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Delhi pollution: क्या बायो-डिकम्पोज़र घोल है पराली का समाधान, जानिए क्या कहता है दिल्ली का किसान?

Delhi pollution: सर्वे टीम के कृषि प्रसार अधिकारी एस के मलिक ने बताया कि इस बार हमारी टीम ने साउथ वेस्ट में 4000 एकड़ ज़मीन का सर्वे किया है, जिसमें करीब 405 किसान शामिल हैं.

Delhi pollution: पराली से होने वाले प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए पिछले साल की तरह ही दिल्ली सरकार इस बार भी दिल्ली में पूसा इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर बायो डी कंपोजर घोल का छिड़काव कराएगी. दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने ऐलान किया है कि इस बार भी सभी किसानों के खेतों में निःशुल्क बायो डी कंपोजर घोल का छिड़काव कराया जाएगा. इसके लिए दिल्ली सरकार द्वारा गठित की गई कृषि विभाग के अधिकारियों की टीम किसानों के बीच जाकर उनके फॉर्म भरने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है. ऐसी करीब 25 टीमें बनाई गई हैं जो इस वक्त ग्राउंड पर काम कर रहे हैं और किसानों से उनकी धान की फसल बासमती या नॉन-बासमती, कितने एकड़ जमीन है जिस पर छिड़काव करना है, जैसी जानकारी जुटा रही है. दिल्ली के साउथ-वेस्ट ज़ोन के झटिकरा गांव में दौरे पर गई ऐसी ही एक टीम और वहां मौजूद किसानों से एबीपी न्यूज़ की टीम ने बात की.

सर्वे टीम के कृषि प्रसार अधिकारी एस के मलिक ने बताया कि इस बार हमारी टीम ने साउथ वेस्ट में 4000 एकड़ ज़मीन का सर्वे किया है, जिसमें करीब 405 किसान शामिल हैं. इसकी रिपोर्ट हमने सबमिट की है. इस बार हमने गैर बासमती और बासमती दोनों का ही सर्वे किया है. लेकिन साउथ वेस्ट एरिया में 99% बासमती की खेती है. पिछली बार हमारी टीम ने 1400 एकड़ में छिड़काव किया था इस बार हमारे पास 4000 एकड़ का एरिया आया है. जिस समय छिड़काव कराया जाएगा, उस समय 100-200 एकड़ एरिया घट या बढ़ सकता है. अगर कोई किसान छूट गया होगा तो जिस समय छिड़काव शुरू किया जाएगा उसी समय किसान से फॉर्म भरा लिया जायेगा और स्प्रे किया जाएगा किसी भी किसान को मना नहीं किया जाएगा.

छिड़काव के लिए इस बार ज़्यादा किसानो के सामने आने के बारे बताते हुए एस के मालिक ने कहा कि पिछले साल किसानो में झिझक थी कि ये घोल कहीं ऐसा कोई फंगस तो नहीं पैदा करेगा ज़मीन में, जिससे गेहूं का जर्मीनेशन न हो पाए. लेकिन पिछले साल का जो परिणाम रहा उसे देखते हुए यहां का किसान बहुत उत्सुक है बायो-डिकम्पोज़र का स्प्रे कराने के लिए. क्योंकि इसका एक लाभ ये भी है कि जिस खेत मे घोल का स्प्रे हो जाता है उसकी पराली जल्दी गलती है तो उससे किसान को एक या दो जुताई कम करनी पड़ती है. पहले किसान को जो डंठल बचती है खेत में उसको खत्म करने के लिए ज़्यादा जुताई करनी पड़ती थी जिससे मिट्टी के अंदर मिल जाए. हमारा स्टाफ किसानों से फीडबैक लेता रहता है जिसके आधार पर ये सर्वे किया गया है.

कृषि प्रसार अधिकारी एस के मालिक ने कहा कि झटिकरा गांव के किसान कृष्णकुमार ने पिछली बार अपने 8 एकड़ खेत में बायो-डिकम्पोज़र घोल का छिड़काव कराया था. पिछली बार के परिणाम से वो बेहद संतुष्ट हैं और इस बार भी अपने खेत मे छिड़काव कराने के लिए तैयार हैं. कृष्णकुमार ने बताया कि बायो-डिकम्पोज़र का रिजल्ट अच्छा था डंठल जल्दी से ज़मीन में गल गई थी और गेहूं की पैदावार भी अच्छी हुई थी. छिड़काव के बाद गेहूं की फसल में एक एकड़ में करीब एक क्विंटल पैदावार ज़्यादा का फर्क पड़ा था. इस बार भी करीब 20-25 एकड़ खेत है, जिसमें छिड़काव कराना है और उसके लिए फॉर्म भी भर दिया है. इस बार नये लोग भी जुड़ रहे हैं जो कह रहे हैं कि वो छिड़काव इस बार कराना चाहते हैं.

किसान भगवान दत्त शर्मा ने भी पिछली बार अपने खेतों में बायो-डिकम्पोज़र घोल का छिड़काव कराया था. इस बार ज़्यादा बारिश के चलते उनके खेतों में पानी भरा हुआ है, लेकिन बायो-डिकम्पोज़र के इस्तेमाल को फायदेमंद बताते हैं. भगवान दत्त शर्मा ने कहा कि पिछली बार 6 एकड़ खेत मे छिड़काव कराया था और बहुत बढ़िया परिणाम रहा था. जुताई और प्रोडक्शन दोनो मे ही फर्क पड़ा था. डंठल मिट्टी में जल्दी गल गई थी बगैर छिड़काव के गलने में और उसे बारीक करने में काफी दिन लगते हैं. पहले 6-7 बार जुताई करनी पड़ती थी लेकिन घोल के छिड़काव के बाद 2-3 जुताई में ही काम हो गया. खर्चा कम हुआ और समय भी बचा. एक एकड़ में करीब 450-500 रुपए जुताई का फर्क पड़ गया था और हमारी बचत हुई. ज़्यादा बारिश के चलते इस बार अभी खेतों में बारिश के कारण पानी भरा हुआ है अगर पानी सूख गया तो दोबारा छिड़काव ज़रूर कराएंगे. पिछली बार का रिजल्ट देखकर इस बार सब छिड़काव कराने कर इच्छुक हैं.

झटिकरा गांव के किसान राजकुमार ने पिछली बार छिड़काव नहीं कराया था लेकिन इस बार वो 32 एकड़ ज़मीन में छिड़काव कराना चाह रहे हैं. राजकुमार ने बताया कि मेरी 75 साल की उम्र है जन्म से खेती कर रहे हैं. पहले इस दवाई का पता नहीं था पड़ोसियों ने छिड़काव कराया उसमें बड़ा फायदा हमें दिखाई दिया. डंठल गल जाता है और उसमें फसल बहुत अच्छी होती है. डंठल की खाद भी लगती है उससे हमको बहुत फायदा दिखाई दिया. पड़ोसियों की बहुत अच्छी फसल हुई तो हम भी इस बार कराएंगे. पिछली बार डर था कि नई दवा है पता नहीं काम करेगी कि नहीं करेगी. लेकिन अगर कोई अच्छी चीज हो जैसे बीज, दवाई या खाद उसका हम अच्छे तरीके से प्रयोग करते हैं. ये जो डंठल रह जाता है ये पहले बहुत परेशान करता था, बुआई ठीक से नहीं हो पाती थी. पराली पहले बिकती नहीं थी उसको हम आग लगा देते थे जो बहुत गलत था. उससे प्रदूषण बहुत होता था. अब जो ऊपर वाली पराली है वह बिक जाती है और डंठल में दवाई का छिड़काव करा देते हैं हमारे पास 32 एकड़ जमीन है जिसमें इस बार हम छिड़काव कराएंगे.

कैसे तैयार होता है बायो-डिकम्पोजर घोल-

पराली को खाद में बदलने के लिए पूसा इंस्टिट्यूट ने 20 रूपए की कीमत वाले 4 कैप्सूल का एक पैकेट तैयार किया है. इन 4 कैप्सूल से छिड़काव के लिए 25 लीटर घोल बनाया जा सकता है और 1 हेक्टेयर में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. घोल बनाने के लिए 5 लीटर पानी मे 100 ग्राम गुड़ उबाला जाता है और ठंडा होने के बाद घोल में 50 ग्राम बेसन मिलाकर कैप्सूल डाला जाता है. इसके बाद घोल को 10 दिन तक एक अंधेरे कमरे में रखा जाता है. इसके बाद पराली पर छिड़काव के लिए घोल तैयार हो जाता है.

24 सितंबर को कड़कड़ी नाहर में बड़े पैमाने पर घोल बनाने का काम शुरू कर दिया जाएगा जिसका उद्घाटन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल करेंगे. पर्यावरण मंत्री ग़ोपाल राय के मुताबिक शुरुआत में 4000 एकड़ जमीन पर छिड़काव के हिसाब से घोल बनाने की तैयारी शुरू की गई है, मांग बढ़ने पर उत्पादन बढ़ा दिया जाएगा. साथ ही, 5 अक्टूबर से छिड़काव का काम भी शुरू कर दिया जाएगा.

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