'एक तरफ जहां इराक, ईरान, अफगानिस्तान और सऊदी अरब जैसे देश की महिलाएं दशकों से बराबरी के हक की लड़ाई लड़ रही हैं. वहीं दूसरी तरफ भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में इस तरह का फैसला लिया जाना न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के अन्य देशों की महिलाओं के हौसले को भी कमजोर करने का काम कर रहा है.' ये कहना है 27 साल की नगमा का जिन्होंने दिल्ली के जामा मस्जिद में अकेली लड़की या लड़कियों की एंट्री पर रोक लगाने पर अपना विरोध जताया है.
उन्होंने कहा कि हमारे देश में महिलाओं को आगे बढ़ाने, पढ़ाने-लिखाने जैसी बड़ी बड़ी बातें की जाती है. लेकिन एक सच ये भी है कि उसी समाज में औरतों को अपना हक पाने के लिए कभी परिवार से तो कभी समाज के नियमों से गुजरना पड़ता है.
दरअसल राजधानी नई दिल्ली में स्थित जामा मस्जिद में अकेली लड़की या लड़कियों की एंट्री पर रोक लगाने का फरमान जारी किया गया है. इसको लेकर बहस शुरू हो गई है.
इस बैन पर जामा मस्जिद के PRO सबीउल्लाह खान ने न्यूज एजेंसी ANI से बातचीत के दौरान कहा कि हमने महिलाओं के प्रवेश पर रोक नहीं लगाई है. बल्कि लड़कियां अकेली यहां आती हैं, लड़कों को टाइम देती हैं. यहां आकर गलत हरकतें होती है, वीडियोज बनाई जाती हैं. सिर्फ उस चीज को रोकने के लिए यह पाबंदी लगाई गई है.
उन्होंने कहा कि अभी भी आप चारो तरफ देख सकते हैं यहां महिलाएं मौजूद हैं. आप परिवार के साथ यहां आएं तो कोई पाबंदी नहीं है, शादीशुदा जोड़े आएं कोई पाबंदी नहीं है. लेकिन मंदिर या मस्जिद को पार्ट बना लेना, किसी से मिलने के लिए यहां आना, मीटिंग पॉइंट बना लेना, पार्क समझ लेना, टिक-टॉक वीडियो बनाना, डांस करना ये किसी भी धर्म स्थल के लिए मुनासिब नहीं है चाहे वो मस्जिद हो, मंदिर हो या गुरुद्वारा हो.
जामा मस्जिद के PRO सबीउल्लाह खान कहते हैं कि मस्जिद एक पवित्र जगह है जहां सिर्फ इबादत की जानी चाहिए. हमने ये पाबंदी सिर्फ और सिर्फ गलत हरकतों को देखते हुए लगाई है. अगर आप नमाज पढ़ना चाहते हैं तो मस्जिद आपके लिए खुली है. इबादत की जगह का इस्तेमाल इबादत के लिए ही होनी चाहिए.
क्या कहती हैं दिल्ली की लड़कियां
इस फैसले पर नाराजगी जताते हुए जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहीं राबिया कहती है कि,'सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश हो या हिजाब-विवाद, हमें हमेशा पुरुषों द्वारा बताया जाता है कि क्या करना है, क्या नहीं. क्या पुरुष हमें बताएंगे कि हमें हमारे ही देश में कहां जाना है'.
उन्होंने कहा कि फैसला चाहे जिसने भी लिया हो और जिस कारण भी लिया गया है, गलत है. एक तरफ आप कह रहे हैं कि ये फैसला मस्जिद में बनाई जा रही रील्स और अन्य नाच-गाने वाले वीडियो को देखते हुए लिया गया है तो बैन सिर्फ लड़कियां पर ही क्यों, वीडियो तो लड़के भी बनाते हैं फिर तो उनके प्रवेश पर बैन क्यों नहीं लगाया गया.
27 साल की पूजा कहती हैं कि मुझे जामा मस्जिद जाना पसंद है. मैं कई बार वीकेंड पर वहां जाती हूं. वहां मैं हमेशा ही अकेले जाती रही हूं. ऐसे में इस तरह के फरमान को किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता है. तर्क चाहे जो भी हो महिलाओं या लड़कियों का बैन समानता के ऊपर प्रश्नचिन्ह है.
हालांकि 35 साल की रश्मि इन लड़कियों से थोड़ा अलग मत रखती हैं. उनका कहना है कि किसी भी इबादत की जगह पर रील्स या वीडियोज बनाना गलत है. कुछ जगहों को सिर्फ इबादत के लिए छोड़ देना चाहिए. लेकिन इसके पीछे मैं लड़के या लड़कियों से ज्यादा प्रशासन को दोषी ठहराउंगा. ये उनका काम है कि वो किसी तरह इन हरकतों को रोके. आप कई नियम बना सकते हैं. जैसे फाइन देना, दंड देना, लेकिन आपने महिलाओं या लड़कियों को बैन करना ही चुना. ऐसा इसलिए क्योंकि पुरुषों के लिए महिलाओं पर प्रतिबंध लगाना सबसे आसान काम है. लेकिन शायद वो भूल गए हैं कि इस युग की महिलाएं अपनी बातें रखना भी जानती हैं और मनवाना भी.
दिल्ली महिला आयोग ने जताई आपत्ति
इस बैन पर दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने इस फैसले का विरोध करते हुए अपने ट्वीट में लिखा, "जामा मस्जिद में महिलाओं की एंट्री रोकने का फैसला बिल्कुल गलत है. जितना हक एक पुरुष को इबादत का है उतना ही एक महिला को भी. मैं जामा मस्जिद के इमाम को नोटिस जारी कर रही हूं. इस तरह महिलाओं की एंट्री बैन करने का अधिकार किसी को नहीं है."
उन्होंने इमाम के खिलाफ नोटिस जारी करते हुए कहा, 'हमने ये नोटिस जामा मस्जिद के शाही इमाम के तालिबानी फैसले के खिलाफ जारी किया है. उनका ये फरमान असंवैधानिक है.उन्हें क्या लगता है कि यह ईरान है कि वह महिलाओं के साथ खुलेआम भेदभाव करेंगे और कोई नहीं रोकेगा. मस्जिद प्रशासन की ओर से लगाए गए इस बैन को हम हटवाकर रहेंगे.'
विरोध में उठी आवाज
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष के अलावा भी कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इस फरमान का विरोध किया है. सामाजिक कार्यकर्ता शहनाज अफजल ने कहा कि भारत में हर किसी को बराबरी का अधिकार मिला हुआ है. उसमें इस तरह का फैसला संविधान का खुला उल्लंघन करता है. उन्होंने कहा कि इस तरह का फैसला किसी भी सूरत में मान्य नहीं है. मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के प्रवक्ता शाहिद सईद ने भी इसका विरोध किया है. उन्होंने कहा कि यह गलत मानसिकता है. महिलाओं के दोयम दर्जे का व्यवहार क्यों? इबादत की जगह हर किसी के लिए खुली होनी चाहिए.
शाही इमाम की सफाई
वहीं जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने कहा है कि मस्जिद में नमाज पढ़ने आने वाली महिलाओं को रोका नहीं जाएगा. उन्होंने कहा कि ऐसी शिकायतें आ रही थीं कि मस्जिद में लड़कियां अपने प्रेमी के साथ आ रही हैं. यदि कोई महिला जामा मस्जिद आना चाहती है तो उसे परिवार या पति के साथ आना होगा.