Delhi News: दिल्ली में आज जिस विधानसभा परिसर में सदन चलता है उसी इमारत में अंग्रेजों के समय में अदालत चलती थी. दिल्ली की इस ऐतिहासिक विरासत में आज़ादी की शौर्य गाथाएं मौजूद हैं और कई रहस्य भी बन्द हैं. इन शौर्य गाथाओं को अब आम लोगों तक पहुंचाया जाएगा. विधानसभा सत्र के दौरान जिस सदन में कार्यवाही की तस्वीरें हम सभी ने देखीं हैं उसी सदन में एक सुरंग भी मौजूद है जो लाल किले तक जाती है. इस सुरंग का इस्तेमाल लाल किले में कैद क्रांतिकारियों को लाने-ले जाने के लिए किया जाता था. और इसी विधानसभा में मौजूद है एक फांसी घर जहां आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले क्रांतिकारियों को फांसी दी जाती थी. अब इन दोनों ही जगहों को आम लोगों के लिए पर्यटन स्थल में तब्दील करने का काम किया जा रहा है.


ब्रिटिश काल मे 1912 में कलकत्ता की जगह दिल्ली को राजधानी बनाया गया. दिल्ली जब राजधानी बनी तब विधानसभा की मौजूदा इमारत में सरकार चलती थी. उस वक्त इसको सेंट्रल लेजिसलेटिव असेंबली बोलते थे. विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल के मुताबिक उस समय अंग्रेजों की मेजॉरिटी होती थी, उनके द्वारा मेंबर्स अपॉइंट किए जाते थे. कांग्रेस होती थी, हमारे जो लोग चुनकर आते थे वह यहां असेंबली हॉल में बैठते थे. जवाहरलाल नेहरू, लाला लाजपत राय, भीमराव अंबेडकर सब यहां बैठते थे.


1926 में संसद से सम्बंधित सारा काम मौजूदा लोकसभा में शिफ्ट हो गया. उस समय अंग्रेजों की सरकार ने विधानसभा परिसर को न्यायालय में बदल दिया. लाल किले में बन्द क्रांतिकारियों के लिए यह अदालत बनाई गई थी. उनको लाने के लिए एक सुरंग बनाई गई क्योंकि खुले रास्ते मे लाने से खतरा था. ये सुरंग यहां से लाल किले तक जाती है. सुरंग के जरिए स्वतंत्रता सेनानियों को न्यायालय में लाया जाता था यहीं उनकी सुनवाई होती थी और यहीं फैसला होता था. जिन लोगों को फांसी की सज़ा दी जाती थी उन्हें यहीं के फांसी घर में फांसी दे दिया करते थे.


राम निवास गोयल ने बताया कि सुरंग के तीन रास्ते हैं एक लाल किले की ओर से आ रहा है, दूसरा फांसी घर की ओर जा रहा है और एक रास्ता मंच की ओर जा रहा है जहां कटघरे लाकर क्रांतिकारियों को खड़ा किया जाता था. इसलिए इस जगह का क्रांतिकारियों से जुड़ाव है. इस फांसी घर को अब हम स्वतंत्रता सेनानियों के मंदिर का रूप दे रहे हैं. पीडब्ल्यूडी इस पर जल्द काम शुरू कर देगी. अभी 14-15 अगस्त और 25-26 जनवरी को आम पब्लिक सुरंग को देख सकती है. लेकिन फांसी घर का काम पूरा होने के बाद आम दिनों में भी इसे पर्यटकों के लिए खोलने की योजना तैयार की गई है. विधानसभा भवन के इतिहास को बताने ले लिए डिजिटल टेबल लगाई जाएंगी और एक डोम बनाया जायेगा. जितने भी स्वतंत्रता सेनानी हुए हैं उन सभी के इतिहास को इसमें जोड़ा जाएगा.


विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि दिल्ली विधानसभा सत्र के दौरान 30-40 दिन के लिए ही लगती है. यह विधानसभा जीवंत हो उठे इसके लिए टूरिज्म डिपार्टमेंट के साथ बैठ कर बात करेंगे. टूरिज्म डिपार्टमेंट में कुछ स्पॉट चुने हुए हैं जहां वह दर्शनीय स्थल पर लोगों को लेकर जाते हैं. उसी तरह से उनसे बात की जाएगी कि विधानसभा को भी एक स्पॉट के तौर पर जोड़ा जाए. स्कूल के बच्चों के लिए यह निशुल्क होगा. हमारा लक्ष्य है कि 15 अगस्त 2022 तक आम जनता इसे आकर देखें.



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