'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के तहत सेवाएं अनिवार्य रूप से केंद्र की', दिल्ली हाईकोर्ट ने कही ये बात
Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि एनसीटी दिल्ली के तहत सेवाएं अनिवार्य रूप से संघ की सेवाएं हैं और उन्हें स्पष्ट रूप से संविधान की लिस्ट 70 में शामिल किया गया है.
Delhi High Court: दिल्ली विधानसभा के सचिव पद से एक व्यक्ति की बर्खास्तगी को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) दिल्ली के तहत आने वाली सेवाएं अनिवार्य रूप से केंद्र की सेवाएं हैं.
जस्टिस चंद्र धारी सिंह ने कहा कि दिल्ली में स्पष्ट रूप से कोई राज्य लोक सेवा आयोग नहीं है और उपराज्यपाल की मंजूरी से दिल्ली विधानसभा में पद क्रिएट किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि उपराज्यपाल इस उद्देश्य के लिए कम्पीटेंट अथॉरिटी है.
प्रविष्टि 70 में किया गया है शामिल
अदालत ने 23 दिसंबर के अपने आदेश में कहा, ‘‘एनसीटी दिल्ली के तहत सेवाएं अनिवार्य रूप से संघ की सेवाएं हैं और उन्हें स्पष्ट रूप से संविधान की केवल सूची एक की प्रविष्टि 70 में शामिल किया गया है." उन्होंने बताया कि दिल्ली एनसीटी की विधानसभा के पास राज्य सूची की प्रविष्टि एक, दो और 18 और संघ सूची की प्रविष्टि 70 के तहत आने वाले किसी भी विषय के संबंध में कानून बनाने की कोई विधायी क्षमता नहीं है.
अपने विवेक से कार्य करने की है आवश्यकता
अदालत ने कहा, ‘‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली अधिनियम, 1991 की धारा 41 के मद्देनजर उपराज्यपाल को इन मामलों के संबंध में अपने विवेक से कार्य करने की आवश्यकता है, न कि मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर." उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता को तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष की मंजूरी के बाद दिसंबर 2002 में दिल्ली विधानसभा के सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था, लेकिन मई 2010 में दिल्ली सरकार के सेवा विभाग की सेवा समाप्त करने के बाद उन्हें इस पद से हटा दिया गया था.
अदालत ने माना कि दिल्ली विधानसभा के सचिव पद पर नियुक्तियां दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष के कार्यालय के दायरे से बाहर हैं क्योंकि उपयुक्त नियुक्ति उपराज्यपाल कर सकते थे. उसने कहा कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति ‘‘धोखाधड़ी से प्रभावित’’ और कानूनी रूप से प्रभावी नहीं थी. अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति कानून के खिलाफ है और इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती तथा ‘‘सेवा से हटाए जाने को अवैध नहीं कहा जा सकता है."
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