Delhi High Court News: दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार (15 मई) को एक जनहित याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. याचिका में दिल्ली पुलिस को निर्देश देने के लिए कहा गया है कि वो शिकायतकर्ताओं से पूछें कि क्या वे आरोपों को साबित करने के लिए जांच के दौरान नार्को एनालिसिस और ब्रेन मैपिंग जैसे वैज्ञानिक परीक्षणों से गुजरने को तैयार हैं? इसके पीछे का मकसद गलत केस को नियंत्रित करना है.
चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा, "हम कानून बनाने वाले नहीं हैं," पीठ वकील और बीजेपी नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय की दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रहा था.
पुलिस को यह निर्देश देने की भी मांग
अश्विनी उपाध्याय की याचिका में पुलिस को यह निर्देश देने की भी मांग की गई है कि वह आरोपी से पूछे कि क्या वे अपनी बेगुनाही साबित करने और चार्जशीट में बयान दर्ज करने के लिए इस तरह के वैज्ञानिक परीक्षणों से गुजरने को तैयार हैं, ताकि "पुलिस जांच के समय और कीमती न्यायिक समय को कम किया जा सके."
बता दें कि भारत के विधि आयोग से विकसित देशों की सबसे बेहतरीन कामों की पड़ताल करके फर्जी केसों को नियंत्रित करने के लिए एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा गया है.
मजाक थोड़ी है...
अश्विनी उपाध्याय कोर्ट में सुनवाई के दौरान प्रार्थना कर रहे थे, चीफ जस्टिस शर्मा ने मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा, "मजाक थोड़ी है. सीआरपीसी है साहब (यह मजाक नहीं है. यह सीआरपीसी है). कहां लिखा हुआ है कि एक वाक्य और पूछ सकते हैं? हम सीआरपीसी से आगे नहीं बढ़ेंगे. कृपया हमें दिखाएं कि सीआरपीसी में यह अनिवार्य प्रावधान है कि पुलिस को (शिकायतकर्ता) पूछना जरूरी है? हम लॉ मेकर नहीं हैं."
जानकारी निकालने की एक प्रक्रिया
अपनी याचिका में, अश्विनी उपाध्याय ने तर्क दिया है कि नार्को-एनालिसिस मजबूरी नहीं है क्योंकि यह जानकारी निकालने की एक प्रक्रिया मात्र है. याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा है कि कोई व्यक्ति अनुच्छेद 20 (3) के तहत सुरक्षा की मांग कर सकता है, जब उस पर अपराध का आरोप लगाया जाता है और खुद के खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर किया जाता है, लेकिन अपना बयान दर्ज करने के लिए क्या वह साबित करने के लिए नार्को टेस्ट, पॉलीग्राफी और ब्रेन मैपिंग टेस्ट से गुजरने को तैयार है.
याचिका में कहा गया है कि उनके आरोप या बेगुनाही से अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन नहीं होगा.