Delhi High Court: साल 2001 में एक न्यूज पोर्टल तहलका डॉट कॉम के एक स्टिंग ने पूरे देश में हड़कंप मचा दिया था. तहलका के स्टिंग में सेना के मेजर जनरल रक्षा सौदों के बदले रिश्वत मांगते दिखागा गया था. जिस शख्स से सैन्य अधिकारी ने रिश्वत की मांग की थी, वो एक अंडरकवर जर्नलिस्ट था, जो डिफेंस कॉन्ट्रैक्टर बनकर मिला था. स्टिंग को लेकर आर्मी अफसर ने न्यूज पोर्टल तहलका के संस्थापक तरुण तेजपाल और इससे जुड़े अन्य पत्रकारों के खिलाफ मानहानि का केस किया था. इस मामले में 22 साल बाद अब हाई कोर्ट का फैसला आया है, जिसमें आर्मी अफसर की जीत हुई है.


दिल्ली हाई कोर्ट ने शनिवार (22 जुलाई) को स्टिंग ऑपरेशन से जुड़े मानहानि के मुकदमे में मेजर जनरल एमएस अहलूवालिया को उनकी प्रतिष्ठा धूमिल करने के बदले में 2 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया. दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, मेजर जनरल एमएस अहलूवालिया को ये रकम तहलका डॉट कॉम, इसकी मालिकाना कंपनी मेसर्स बफेलो कम्युनिकेशंस, इसके मालिक तरुण तेज और रिपोर्टर अनिरुद्ध बहल व मैथ्यू सैम्युअल देंगे.


23 साल बाद माफी का मतलब नहीं- कोर्ट


केस की सुनवाई करने वाली बेंच की अध्यक्षता कर रही जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कहा कि एक ईमानदार सैन्य अधिकारी की प्रतिष्ठा को गंभीर नुकसान पहुंचाने का ये एक स्पष्ट उदाहरण है. उन्होंने कहा, प्रकाशन के 23 साल बाद जारी माफी का कोई मतलब नहीं है.


हालांकि, अदालत ने कहा मामले में वादी जी टेलीफिल्म लिमिटेड और उसके अधिकारियों की ओर से मानहानि के किसी भी कृत्य को साबित करने में विफल रहा, जिन्होंने तहलका के साथ एक करार के बाद इसका प्रसारण किया था.


क्या था मामला?


13 मार्च, 2001 के तहलका ने ऑपरेशन वेस्ट एंड' नाम से डिफेंस डील में कथित भ्रष्टाचार से संबंधित एक स्टिंग ऑपरेशन प्रकाशित किया था. इसके एक हिस्से में मेजर जनरल एमएस अहलूवालिया को भी दिखाया गया था. स्टिंग में अहलूवालिया को डिफेंस डील के बदले में 10 लाख रुपये और महंगी शराब की मांग करते दिखाई दे रहे थे. स्टिंग में ये भी दावा किया गया कि अहलूवालिया ने 50 हजार रुपये पेशगी के तौर पर भी लिया था.


मेजर जनरल ने एमएस अहलूवालिया ने दावा किया रिपोर्टर से बातचीत के वीडियो को एडिट करके इस मामले में पूरी फर्जी कहानी तैयार की गई. 


पैसा वापस आ सकता है, खोई प्रतिष्ठा नहीं


फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने अब्राहम लिंकन का मशहूर कथन उद्धृत करते हुए कहा, सत्य को बदनामी के खिलाफ सबसे अच्छा उपाय है. फिर भी, सत्य में उस प्रतिष्ठा को बहाल करने की क्षमता नहीं है जो व्यक्ति उस समाज की नजरों में खो देता है जो हमेशा निर्णय लेने में तत्पर रहता है.


कोर्ट ने आगे कहा, एक बुरी सच्चाई है कि खोया हुआ धन हमेशा वापस कमाया जा सकता है. किसी की प्रतिष्ठा पर लगा दाग, जो एक बार उसकी आत्मा पर अंकित हो जाता है, नुकसान के अलावा कुछ नहीं देता है, भले ही इसके लिए लाखों मुआवजा दे दिया जाए.


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