नई दिल्लीः फरवरी 2020 में दिल्ली दंगों में कई लोगों ने जान गंवाई तो वहीं कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्हें मौत छूकर निकल गई. इन्हीं में से एक हैं खजूरी खास इलाके में रहने वाले अजय कुमार झा. 25 फरवरी को जब खजूरी खास में दंगे भड़के तब अजय अपने काम पर थे. दंगे भड़कने की बात फैलते ही पेशे से सेल्समैन अजय कुमार भी और लोगों की तरह अपने घर की तरफ भागे. लेकिन घर से कुछ दूरी पर ही वो दंगाइयों की भीड़ में फंस गये और उसके बाद जो हुआ वो याद कर आज भी अजय झा के रोंगटे खड़े हो जाते हैं.


25 फरवरी के उस दिन को याद करते हुए अजय झा ने एबीपी न्यूज़ से कहा, "एकदम से शोर हुआ भागो-भागो जैसे ही भागना शुरू हुए पता नहीं कहां से किसी एक शख्स को गोली लगी. लोगों ने शोर मचाया की गोली लग गई है, मुझे लगा कि मुझे गोली नहीं लगी है लेकिन थोड़ी देर बाद जब देखा कि खून निकल रहा है तो समझ आया कि गोली लग गई है और मैं बेहोश हो गया. मुझे सीधे हाथ के बाजू में गोली लगी थी और वहां से निकलकर सीने में जाकर लगी और अंदर ही फंस गई थी."


लगा कि अब मेरा वक्त पूरा हो गया है


अजय झा ने बताया, "गोली लगने के बाद लोगों ने मुझे उठाकर सिविल लाइंस के सुश्रुत ट्रामा सेंटर में पहुंचाया. डॉक्टर्स को पहले गोली मिल नहीं रही थी कि गोली कहां फंसी हुई है. उसमें काफी टाइम लग रहा था और मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी. उस समय लग रहा था कि अब मेरा वक्त पूरा हो गया है, क्योंकि सांस रुक रही थी. फिर एक डॉक्टर आये जिन्होंने कहा कि इनका ट्रीटमेंट शुरू करो चाहे जैसे भी हो. एक नली डाली गई, 3-4 CT स्कैन किये गये तब जाकर गोली नज़र आई. गोली सीने में ही अटकी हुई थी. 3 दिन बाद होश आया तब पता चला कि हमारे इलाके में दंगे इतने भड़क गये थे. घर पर सब परेशान थे सब बेहाल थे क्योंकि किसी को हालचाल भी नहीं पता चल पा रहा था. करीब 13 दिन तक अस्पताल में रहा था उसके बाद कोरोना शुरू हो गया तो डॉक्टर से सलाह लेकर आगे का ट्रीटमेंट घर पर ही कराया. उसके बाद करीब 25 दिन तक दवाइयां मंगा कर घर पर ही इलाज कराया."


अब तक नहीं मिला पूरा मुआवज़ा


अस्पताल के दस्तावेज और उस दिन की अपनी तस्वीरों को दिखाते हुए अजय झा ने कहा, "उन्हें 2 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाना था लेकिन अभी तक 20 हज़ार ही मिले हैं. उसके बाद से कुछ और मदद नहीं दी गई. एसडीएम ऑफिस में सारे डॉक्यूमेंट मैंने जमा करा दिए हैं, फॉर्म भी भर दिया है कहीं से भी कोई और सहायता नहीं मिली. बाहर के भी कुछ लोगों ने सहायता के लिए कहा था वह भी नहीं मिली. अभी भी हाथ पूरा उठाने में तकलीफ होती है, दर्द होने लगता है पेन किलर खा कर काम कर रहे हैं. प्राइवेट नौकरी है काम नहीं करेंगे तो बच्चों को खिलाएंगे क्या. लेकिन उस हादसे के बाद से ज्यादा नहीं कर पाते, पत्नी दुकान चला रही हैं. वह जितना कर पा रही हैं कर लेती हैं मैं सहायता कर देता हूं."


25 फरवरी को परिवार मनाएंगे जन्मदिन


अस्पताल की उस दिन की तस्वीर को देखकर अजय कहते हैं कि अपनी तस्वीर देखकर फरवरी का यह दिन बार-बार याद आता है. मैंने कभी सोचा ही नहीं था कि हमारे इलाके में इतना बड़ा हादसा हो सकता है. एकदम से भीड़ आई और पत्थर फेंकने शुरू कर दिये. आज भी मेरे रोंगटे कांपते हैं उस दिन को सोचकर. अभी भी जब उस तरफ जाता हूं तो डर लगता है. इस बार 25 फरवरी को सब परिवार वाले जन्मदिन मनाएंगे क्योंकि उनका कहना है कि यह मेरा नया जन्म है. सबकी बहुत दुआ थी जो मुझे लगी है. मैं भी इस बात को सच मानता हूं कि किसी की दुआ ही थी जो मैं जिंदा बच गया. वरना जिस तरह से गोली लगी थी अगर 1 इंच और आगे बढ़ती तो मैं नहीं बचता.


बहुत मुश्किल से गुजरा था वो समय- रूबी झा


अजय कुमार की पत्नी रूबी झा उस दिन को याद करते हुए कहती हैं, "उस दिन शाम 6 बजे हमें पता लगा कि अजय को गोली लगी है और वह हॉस्पिटल में भर्ती है. दंगे हो रहे थे इसलिये घर से बाहर निकलने वाले हालात नहीं थे, हम लोग घर पर ही रो-रो कर बहुत मुश्किल से वह समय गुजार रहे थे. उस दिन बहुत खराब स्थिति थी, लग नहीं रहा था कि अजय बच पाएंगे. भगवान की दया है कि सही सलामत हैं. इस बात को तो हम मानते हैं कि अब यह इनका नया जन्म है. तबियत अभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं है. कोई भारी सामान नहीं उठा सकते. ऐसे सारे काम अभी मैं करती हूं."


दिल्ली में कोरोना के आज 128 नए मामले आये सामने, एक मरीज की मौत