प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी, 'लोगों को कभी बारिश तो कभी हवा बचाती है, लेकिन सरकार...'
Pollution Issue: प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पंजाब सरकार पर सख्ती जताते हुए कहा कि आप हमें यह बताइए कि पराली जलने के लिए हम किसे ज़िम्मेदार मानें?
Air Pollution: दिल्ली और आसपास के शहरों में प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कड़ी नाराजगी जताई है. खास तौर पर पंजाब और दिल्ली सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कोर्ट ने कहा कि उन्होंने लोगों को भगवान भरोसे छोड़ दिया है. दिल्ली में हुई बारिश से प्रदूषण में आई कमी पर कोर्ट ने कहा कि लोगों को कभी बारिश बचाती है, कभी हवा. सरकारों ने ऐसा कुछ नहीं किया जिसके लिए उन्हें धन्यवाद दिया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से कहा है कि वह पराली जलाने की समस्या का स्थायी हल निकालें. जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने कैबिनेट सचिव को निर्देश दिया कि वह स्थिति में तुरंत सुधार के लिए उठाए जा रहे कदमों की निगरानी करें. दीपावली की छुट्टी के बाद 21 नवंबर को अगली सुनवाई होगी.
...तो कोर्ट में तलब किया जाएगा
जजों ने सख्त रवैया अपनाते हुए यह भी कहा कि राज्यों के मुख्य सचिव सक्रिय कदम उठाएं, नहीं तो उन्हें कोर्ट में तलब किया जाएगा. साथ ही मास्क लगा कर काम कर रहे अधिकारियों से कहा जाएगा कि वह उसे हटाएं और लोगों की तकलीफ को महसूस करें.
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने ऑड-ईवन योजना को अवैज्ञानिक बताते हुए दिल्ली सरकार से इसका औचित्य पूछा था. दिल्ली सरकार ने योजना के बचाव में दलील दी कि इससे सड़कों पर गाड़ियों की संख्या में गिरावट आती है. लेकिन जज इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुए.
उन्होंने कहा, "गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण 17% है. आपकी योजना से इसमें मामूली असर पड़ता है. आप यही करना चाहते हैं तो कीजिए. ताकि कल को आप यह न कहें कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते प्रदूषण नहीं घट रहा. सच यह है कि लोग भगवान भरोसे हैं. कभी हवा का बहना उनकी मदद करता है, कभी बारिश मदद करती है."
इसके बाद जजों ने कहा, "हमने पूछा था कि दूसरे राज्यों से टैक्सी दिल्ली आने पर क्या कुछ समय के लिए रोक लग सकती है. आप कह रहे हैं कि टैक्सी के लिए भी ऑड-ईवन लागू करना चाहते हैं. लेकिन इसके लिए हमारे आदेश की क्या ज़रूरत है? आप अपना बोझ कोर्ट पर डालना चाहते हैं." पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद दिल्ली सरकार के बदले रुख पर कोर्ट ने कहा, "पराली जलाने में सबसे ज़्यादा हिस्सा पंजाब का है. पिछले साल आप चाहते थे कि पंजाब पर अधिक ध्यान दिया जाए, इस साल ऐसा नहीं चाहते. यही समस्या है."
पराली को लेकर पंजाब सरकार से सवाल
जजों ने पंजाब सरकार पर सख्ती जताते हुए कहा, "आप हमें यह बताइए कि पराली जलने के लिए हम किसे ज़िम्मेदार मानें? आप बता रहें हैं कि कई लोगों पर FIR दर्ज की गई है. लेकिन क्या यह कोई हल है? आप पहले FIR करेंगे, बाद में उन्हें वापस ले लेंगे क्योंकि यह एक राजनीतिक मुद्दा बन जाएगा. इसलिए, FIR कोई समाधान नहीं है. आपकी पूरी व्यवस्था वोट बैंक के आधार पर चलती है. उसे आप नाराज़ करना नहीं चाहते. लेकिन समाधान तो आपको ही निकालना है."
जस्टिस कौल, सुधांशु धुलिया और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने कहा, "आप इस बात पर विचार कर सकते हैं कि जो पराली जलाए, उसे सब्सिडी नहीं मिलेगी. या उसकी संपत्ति जब्त की जाएगी. लेकिन इस पर आपको ही सोचना है. कल को यह न कहें कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर संपत्ति जब्त कर रहे हैं. किसानों को पराली जलाने के खिलाफ प्रोत्साहित करना ज़रूरी है. दूसरी फसलें उपजाना ज़रूरी है. मशीनों के ज़रिए भी पराली का समाधान किया जा सकता है. लेकिन मशीने उपलब्ध होने के बावजूद उनका इस्तेमाल नहीं हो रहा है."
सुनवाई के अंत में जजों ने साफ किया कि पंजाब सरकार के एडवोकेट जनरल के जिस सुझाव को उन्होंने पिछले आदेश में दर्ज किया था, उसमें यह कहीं नहीं कहा गया है कि धान पर MSP खत्म कर दी जाए. जजों ने कहा कि वह चाहते हैं कि पंजाब में उपजाई जा रही धान की किस्म की जगह किसी और फसल को MSP के ज़रिए प्रोत्साहित किया जाए. इससे किसानों का भी नुकसान नहीं होगा. केंद्र सरकार को इस पर विचार करना चाहिए.
कोर्ट ने यह भी कहा पंजाब के लिए जो बातें उसने कही हैं, वह दूसरे राज्यों (हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और यूपी) के लिए भी लागू हैं. खेतों में लगाई जाने वाली आग की निगरानी के लिए तकनीक की भी सहायता ली जानी चाहिए.
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