Delhi High Court: पति ने कहा- सेक्स नहीं करती है पत्नी, दिल्ली हाईकोर्ट बोला- 'ये मानसिक क्रूरता है', फिर दिया ये आदेश
Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा असली मामला पत्नी और उनकी सास के बीच हुए विवाद का है, अदालत ऐसे मामलों को सुनते हुए पूरी संवेदनशीलता बरतना चाहती है.
Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार (1 नवंबर 2023) को तलाक के एक मामले को सुनते हुए अहम टिप्पणी की. इस मामले में पति अपनी पत्नी से यह कहते हुए तलाक मांग रहा था कि वह उसको घर जमाई बना कर रखना चाहती है और वह उसके साथ शारीरिक संबंध स्थापित करने से मना कर देती है. ऐसे में अदालत ने कहा, 'पति या पत्नी द्वारा अपने साथी के साथ सेक्स करने से मना कर देना मानसिक क्रूरता है'.
हालांकि अदालत ने आगे कहा, जीवनसाथी का शारीरिक संबंध बनाने से इंकार कर देना मानिसक क्रूरता तो है लेकिन इसे क्रूरता तभी माना जा सकता है जहां एक साथी ने लंबे समय तक जानबूझकर ऐसा किया है. इस मामले में ऐसा नहीं है लिहाजा अदालत ने पति के पक्ष में आये निचली अदालत के फैसले को खारिज कर दिया जिसमें उसने दोनों के तलाक को मंजूरी दी थी.
'मामूली विवाद को क्रूरता नहीं करार दे सकते'
अदालत ने कहा, ये बहुत ही संवेदनशील मामले हैं. अदालतों को ऐसे मामलों से निपटने के लिए बहुत सावधानी बरतनी चाहिए. विवाहित जोड़ों के बीच मामूली मनमुटाव और विश्वास की कमी को मानसिक क्रूरता करार नहीं दिया जा सकता है. पति ने पत्नी द्वारा मानसिक क्रूरता के कारण तलाक मांगा और आरोप लगाया कि उसे ससुराल में उसके साथ रहने में कोई दिलचस्पी नहीं थी और वह चाहती थी कि पति उसके साथ उसके मायके में ‘घर जमाई’ के रूप में रहे. दोनों की शादी 1996 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुई और 1998 में दंपति की एक बच्ची हुई.
तलाक नहीं चाहती थी पत्नी
पत्नी की अपील पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यद्यपि यौन संबंध से इनकार करना मानसिक क्रूरता का एक रूप माना जा सकता है, लेकिन जब यह लगातार, जानबूझकर और काफी समय तक हो. पीठ ने कहा कि हालांकि, अदालत को ऐसे संवेदनशील और नाजुक मुद्दे से निपटने में ‘‘अति सावधानी’’ बरतने की जरूरत है.
अदालत ने कहा कि इस तरह के आरोप केवल अस्पष्ट बयानों के आधार पर साबित नहीं किए जा सकते, खासकर तब जब शादी विधिवत संपन्न हुई हो. पीठ ने पाया कि पति अपने ऊपर किसी भी मानसिक क्रूरता को साबित करने में विफल रहा है और वर्तमान मामला ‘वैवाहिक बंधन में केवल सामान्य मनमुटाव का मामला है.’
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