकल बोर्ड का गठन करने को कहा था. अदालत ने कहा कि एम्स मेडिकल बोर्ड द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, भ्रूण बचने योग्य था और अगर उसे उचित चिकित्सा देखभाल दी जाये तो उसके बचने की 80 प्रतिशत संभावना थी.


उच्च न्यायालय ने बोर्ड को यह बताने के लिए भी कहा है कि क्या गर्भावस्था जारी रखने पर याचिकाकर्ता को कोई शारीरिक या मानसिक खतरा है. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि यह तय करना मां का अधिकार है कि क्या वह गर्भावस्था को जारी रखना चाहती है या नहीं. उन्होंने दलील दी कि कानून के अनुसार 24 सप्ताह के बाद भी गर्भ को समाप्त किया जा सकता है.


इस पर प्रतिक्रिया देते हुए न्यायाधीश ने कहा, ‘‘कोई नहीं कहता है कि इसे समाप्त नहीं किया जा सकता है. प्रश्न यह है कि क्या इसे किया जाना चाहिए या नहीं. मैं यह नहीं कह रही हूं कि यह नहीं हो सकता.’’


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