दिल्ली: शाहीन बाग बस स्टैंड पर अब चल रही है लाइब्रेरी, बच्चों के लिए खोला गया है प्ले-वे स्कूल
केवल 50 किताबों के साथ शुरू हुई फातिमा शेख सावित्रीबाई फुले लाइब्रेरी में आज एक हजार से ज्यादा किताबें हैं. यहां पर लगभग हर वर्ग के लिए किताबें मौजूद हैं. लिहाज़ा लाइब्रेरी हमेशा भरी रहती है.
नई दिल्ली: लगभग दो महीने से दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता कानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन जारी है. प्रदर्शन स्थल पर शाहीन बाग़ बस स्टैंड को बदलकर लाइब्रेरी बना दिया गया है जो लोगों को बेहद आकर्षित कर रही है. लाइब्रेरी का नाम फातिमा शेख सावित्रीबाई फुले रखा गया है, जिसकी शुरुआत रोहित वेमुला की चौथी बरसी , 17 जनवरी से हुई. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ,जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अम्बेडकर यूनिवर्सिटी के कुछ छात्रों द्वारा लाइब्रेरी की शुरुआत केवल 50 किताबों के साथ की गई और आज यहां एक हज़ार से ज़्यादा किताबें है.
जामिया के मास्टर ऑफ एजुकेशन के छात्र मोहम्मद नूर आलम लाइब्रेरी की शुरुआत करने वाले छात्रों में से एक हैं, एबीपी न्यूज से बात करते हुए वो बताते हैं कि "क्योंकि शाहीन बाग के प्रदर्शन को महिलाओं के द्वारा लीड किया जा रहा है, इसलिए लाइब्रेरी का नाम भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले और उनकी सहयोगी शिक्षिका फातिमा शेख के नाम पर रखा गया है."
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र मोहम्मद आसिफ, जामिया मिलिया इसलामिया के छात्र सत्य प्रकाश, अंबेडकर यूनिवर्सिटी के मोहम्मद काशिफ द्वारा शुरू की गई लाइब्रेरी में अब किताबों की संख्या रोज़ बढ़ रही है जो उन्होंने फेसबुक, इंस्टाग्राम पर पेज बनाकर लोगों से किताबें दान करने की अपील के बाद इकट्ठी की हैं. इन किताबों में नोबेल पुरस्कार जितने वाले रबीन्द्रनाथ टैगोर, इस्मत चुग़ताई, जवाहरलाल नेहरू की आत्मकथा, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आत्मकथा ' सत्य के प्रयोग ', भारत का संविधान,रूसी लेखक मैक्सिम गोर्की द्वारा लिखी गई किताबें, दलित साहित्य से जुड़ी आत्मथा जूठन , मेरा बचपन मेरे कंधों पर इत्यादि किताबें मौजूद हैं जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं, लिहाज़ा लाइब्रेरी हमेशा भरी रहती है. बस डिपो की बेंच पर लोग बैठ कर घंटों तक पढ़ते रहते हैं तो कुछ लोग डिपो की ज़मीन पर बिछे कपड़े के ऊपर बैठ कर घंटों किताबों की दुनिया में खो जाते हैं.
नूर कहते हैं कि " लाइब्रेरी का मकसद यहां आने वाले लोगों को अपने इतिहास से परिचित करवाना है, साहित्य में रुचि जगाना है क्योंकि किताबों से जो विचार आता है उसके बिना कोई सार्थक लड़ाई संभव नहीं है."
लाइब्रेरी में 30-40 प्रतिशत महिलाएं आती हैं और कई घंटों तक यहां बैठ कर किताबें पढ़ती हैं अगर उन्हें यहां बैठना मुनासिब नहीं लगता तो उनके लिए किताब को 24 घंटे के लिए इशू करने की सुविधा भी दी जाती है. साथ ही प्रदर्शन में शामिल हुई महिलाओं के बच्चों के लिए भी लाइब्रेरी में किताबें रखी गई है और प्ले - वे स्कूल चलाया जाता है, जिस से बच्चों का मन भी लगा रहे और उनकी माताएं प्रदर्शन में शामिल भी हो सकें.
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