Delhi Ordinance 2023: दिल्ली अध्यादेश से जुड़ा एक बिल जल्द ही लोकसभा में पेश किया जा सकता है. आम आदमी पार्टी ने अध्यादेश जारी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. कोर्ट ने फिलहाल इस मामले को 5 जजों की संविधान पीठ को सौंप दिया है. वहीं अध्यादेश को लेकर विपक्ष का विरोध जारी है.


आम आदमी पार्टी ने अध्यादेश जारी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. कोर्ट ने फिलहाल इस मामले को 5 जजों की संविधान पीठ को सौंपा दिया है. आइए जानतें हैं कि दिल्ली अध्यादेश क्या है और आम आदमी पार्टी इस बिल का क्यों विरोध कर रही है.


क्या है मामला?
दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) अधिनियम 1991 लागू है जो विधानसभा और सरकार के कामकाज के लिए एक रूपरेखा प्रदान करने का काम करता है. साल 2021 में केंद्र सरकार ने इसमें संशोधन किया था. संशोधन के तहत दिल्ली में सरकार के संचालन, कामकाज को लेकर कुछ बदलाव किए गए थे. इसमें उपराज्यपाल को कुछ अतिरिक्त अधिकार दिए गए थे. संशोधन के मुताबिक, चुनी हुई सरकार के लिए किसी भी फैसले के लिए एलजी की राय लेनी अनिवार्य किया गया था. 


केजरीवाल सरकार ने कोर्ट में क्या अपील की थी?
आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि राजधानी में भूमि और पुलिस जैसे कुछ मामलों को छोड़कर बाकी सभी मामलों में दिल्ली की चुनी हुई सरकार को सर्वोच्चता होनी चाहिए और दिल्ली का प्रशासन चलाने के लिए आईएएस अधिकारियों पर राज्य सरकार को पूरा नियंत्रण मिलना चाहिए. 


सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर आदेश सुनाया कि एलजी के पास दिल्ली से जुड़े सभी मुद्दों पर व्यापक प्रशासनिक अधिकार नहीं हो सकते. एलजी की शक्तियां उन्हें दिल्ली विधानसभा और निर्वाचित सरकार की विधायी शक्तियों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं देती. अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा. चुनी हुई सरकार के पास प्रशासनिक सेवा का अधिकार होना चाहिए. उपराज्यपाल को सरकार की सलाह माननी होगी. पुलिस, पब्लिक आर्डर और लैंड का अधिकार केंद्र के पास रहेगा


क्या है सरकार का अध्यादेश
एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज के ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए नेशनल कैपिटल सिविस सर्विस अथॉरिटी होगी. इसमें सीएम, चीफ सेक्रेटरी और प्रिंसिपल होम सेक्रेटरी होंगे. अथॉरिटी ग्रेड ए ऑफिसरों और दिल्ली में पोस्टेड दानिक्स ऑफिसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग करेंगे. अथॉरिटी एलजी को सिफारिश भेजेगी, जिसमें ट्रांसफर-पोस्टिंग, विजिलेंस और इंसिडेंटल मामले होंगे. अथॉरिटी बहुमत से फैसला लेगी, अगर ओपिनियन में अंतर होगा तो फिर एलजी फाइनल फैसला लेंगे. 


नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली एक्ट में बदलाव किया गया है. इसके तहत एलजी को ऑफिसरों के ट्रांसफर, पोस्टिंग आदि में अधिकार दिया गया है. दिल्ली देश की राजधानी है और ऐसे में देशवासियों का इसमें हित जुड़ा हुआ है. दिल्ली का प्रशासन कैसा हो इस पर देश की नजर है. ऐसे में व्यापक देशहित में जरूरी है कि दिल्ली का प्रशासन चुनी हुई केंद्र सरकार के जरिए हो. केंद्र सरकार दिल्ली के मामले में तय करेगी कि ऑफिसर का कार्यकाल क्या हो, सैलरी, ग्रेच्युटी, पीएफ आदि भी तय करेगी. उनकी पावर, ड्यूटी और पोस्टिंग भी केंद्र तय करेगी. किसी पद के लिए उनकी योग्यता, पेनल्टी और सस्पेंशन आदि की पावर भी केंद्र के पास ही होगी. 


कैसे पास होता है अध्यादेश
संविधान के अनुच्छेद 123 में राष्ट्रपति के अध्यादेश जारी करने की शक्तियों का वर्णन है. अगर कोई ऐसा विषय हो जिस पर तत्काल कानून बनाने की जरूरत हो और उस समय संसद न चल रही हो तो अध्यादेश लाया जा सकता है. अध्यादेश का प्रभाव उतना ही रहता है जितना संसद से पारित कानून का होता है. इन्‍हें कभी भी वापस लिया जा सकता है. अध्यादेश के जरिए नागरिकों से उनके मूल अधिकार नहीं छीने जा सकते. केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति अध्यादेश जारी करते हैं चूंकि कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है. ऐसे में अध्यादेश को संसद की मंजूरी चाहिए होती है. 6 महीने के भीतर इसे संसद से पास कराना जरूरी होता है.


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