Delhi High Court on Divorce Case: दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक केस की सुनवाई के दौरान कहा कि किसी व्यक्ति को केवल इसलिए तलाक नहीं दिया जा सकता क्योंकि उसे उसकी पत्नी की ओर से दायर क्रूरता के केस में एक आपराधिक अदालत की ओर से बरी कर दिया गया है.
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने कहा कि इस तरह के बरी होने से उस क्रूरता को नहीं मिटाया जा सकता जो उसने अपनी शादी के दौरान किसी अन्य महिला के साथ संबंध बनाकर की थी. सिर्फ इसलिए कि एक आपराधिक अदालत की ओर से बरी कर दिया गया है, अपीलकर्ता (पति) की ओर से प्रतिवादी के साथ अपने विवाह के दौरान एक युवा लड़की के साथ शामिल होने की क्रूरता को दूर नहीं किया जा सकता है. महज एक आपराधिक मामले में बरी हो जाना तलाक देने का आधार नहीं हो सकता.''
अपीलकर्ता को कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक बंधन नाजुक भावनात्मक मानवीय रिश्ते हैं और किसी तीसरे व्यक्ति की भागीदारी के परिणामस्वरूप विश्वास और शांति का पूर्ण पतन हो सकता है. किसी तीसरे व्यक्ति की ओर से किसी भी प्रकार का प्रभाव बंधन को चुपचाप नष्ट कर सकता है, जिससे लंबे समय तक मतभेद पैदा हो सकते हैं.
क्या है पूरा मामला?
इस कपल की शादी साल 1982 में हुई थी और इनके दो बच्चे हैं. साल 1994 में दोनों अलग रहने लगे. इस कपल की ओर से एक-दूसरे पर कई तरह के आरोप लगाए गए. हालांकि, पत्नी ने आरोप लगाया कि पति 1993 से एक बहुत छोटी लड़की के साथ अवैध संबंध में शामिल था. पत्नी ने अपने पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ धारा 498 ए (क्रूरता) और 406 के तहत एफआईआर भी दर्ज कराई थी. जबकि उस व्यक्ति के परिवार के सदस्यों को आरोप तय करने के चरण में ही मामले से बरी कर दिया गया था. पति को भी 2013 में बरी कर दिया गया था. हालांकि अदालत ने तब पति की तलाक याचिका को खारिज कर दिया था. इसके बाद पति पारिवारिक अदालत के उस आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट पहुंचा था.
कोर्ट ने पति के स्पष्टीकरण को कहा बेतुका
पति ने सुनवाई के दौरान अवैध संबंध में शामिल होने के आरोप से इनकार किया लेकिन यह माना कि यह लड़की उसके घर में उसके साथ रहने के लिए आई थी. मामले पर विचार करने के बाद पीठ ने इस स्पष्टीकरण को बेतुका करार दिया.
जिला कोर्ट के फैसले को बताया सही
कोर्ट में कहा गया कि हम यह देख रहे हैं कि 40 वर्षों से अधिक समय साथ रहने के बाद भी दोनों की शादी असफल है, इसके बाद भी तलाक देना गलत कृत्यों को बढ़ावा देना होगा. इसमें कहा गया है कि यह एक ऐसा मामला है जहां हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 23(1)(ए), जो यह प्रावधान करती है कि कोई भी व्यक्ति अपनी गलती का फायदा नहीं उठा सकता है. इसलिए इसने पति की अपील को खारिज कर दिया. अदालत ने कहा कि इस मामले में जिला न्यायाधीश ने सही निष्कर्ष निकाला है कि अपीलकर्ता जो प्रतिवादी के प्रति क्रूरता के कृत्यों के लिए जिम्मेदार है. अपीलकर्ता-पति की ओर से वकील नैना केजरीवाल और शोमा पेश हुए, जबकि प्रतिवादी-पत्नी का प्रतिनिधित्व वकील एस जननी और शारिका राय ने की.
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