Delhi MCD Race: दिल्ली नगर निगम में आम आदमी पार्टी ने बंपर जीत हासिल की है. बहुमत के साथ आप ने 250 में से 134 वार्डों में जीत मिली है. वहीं 15 सालों से एमसीडी पर राज करने वाली बीजेपी को केवल 104 सीटें मिली हैं. कांग्रेस 9 सीटों पर ही सिमट गई है, लेकिन दिल्ली में अभी पिक्चर बाकी है. भले ही चुनाव खत्म हो चुके हों लेकिन मेयर किस पार्टी का होगा इसपर अभी भी सस्पेंस बना हुआ है. 


सबकी निगाहें अब दिल्ली के मेयर पद पर है. कौन हो सकता है मेयर? किसके लिए कौन सा समीकरण काम कर सकता है? इन सवालों का जवाब अभी तक नहीं मिला है. दरअसल 15 दिसंबर को राज्य चुनाव आयोग एमसीडी निर्वाचन की प्रक्रिया पूरी कर लेगा. नोटिफाई होने के बाद जीते हुए पार्षदों की सूची उपराज्यपाल के पास नए नगर निगम के गठन के लिए भेज दिए जाएंगे. 


आइये देखते हैं कि मेयर चुनाव के लिए कौन से 5 विकल्प हो सकते हैं?


आम आदमी का मेयर 


एमसीडी में हर बार ऐसा ही होता रहा है कि जिसके पास बहुमत या ज्यादा सीटें हों उसी का मेयर बनता है. मेयर के लिए सत्ताधारी दल अपने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को नामांकित करते हैं और बाकी पार्टी के पार्षद पार्टी लाइन के मुताबिक वोट करके अपना मेयर चुन लेते हैं. अगर बात आप की करें तो आप को बहुमत मिल चुका है. ऐसे में लगता है कि पार्टी को ज्यादा दिक्कत नहीं होने वाली. 


विधायक-सांसद के दम पर AAP का मेयर बने


दिल्ली में जो मेयर को चुनने की प्रक्रिया होती है उसमें जो पार्षद वोट करते हैं उसमें विधायक और संसद भी शामिल होते है. दिल्ली में कुल 70 विधायक हैं तो उनमें से 5 साल के लिए 14-14 विधायक एमसीडी के सदस्य के तौर पर नामित किए जाते हैं. यह करने का अधिकार दिल्ली के विधानसभा अध्यक्ष के पास होता है. इन 14 विधायकों में तीन साल के दौरान 12 विधायक आम आदमी पार्टी के होंगे तो दो विधायक बीजेपी जबकि बाकी बचे दो सालों में 13 विधायक आम आदमी पार्टी के होंगे सिर्फ एक विधायक बीजेपी का होगा. लोकसभा के दिल्ली से सातों सांसद और राज्यसभा से तीन सांसद भी वोट कर सकते है. यहां भी आप का पल्ला भारी है. संख्या की बात करे तो बीजेपी से  8 या 9 वोट आएंगे वहीं आप को 15 या 16 वोट मिल सकते हैं. 


कन्फ्यूजन दूर तो BJP का मेयर होगा


दिल्ली के मेयर पद के लिए अटकले काफी तेज चल रही है. बीजेपी ने जब से यह दावा किया है कि मेयर उनका होगा तब से नॉमिनेटेड यानि मनोनीत सदस्यों को लेकर अटकलें तेज हो गईं हैं. अगर बात 2012 की करें तो जब एमसीडी के तीन जोन नहीं हुआ करते थे तब केवल 10 नॉमिनेटेड सदस्य होते थे लेकिन उनके पास वोटिंग का हक़ नहीं हुआ करता था.


कांग्रेस की नेता ओनिका महरोत्रा ने हाईकोर्ट में वोटिंग अधिकार को लेकर केस किया और 2015 में एक फैसले में मनोनीत सदस्यों को वार्ड कमेटी में होने वाले चुनावों को लेकर वोटिंग का हक़ मिल गया. अभी दिल्ली नगर निगम तीन हिस्सों में बटा हुआ है और सभी हिस्सों में 10-10 सदस्य मनोनीत किए गए है. एमसीडी के बटवारे के बाद अभी यह साफ़ नहीं है की केवल 10 नॉमिनेटेड सदस्य होंगें या फिर कुल तीस. ऐसे में गेम बीजेपी के पक्ष में भी जा सकता है. 


कांग्रेस-निर्दलीय बन सकते हैं किंगमेकर


कांग्रेस के पास 9 सीटें हैं, वहीं निर्दलियों को 3 सीटों पर विजय प्राप्त हुई है. ऐसे में यह दोनों अगर साथ आ जाते हैं तो यह दिल्ली में किंगमेकर बन सकते हैं. बीजेपी और आप दोनों ही चाहेगी कि इनके वोट अपनी-अपनी पार्टी के पक्ष में आए. अगर ये वोट किसी के पक्ष में नहीं भी जाता है तो वोटिंग की प्रक्रिया से अनुपस्थित होकर भी किसी पार्टी को परोक्ष तौर पर फायदा पहुंचाया जा सकता है. दूसरा विकल्प यह भी हो सकता है कि कांग्रेस अपना उम्मीदवार दे और बाकी दलों के कुछ पार्षदों से समर्थन की अपील करे. 


क्रॉस- वोटिंग 
क्रॉस-वोटिंग किसी भी सरकार के लिए खतरे की घंटी साबित होती है. मेयर के लिए पार्षद गुप्त मतदान देते है.  यानि बैलट पेपर पर सभी मेयर उम्मीदवारों के नाम होते हैं और हर पार्षद बिना पार्टी के आधार पर अपने मनपसंद उम्मीदवार को बैलट कक्ष में जाकर गुप्त रूप से मतदान करता है. किसने किसको वोट डाला यह नहीं पता चल सकता है इसलिए अगर क्रॉस- वोटिंग होती भी है तो पता नहीं चल सकेगा. 


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