Medha Patkar Defamation Case: दिल्ली की साकेत कोर्ट ने शुक्रवार (24 मई) को सामाजिक कार्यकर्ता और नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर को मानहानि मामले में दोषी ठहराया है. उनके खिलाफ तत्कालीन केवीआईसी अध्यक्ष वीके सक्सेना (अब दिल्ली एलजी) की ओर से याचिका दायर की गई थी.


न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, साकेत कोर्ट के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने पाटकर को आपराधिक मानहानि का दोषी पाया. कानून के मुताबिक, उन्हें सजा के तौर पर दो साल की जेल या जुर्माना या फिर दोनों मिल सकते हैं. पाटकर और दिल्ली एलजी दोनों 2000 से कानूनी लड़ाई में फंसे हुए हैं. तब मेधा पाटकर ने अपने और नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए वीके सक्सेना के खिलाफ मुकदमा दायर किया था.






अदालत ने क्या कहा?


साकेत कोर्ट ने मेधा पाटकर को दोषी ठहराते हुए कहा, "शिकायतकर्ता को कायर, देशभक्त नहीं और हवाला लेनदेन में शामिल होने का आरोप लगाने वाले आरोपी के बयान न केवल मानहानिकारक थे, बल्कि नकारात्मक धारणाओं को भड़काने के लिए भी तैयार किए गए थे.”


क्या है मामला?


वीके सक्सेना उस समय अहमदाबाद स्थित एनजीओ नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे. एक टीवी चैनल पर उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और मानहानिकारक प्रेस बयान जारी करने के लिए सक्सेना ने उनके खिलाफ दो मामले भी दर्ज किए थे. वीके सक्सेना ने उनके खिलाफ अपमानजनक बयान देने के आरोप में दो मामले दर्ज कराए थे. जिस मानहानि मामले में पाटकर को दोषी ठहराया गया है वह साल 2003 का है.


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