Lok Sabha Election 2024: 'ये आखिरी मौका, दाखिल करें जवाब', I.N.D.I.A. नाम के इस्तेमाल पर विपक्षी दलों को दिल्ली हाई कोर्ट की दो टूक
Delhi High Court: दिल्ली हाई कोर्ट के अनुसार, विपक्षी दलों और केंद्र सरकार को एक हफ्ते के भीतर अपना जवाब दाखिल करना होगा. साथ ही कहा है कि याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने का यह आखिरी मौका होगा.
I.N.D.I.A. Alliance Name Issue: दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार (2 अप्रैल) को कांग्रेस, टीएमसी और डीएमके समेत कई विपक्षी दलों को नए गठबंधन के लिए संक्षिप्त नाम 'इंडिया' (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस) के उपयोग के खिलाफ जनहित याचिका पर एक हफ्ते के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का आखिरी मौका दिया.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह की खंडपीठ ने व्यवसायी गिरीश भारद्वाज की जनहित याचिका की सुनवाई को आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया, जिसका उद्देश्य 19 अप्रैल को होने वाले लोकसभा चुनाव के पहले चरण से पहले समाधान करना था.
दिल्ली हाई कोर्ट का सुनवाई की तारीख बढ़ाने से इनकार
गिरीश भारद्वाज ने पिछले साल अगस्त में यह याचिका दायर की थी. हाई कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई की तारीख आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि याचिका पर 10 अप्रैल को सुनवाई करने और इसका निपटारा करने का प्रयास किया जाएगा.
दिल्ली हाई कोर्ट के अनुसार, विपक्षी दलों और केंद्र सरकार को एक हफ्ते के भीतर अपना जवाब दाखिल करना होगा. साथ ही कहा है कि याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने का यह आखिरी मौका होगा.
याचिका में क्या कहा गया?
भारद्वाज ने अपनी जनहित याचिका में कहा था, ''विपक्षी दल अपने स्वार्थी कार्य के लिए 'इंडिया' नाम का उपयोग कर रहे हैं. पार्टियों ने केवल 2024 में लोकसभा चुनावों में अनुचित लाभ लेने के लिए गठबंधन का नाम 'इंडिया' रखा है. यह शांतिपूर्ण, पारदर्शी और निष्पक्ष वोटिंग पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है. प्रतीक और नाम अधिनियम, 1950 की धारा 2 और 3 के तहत 'इंडिया' नाम का उपयोग निषिद्ध है.''
दिल्ली हाई कोर्ट ने 2023 (अगस्त) में 26 विपक्षी दलों और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया था. हालांकि, चुनाव आयोग ने विवाद पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया था.
चुनाव आयोग ने इस मामले पर क्या कहा?
आयोग ने कहा था कि वह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत राजनीतिक गठबंधनों को विनियमित नहीं कर सकता है. चुनाव आयोग ने अपने जवाब में केरल हाई कोर्ट के एक ऐसे ही मामले के निर्णय का हवाला दिया था, जिसमें यह माना गया कि राजनीतिक गठबंधनों के कामकाज को विनियमित करने के लिए संवैधानिक बॉडी (निकाय) को अनिवार्य करने वाला कोई वैधानिक प्रावधान नहीं है.
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