Delhi Ordinance: कांग्रेस अध्यादेश पर अरविंद केजरीवाल को क्यों नहीं दे रही साथ? राहुल गांधी ने खुद दिया जवाब, AAP का भी आया रिएक्शन
Congress-AAP: केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ दिल्ली के मुख्यमंत्री विपक्ष को एकजुट करने में लगे हैं, लेकिन कांग्रेस ने अभी तक रुख साफ नहीं किया है.
Delhi Ordinance: सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में दिल्ली के अफसरों की पोस्टिंग और तबादले का अधिकार दिल्ली की केजरीवाल सरकार को दे दिया, लेकिन केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर इसे पलट दिया. केंद्र के इस अध्यादेश के खिलाफ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विपक्ष को एकजुट करने में लगे हैं.
इसको लेकर आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान लगातार विपक्षी नेताओं से मुलाक़ातें भी कर रहे हैं. अब तक केजरीवाल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बिहार के सीएम नीतीश कुमार, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के चीफ शरद पवार और पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात कर चुके है. अध्यादेश को लेकर इन सभी नेताओं ने केजरीवाल का समर्थन करते हुए कहा कि हम राज्यसभा में इसके खिलाफ वोट करेंगे.
कांग्रेस का समर्थन क्यों जरूरी है?
इन सभी नेताओं का समर्थन मिलने के बाद भी अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें कम नहीं हुई है. दरअसल राज्यसभा में इस वक्त बीजेपी के बाद किसी पार्टी के पास सबसे ज्यादा संख्या है तो वो कांग्रेस है . ऐसे में बिना कांग्रेस के साथ मिले केजरीवाल ये लड़ाई नहीं जीत पाएंगे. ये ही वजह है कि केजरीवाल ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुलाकात का समय भी मांगा है.
हालांकि हफ्तेभर से ज्यादा का समय बीत गया है, लेकिन कांग्रेस ने अब तक केजरीवाल को मिलने का समय नहीं दिया है. वहीं इस दौरान कांग्रेस अध्यक्ष खरगे दिल्ली और पंजाब के नेताओं से इस मु्द्दे पर बैठक भी कर चुके हैं. बावजूद इसके कांग्रेस आलाकमान ने अब तक कोई फैसला नहीं लिया है.
राहुल गांधी ने क्या कहा?
इस मुद्दे पर जब अमेरिका में राहुल गांधी से एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सवाल पूछा गया तो वो सीधे जवाब देने के बजाए इस मामले को Give (देना) and Take (लेना) से जोड़कर बताने लगे. उनसे सवाल किया गया कि भारत में विपक्ष कितना एकजुट है? और कांग्रेस अध्यादेश के मुद्दे पर केजरीवाल का समर्थन क्यों नहीं कर रही? उन्होंने कहा, ''इंटरनल मामला है. हम उस पर चर्चा कर रहे हैं. विपक्ष एकजुट है. हालांकि यह थोड़ा पेचिदा है क्योंकि हम कई जगह विपक्षी दलों से ही लड़ रहे हैं. ऐसे में Give (देना) and Take (लेना) जरूरी है, लेकिन इस मामले में विपक्षी एकजुटत) में काफ़ी अच्छा काम हो रहा है.
आप ने राहुल गांधी को दिया .ये जवाब
राहुल गांधी के बयान पर आम आदमी पार्टी ने जजाब देते हुए कहा कि ये कोई दिल्ली या फिर अरविंद केजरीवाल का मामला नहीं बल्कि देश और देश के संविधान से जुड़ा मामला है. इस तरह के मामलों में Give and Take नहीं चलता.
आप नेता सौरभ भारद्वाज ने कहा कि देश के लिए सिर्फ give यानी देना होता है take यानी लेना नहीं होता है. केंद्र अध्यादेश लाकर हमारी शक्ति छीन रही है, जिसे जनता ने हमें दिया है. उन्होंने कर्नाटक का उदाहरण देते हुए कहा कि अब कल को कर्नाटक में भी सरकार की शक्ति छीनी जा सकती है. सिर्फ केंद्र को अध्यादेश ही तो लेकर आना है. उन्होंने दावा किया जो संविधान के प्रति चिंतित है उन्हें साथ में आना होगा.
भारद्वाज ने कहा कि जब राहुल गांधी को जेल की सजा सुनाई गई और उनकी सदस्यता चली गई तो अरविंद केजरीवाल पहले ऐसे राजनेता थे जिन्होंने ट्विटर के माध्यम से या मीडिया के माध्यम से कहा कि ये ग़लत हुआ है. उन्होंने कहा कि हमारे कई सारे मुद्दे में मतभेद है, लेकिन यह संविधान से जुड़ा मामला है.
अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस पर क्या कहा?
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाक़ात के बाद अरविंद केजरीवाल से जब ये सवाल पूछा गया कि क्या कांग्रेस उनको समर्थन देगी तो इस पर उन्होंने कहा कि कांग्रेस से मिलने के लिए टाइम मांगा गया है, हमें उम्मीद है की वो समय भी देंगे. अध्यादेश के खिलाफ संसद में साथ देंगे. केजरीवाल ने आगे कहा कि मैं सोच भी नही सकता कि कोई भी पार्टी इस अध्यादेश के पक्ष में कैसे वोट कर सकती है.
कांग्रेस पर क्यों दवाब बन रहा है?
कांग्रेस ने भले ही समर्थन को लेकर अपने पत्ते अभी तक नहीं खोले, लेकिन जिस तरह से एक के बाद एक कई सारी विपक्षी पार्टियां अरविंद केजरीवाल के समर्थन में आ रही है. इससे कांग्रेस पर दबाव बढ़ता जा रहा है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी के खिलाफ विपक्ष जिस एकता की बात कर रहा है वो चुनाव से पूरी तरह बिखर जाएगी. ऐसे में दूसरे दल भी कांग्रेस पर इस बात को लेकर दबाव जरूर बनाएंगे. फिलहाल कांग्रेस वैचारिक मुद्दों और चुनावी मजबूरियों के बीच फंसी हुई नजर आ रही है.
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