Delhi MCD Results 2022: बीजेपी से आखिर कहां हो गई चूक, कैसे AAP ने मारी बाजी, इन पांच प्वॉइंट्स में समझें
MCD Results: आठ साल पहले अस्तित्व में आई आम आदमी पार्टी ने 15 साल से एमसीडी पर काबिज बीजेपी हरा दिया. आइये AAP की जीत और बीजेपी की हार पांच कारणों के जरिये समझते हैं.
Delhi MCD Results 2022: दिल्ली नगर निगम चुनाव 2022 के नतीजे आ चुके हैं. बुधवार (7 दिसंबर) को जारी हुए नतीजों में एमसीडी के 250 वार्डो में से 134 पर आम आदमी पार्टी, 104 पर बीजेपी, 9 पर कांग्रेस और 3 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार जीते. सुबह मतगणना शुरू होने के साथ ही शुरुआती रुझान आने शुरू हुए तो मामला किसी रोमांचक मैच की तरह लग रहा था. रुझान पल-पल बदल रहे थे. कभी बीजेपी बहुमत के लिए जरूरी 126 सीटों के आंकड़े को छू रही थी तो कभी आम आदमी पार्टी सरपट आगे बढ़ जाती.
दोपहर 12 बजे तक स्थिति लगभग स्पष्ट हो गई थी और बाद में साफ हो गया कि आम आदमी पार्टी ने एमसीडी से 15 वर्षों के बीजेपी शासन को खत्म कर दिया है. एक दिन पहले ही आए तमाम एग्जिट पोल ने आप की जीत पर मुहर लगा दी थी. आखिर बीजेपी से कहां चूक हो गई और आम आदमी पार्टी बाजी मार ले गई? आइये पांच प्वॉइंट्स के जरिये समझते हैं.
1. कूड़े के पहाड़ बने मुद्दा
एमसीडी चुनाव में बतौर मुद्दा कूड़े के पहाड़ों की सबसे ज्यादा चर्चा हुई. दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने शुरू से ही गंदगी को बड़ा मुद्दा बनाया. उन्होंने कहा कि एमसीडी में AAP आई तो तीनों कूड़े के पहाड़ (लैंडफिल साइट्स) खत्म कर देंगे. ये लैंडफिल साइट गाजीपुर, भलस्वा और ओखला में हैं. बीजेपी दावा करती आई है कि कूड़े का निस्तारण बहुत तेजी किया जा रहा है और उससे ईंधन भी बनाया जा रहा है. इसी साल अक्टूबर में राजनिवास के सूत्रों के हवाले रिपोर्ट एक आई थी कि तीनों साइटों में करीब 280 लाख मीट्रिक टन कचरा जमा था. मई 2022 में इसमें कमी आई और यह 229.1 लाख मीट्रिक टन हो गया. सितंबर 2022 में यह 203 लाख मीट्रिक टन हो गया. राजनिवास के सूत्रों ने कहा था कि 2024 तक कचरे का निस्तारण कर दिया जाएगा.
रिपोर्ट के मुताबिक, जून से सितंबर तक, चार महीनों में ही 26.1 लाख मीट्रिक टन कचरे का निस्तारण कर दिया गया, इसका मतलब है जैसे-जैसे एमसीडी चुनाव की अवधि करीब आ रही थी, कूड़े को उतनी ही तेजी से निस्तारित किया जा रहा था. यानी बीजेपी केजरीवाल की ओर से मुद्दा बनाए गए कूड़े के पहाड़ों को लेकर गंभीर थी और उपराज्यपाल वीके सक्सेना के जरिये निस्तारण के काम में तेजी ला रही थी. देखा जाए तो बीजेपी जनता को शायद पर्याप्त यकीन नहीं दिला पाई कि गंदगी को वह साफ कर देगी. वहीं, दिल्लीवासी वर्षों से कूड़े का पहाड़ देखते आ रहे हैं, बीजेपी भी 15 साल से एमसीडी में थी, शायद इसी वजह से भी लोग यकीन नहीं कर पाए.
2. दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष के वार्ड में BJP के हारने का मतलब क्या है?
दिल्ली एमसीडी के वार्ड नंबर- 141 राजेंद्र नगर में बीजेपी हार गई. इससे सवाल उठ रहा है कि क्या बीजेपी ने एमसीडी चुनाव में विश्वसनीय चेहरों पर दांव नहीं लगाया? सवाल इसलिए उठ रहा है, क्योंकि दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष आदेश गुप्ता इसी इलाके में रहते हैं. बीजेपी एक और बड़े चेहरे और कभी धुरंधर बैट्समैन रहे गौतम गंभीर भी यहीं से वोटर हैं. बीजेपी ने इस सीट से मनिका निश्चल को उम्मीदवार बनाया था. निश्चल को आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार आरती चावला ने 1300 से ज्यादा मतों के अंतर से हरा दिया. आरती चावला को 11016 वोट मिले, जबकि मनिका को 9629 वोट हासिल हुए. बता दें कि इसी वार्ड में आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा भी रहते हैं.
3. राष्ट्रवादी मुद्दे बनाम लोकल मुद्दे
एमसीडी चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच ही शुरू से मुकाबला माना जा रहा था. दोनों पार्टियों ने ताबड़तोड़ प्रचार किया, लेकिन बीजेपी ने अपने कई केंद्रीय मंत्रियों और अपनी सरकारों वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों से चुनाव प्रचार करवाया. इस बात को ऐसे समझिए कि चुनाव प्रचार के अंतिम दिन (2 दिसंबर) बीजेपी नेताओं ने 200 से ज्यादा जनसभाएं और रोड शो किए थे. चुनाव प्रचार में केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी, पीयूष गोयल, अनुराग ठाकुर, हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर और उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी जैसे दिग्गज मौजूद थे.
पलटवार करते हुए केजरीवाल ने यहां तक कहा था कि बीजेपी ने अपने सात मुख्यमंत्रियों, एक उपमुख्यमंत्री और 17 केंद्रीय मंत्रियों को उनके जैसे ‘आम आदमी’ पर हमला करने के लिए बुलाया है. कहने का मतलब है कि बीजेपी की ओर से बड़े नेताओं की फौज उतारी गई, जिनके प्रचार अभियान में राष्ट्रवाद के मुद्दे हावी रहे.
बीजेपी ने AAP के मंत्री सत्येंद्र जैन के जेल वाले कथित मसाज वीडियो को लेकर भी केजरीवाल सरकार को घेरा, मनीष सिसोदियो पर ईडी-सीबीआई की जांच को लेकर भी निशाना बनाया और आप के कथित भ्रष्टाचार के स्टिंग वीडियो भी जारी किए गए, लेकिन केजरीवाल और उनके नेता स्थानीय मुद्दों पर जनता का ध्यान खींचने में सफल रहे. मसलन, दिल्ली के सरकारी स्कूलों में किए कार्यों को उन्होंने शिक्षा के मॉडल के तौर पर पेश किया, मोहल्ला क्लीनिक की बात कर लोगों की स्वास्थ्य चिंताओं को भुनाया. डीटीसी बसों में महिलाओं की मुफ्त यात्रा याद दिलाई और मुफ्त बिजली-पानी की बात की. आप नेताओं ने दावे के साथ कहा कि दिल्ली को साफ बनाना है तो उन्हें एमसीडी में आने दें. वहीं, सीएम केजरीवाल ने प्रदूषण और दिल्ली ट्रैफिक समस्या को लेकर भी जनता का ध्यान खींचा. 'आप' नेताओं ने राष्ट्रवादी मुद्दों से इतर रोजमर्रा की समस्याओं का सामना कर रही जनता की नब्ज पकड़ने की कोशिश की और इसमें वे काफी हद तक कामयाब रहे.
4. बीजेपी का पसमांदा मुस्लिम कार्ड नहीं चला
पसमांदा समाज के जरिये मुस्लिमों के बीच कथित पैठ बनाने की कोशिशों में लगी बीजेपी ने यह कार्ड एमसीडी में भी खेला. बता दें कि पसमांदा मुस्लिम अन्य पिछड़ा (OBC) वर्ग से आते हैं. हाल में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की ओर से एक बड़ा पसमांदा सम्मेलन भी किया गया था. एमसीडी में बीजेपी ने इस समाज से चार उम्मीदवार इस बार उतारे थे. इनमें मुस्तफाबाद से शबनम मलिक, चांदनी महल से इरफान मलिक, कुरैशी नगर पश्चिम से शमीन रजा कुरैशी और चौहान बांगर से सबा गाजी शामिल हैं. ये चारों बीजेपी उम्मीदवार हार गए.
मुस्तफाबाद में कांग्रेस की सबीला बेगम, चांदनी महल में AAP के मोहम्मद इकबाल, कुरैशी नगर से AAP की शमीम बानो और चौहान बांगर से कांग्रेस शगुफ्ता ने जीत दर्ज की. इन उम्मीदवारों की हार से स्पष्ट है कि बीजेपी का पसमांदा कार्ड नहीं चला. वहीं, एक वजह यह भी बताई जा रही है कि बीजेपी ने गुजरात विधानसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा, इसलिए एमसीडी में उसके उम्मीदवारों से मतदाताओं की सहानुभूति नहीं रही.
5. गुजरात मॉडल और डबल इंजन
दिल्ली को मॉडल की तरह पेश करने वाले अरविंद केजरीवाल राजधानी में 'अपने गुजरात मॉडल' का उदाहरण देने में शायद सफल रहे. आम आदमी पार्टी गुजरात की सत्ता पर काबिज होने के लिए संघर्ष कर रही है, लेकिन पिछले वर्ष फरवरी में 'आप' को बड़ी सफलता तब मिली जब सूरत निकाय चुनाव में उसके 27 उम्मीदवार जीत गए. हालांकि, 5 बाद में बीजेपी में चले गए, लेकिन दिल्ली में केजरीवाल के पास वहां का रिपोर्ट कार्ड दिखाने के लिए वजह काफी थी. चूंकि एमसीडी और गुजरात विधानसभा चुनाव आसपास ही हुए हैं और केजरीवाल गुजरात में पहले बार पूरी सामर्थ्य के साथ लड़ रहे हैं, इसलिए एमसीडी में गुजरात चुनाव की चर्चा हो गई. माना जा रहा है कि केजरीवाल के लिए यह फायदेमंद रहा और 'बीजेपी अपने गुजरात मॉडल' को यहां भुना नहीं पाई.
मजे बात यह भी है अक्सर बीजेपी शासित राज्यों में 'डबल इंजन की सरकार' टर्म सुनने को मिलता है. रैलियों, जनसभाओं आदि में इसे खूब भुनाया जाता है, लेकिन एमसीडी में इसे AAP ने भुना लिया. केजरीवाल अपना कथित विक्टिम कार्ड खेलते हुए जनता को बताते रहे कि दिल्ली में उनकी सरकार है, लेकिन एमसीडी में बीजेपी के होने से काम हो नहीं पा रहा है. एमसीडी में भी AAP आती है तो डबल इंजन की सरकार काम करेगी. बुधवार को चुनाव नतीजों वाले दिन सुबह सीएम केजरीवाल के पिता गोबिंद राम केजरीवाल ने भी मीडिया से कहा कि अगर एमसीडी में भी (AAP) आ जाए तो डबल इंजन की सरकार काम करेगी. इसके अलावा जानकार मान रहे हैं कि बीजेपी के लंबे समय से एमसीडी में होने की वजह से एंटी इन्कम्बेंसी भी उसकी हार का एक फैक्टर रहा है.