नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में महिला सहकर्मी से छेड़छाड़ के आरोपी ने कोर्ट के सामने अजीब दलील पेश की है. छेड़छाड़ के आरोप में आपराधिक कार्यवाही का सामना कर रहे शख्स ने केस रद्द करने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट से कहा कि महिलाओं के प्रति उसका कभी आकर्षण नहीं रहा और वह खुद महिला बनने की प्रक्रिया में है. हालांकि कोर्ट ने आरोपी की कार्यवाही निरस्त करने के अनुरोध वाली याचिका खारिज कर दी.
महिला के कपड़े पहनकर-मेकअप करके कोर्ट में पहुंचा था आरोपी
आरोपी ने कोर्ट से कहा कि वह बचपन से ही लैंगिक ‘डायसफोरिया’ से पीड़ित है. अदालत के समक्ष उसने खुद को महिला बताते हुए कहा कि उसके और शिकायतकर्ता के बीच ‘बहनों’ जैसा संबंध था, इसलिए वह उससे छेड़छाड़ नहीं कर सकता. आरोपी महिलाओं के कपड़े पहनकर, मेकअप और महिलाओं जैसा हेयर स्टाइल कर अदालत पहुंचा.
बता दें कि लैंगिक ‘डायसफोरिया’ एक ऐसी समस्या है जिसमें व्यक्ति अपने जैविक लिंग के विपरीत खुद की पहचान महिला या पुरुष के रूप में महसूस करने लगता है.
पीड़िता ने समझौता करने से इनकार किया
गौरतलब है कि अदालत आपराधिक कार्यवाही निरस्त करने का अनुरोध करने वाली उसकी याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें दावा किया गया कि शिकायतकर्ता मामला निपटाने को तैयार है. महिला से छेड़छाड़ का यह मामला यहां के कनॉट प्लेस थाने में दर्ज हुआ था. मल्टीपल स्कलेरोसिस के चलते बिस्तर पर पड़ी 33 साल पीड़िता को व्हील चेयर पर अदालत लाया गया जिसने मामले में कोई समझौता करने से इनकार कर दिया.
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत ने यह उल्लेख करते हुए आरोपी की याचिका को खारिज कर दिया कि पीड़िता ने समझौते के लिए कोई सहमति नहीं दी है. महिला की ओर से पेश हुए वकील उमेश जोशी ने कहा कि आरोपी ने पिछली सुनवाई के दौरान पीड़िता की ओर से उसकी जानकारी के बिना कोई दूसरा वकील कर लिया और यहां तक कि पीड़िता के फर्जी हस्ताक्षर भी किए. पीड़िता की बहन ने उसकी ओर से अदालत से कहा, ‘‘मैं मामले में आगे बढ़ना चाहूंगी. कोई समझौता नहीं हुआ.’’
क्या है मामला?
अक्टूबर 2016 में दर्ज प्राथमिकी के अनुसार आरोपी और महिला नोएडा में 2014 में एक कंपनी में साथ ही काम करते थे, जब उसने दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित एक पब में पार्टी के दौरान उससे कथित तौर पर छेड़छाड़ की. महिला ने कहा कि उसने कंपनी से कई बार शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई और आरोपी के पक्ष में निर्णय कर दिया. अगस्त में एक निचली अदालत ने आरोपी के खिलाफ आरोप तय किए थे और उसे आपराधिक धमकी तथा किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले शब्द या हाव-भाव के आरोपों में आरोपमुक्त कर दिया था.
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