Uniform Marriage Age Plea: दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने मंगलवार (31 जनवरी) को यूनिफॉर्म मैरिज एज की मांग को लेकर दायर एक याचिका को सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) को भेज दिया है. इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता को बताया है कि 13 जनवरी, 2023 को सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न कानूनों में पुरुषों और महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु में एकरूपता (Uniformity) से संबंधित मुख्य कार्यवाही को उसे ट्रांसफर करने की मंजूरी दी है.


इसके साथ ही न्यायमूर्ति सतीश चंदर शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की बेंच ने अपने रजिस्ट्री विभाग को मामले से संबंधित सभी दस्तावेजों को तुरंत सुप्रीम कोर्ट भेजने का निर्देश भी दिया.


अनुच्छेद 226 के तहत दायर की गई


समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक पुरुषों और महिलाओं के लिए विवाह की कानूनी उम्र को बराबर रखने की मांग वाली जनहित याचिका (पीआईएल) बीजेपी नेता एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय (Advocate Ashwini Kumar Upadhyay) ने दायर की थी. इसमें कहा गया है कि शादी के लिए एक लड़की के लिए उम्र की सीमा 18 साल और लड़के के लिए 21 साल रखी गई है ये भेदभाव है.


वादी के तौर पर एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय ने कहा कि यह याचिका जनहित में अनुच्छेद 226 के तहत दायर की गई है और यह महिलाओं के खिलाफ खुलेआम चल रहे भेदभाव को चुनौती देती है.दिल्ली हाईकोर्ट में दायर याचिका में पहले कहा गया था कि मौजूदा वक्त में भारत में पुरुषों को 21 साल की उम्र में और महिलाओं को 18 साल की उम्र में शादी करने की मंजूरी है. इसमें ये भी बताया गया है कि दुनिया के 125 से अधिक देशों में लड़के और लड़की के लिए शादी की समान उम्र है. 


क्या कहा गया है याचिका में?


दरअसल 13 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को अपने पास ट्रांसफर करवा लिया था. याचिका में कहा गया है, "पुरुषों और महिलाओं की शादी के लिए भेदभावपूर्ण 'न्यूनतम आयु' सीमा पितृसत्तात्मक रूढ़ियों पर आधारित है, इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. यह महिलाओं के खिलाफ कानूनी और वास्तविक असमानता को बढ़ावा देती है और पूरी तरह से दुनिया के रुझानों के खिलाफ है."


याचिका में कहा गया है कि डिफरेंशियल बार महिलाओं के खिलाफ भेदभाव करता है और लैंगिक समानता, लैंगिक न्याय और महिलाओं की गरिमा के मौलिक सिद्धांतों का उल्लंघन करता है. ये संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करता है. याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में आगे जोर देकर कहा कि महिलाओं को 18 साल की उम्र में स्कूल खत्म करने के बाद पढ़ाई या कारोबार करने के लिए स्वतंत्र  होने का मौलिक अधिकार है.


इसमें ये भी कहा गया है कि एक सामाजिक हकीकत है कि महिलाओं से शादी के तुरंत बाद बच्चे पैदा करने की अपेक्षा की जाती है और अक्सर दबाव भी डाला जाता है. इसके साथ ही परिवार में उनकी रूढ़िवादी भूमिकाओं के मुताबिक घर के कामों को करने के लिए भी मजबूर किया जाता है. यह उनकी शैक्षिक के साथ-साथ आर्थिक गतिविधियों को भी नुकसान पहुंचाता है और अक्सर उनकी बच्चा पैदा करने की मर्जी पर भी इससे असर पड़ता है. इसमें कहा गया है कि उच्च न्यूनतम आयु "महिलाओं को हर नजरिए से अधिक स्वायत्तता" देगी. 


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