1984 दंगों से जुड़े एक मामले में सज्जन कुमार की भूमिका पर दिल्ली हाई कोर्ट आज सुनाएगा फैसला
दिल्ली हाईकोर्ट सिख दंगे से जुड़े एक केस जिसमें कांग्रेस नेता सज्जन कुमार नामित हैं पर आज फैसला सुनाएगा. यह मामला 1984 में दिल्ली कैंट में हुए सिख दंगों से जुड़ा हुआ है जिसमें 5 सिखों की हत्या कर दी गई थी. इससे पहले हाईकोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 27 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था.
नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट आज 1984 में हुए सिख दंगे मामले में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार से जुड़े मामले में अपना फैसला सुनाएगा. यह मामला 1984 में दिल्ली कैंट में हुए सिख दंगों से जुड़ा हुआ है जिसमें 5 सिखों की हत्या कर दी गई थी. इस मामले में जांच एजेंसी सीबीआई ने कांग्रेस नेता सज्जन कुमार समेत 6 लोगों को आरोपी बनाया था. लेकिन अप्रैल 2013 में निचली अदालत ने अपने फैसले में सज्जन कुमार को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था जबकि 5 अन्य लोगों को दोषी ठहराया था.
इस मामले में निचली अदालत ने कैप्टन भागमल, पूर्व कांग्रेस पार्षद बलवान खोखर, गिरधारी लाल और दो अन्य को दोषी ठहराया था. इनमें से तीन को उम्र कैद की सजा और 2 को 3-3 साल कैद की सजा सुनाई गई थी. निचली अदालत के फैसले के खिलाफ जांच एजेंसी सीबीआई और सिख दंगा पीड़ितों ने दिल्ली हाईकोर्ट में सज्जन कुमार को बरी किए जाने के फैसले को चुनौती दी थी. इसके अलावा जिन 5 लोगों को निचली अदालत ने सजा सुनाई थी उन लोगों ने भी निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
दिल्ली हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान सीबीआई ने दलील देते हुए दिल्ली पुलिस की भूमिका पर भी सवाल खड़े करते हुए कहा कि इस मामले में दिल्ली पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में है. दिल्ली पुलिस ने राजनेताओं को बचाने की कोशिश की थी. सीबीआई ने कहा कि पीड़ितों ने सज्जन कुमार का नाम लिया था इसके बाद भी पुलिस ने सज्जन का नाम छोड़कर अन्य के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिया. सीबीआई के वकील ने कहा कि सज्जन कुमार को किस तरह से सहयोग किया गया इसका एक उदाहरण यह भी है कि जब नानावती कमीशन ने उनके खिलाफ मामला दर्ज करने की बात कही तब तत्कालीन सरकार ने नानावटी कमीशन की उस सिफारिश को मानने से इंकार कर दिया था.
वहीं, पीड़ितों के वकील एचएस फूलका ने दलील देते हुए कहा था कि मामले में शुरुआती चार्जशीट में सज्जन कुमार का नाम था लेकिन दिल्ली पुलिस ने इसे कभी दाखिल नहीं किया. पुलिस ने इस तथ्य को हमेशा अपनी फाइलों में दबाए रखा. हाईकोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 27 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था.
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