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अधूरे इंसाफ की दर्दनाक कहानी: देश में सजा क्यों नहीं मिलती?

नई दिल्ली: आज 50 परिवार पूछ रहे हैं हमें अधूरा इंसाफ क्यों मिला? 12 साल पहले दीवाली से 2 दिन पहले 29 अक्टूबर 2005 को दिल्ली में तीन जगह सीरियल बम ब्लास्ट हुआ. जिनमें से एक जगह सरोजनी नगर मार्केट में 50 लोग मारे गए. आज 12 साल बाद पता चला उन पचास लोगों को मारने वाला, धमाका करने वाला तो कोई दोषी है ही नहीं. दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में आज 12 साल बाद सरोजनी नगर बम धमाके के गुनहगारों पर फैसला आया. सुबह से इस फैसले का मुझे भी इंतजार था. क्योंकि अदालत की खबरें कवर करने के दौरान मैंने धमाके के पीड़ित परिजनों का दर्द देखा है. आज 12 साल बाद फैसला आया तो तो पता चला कि उस दर्द को अधूरा इंसाफ मिला है. पुलिस की सुस्त और अधूरी जांच के कारण बम धमाका करने के आरोप में कोई दोषी साबित नहीं हुआ. यानी सरोजनी नगर में बम धमाका करने वाला कोई मिला ही नहीं. यानी 50 लोगों को धमाके में मारने वाला बम किसने रखा, पुलिस उसे ढूंढ ही नहीं पाई. 12 साल बाद भी 50 लोगों को धमाके में मारने वाला कोई दोषी ही नहीं साबित हुआ. पुलिस ने चार्जशीट में देश के खिलाफ जंग छेड़ने, साजिश रचने, हथियार जुटाने, हत्या और हत्या की कोशिश के आरोप लगाए थे. तारिक अहमद शाह को आतंकी संगठन लश्कर से जुड़ा बताया था. तारिक अहमद शाह को हमले का मास्टरमाइंड बताया था. लेकिन अदालत में ना सिर्फ दो आरोपी बरी हो गए, बल्कि जिस मोहम्मद फाजली को मास्टरमाइंड बताया गया उसे अदालत ने सिर्फ गैरकानूनी गतिविधि चलाने का दोषी माना. तो सवाल ये कि फिर चूक कहां हुई. 200 गवाह जिस मामले में पेश हुआ, वहां पुलिस के सबूत क्या कमजोर थे? तो फिर सरोजनी नगर में किसने धमाका किया ? पुलिस कहती है कि सरोजनी नगर 2005 धमाके के पीछे लश्कर कमांडर अबु हुजैफा था. अबु हुजैफा ने 4 पाकिस्तानियों को बम रखने भेजा था. बम रखने वाले चारों बाद में पाकिस्तान वापस भाग गए. पुलिस के मुताबिक अबु हुजैफा को 2006 में कश्मीर के पट्टन में मार गिराया गया था. यानी बम रखने वाले भाग गए. पुलिस के मुताबिक बम रखवाने वाला मारा गया. और जिन तीन लोगों को धमाके की साजिश में गिरफ्तार किया. उनमें से दो बरी हो गए. एक धमाका करने का दोषी नहीं हुआ. 12 साल बाद भी बेटे, बहू, पोते को खोने वाली बुजुर्ग सेलिना के लिए अपनी पोती के साथ इंसाफ का इंतजार और लंबा हो गया है. पुलिस कैसे चूक गई पुलिस साबित नहीं कर पाई कि तारिक डार को 14 लाख रुपए कहां खर्च करने को मिले ? पुलिस का बड़ा सबूत था तारिक और लश्कर कमांडर की फोन बातचीत लेकिन पुलिस ये ब्योरा नहीं दे पाई किस डिवाइस से बातचीत रिकॉर्ड की गई. तारिक डार दिल्ली आया था, पुलिस सिर्फ एक गवाह पेश कर पाई. तारिक जिस होटल में रुका था, वहां के रिसेप्शनिस्ट पहचान नहीं कर पाया. तारिक का फाजली और रफीक से कनेक्शन साबित भी नहीं हो पाया. जिस कारण कोर्ट ने ये नहीं माना कि तारिक डार ही धमाके का मास्टरमाइंड था. देश में सजा क्यों नहीं मिलती? देश में आम आदमी वाकई इंसाफ के हक से बहुत दूर खड़ा है. और ये सच्चाई किसी फिल्म के डॉयलॉग नहीं बल्कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं. जरा ध्यान से आप इन्हें देखिए. कैसे आम आदमी इंसाफ का इंतजार करता रह जाता है. सिर्फ 2015 के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि देश में 32127 कत्ल के मामलों में से सिर्फ 39 फीसदी केस में सजा हो पाई. 65255 दंगों के केस में सिर्फ 17 फीसदी मामलों में सजा हुई. देश में रेप के प्रति चार केस में तो सिर्फ एक केस में ही सजा मिल पाती है. देश में दलितों के खिलाफ भी सजा देने में सिस्टम सुस्त हो जाता है. 10 साल में देश में दलितों के खिलाफ अपराध में सजा मिलने की दर सिर्फ 28 फीसदी थी. जब हमने ये जानना चाहा कि आखिर क्यों सजा नहीं मिल पाती है ? क्यों अपराधी छूट जाते हैं. क्यों इंसाफ अधूरा रह जाता है. तो इसकी बड़ी वजह समझ आई, सबूतों की तलाश में पुलिस की सुस्त जांच. अदालत में कैसे सबूतों के अभाव में अपराधी छूट जाते हैं. इसका एक उदाहरण अब आपको दिखाते हैं. प्रियदर्शिनी मट्टू रेप और हत्या के मामले में निचली अदालत के जज जीपी थरेजा ने आरोपी संतोष को 3 दिसंबर, 1999 को ये कहते हुए बरी किया था कि वो जानते हैं कि हत्या संतोष ने की है, लेकिन सबूतों के अभाव में उसे छोड़ा जा रहा है. सबूत नहीं मिलते. गवाह मुकर जाते हैं. अमीर लोग गवाहों को खरीद लेते हैं. पुलिस सिस्टम भ्रष्टाचार का शिकार होकर केस को कमजोर कर देता है. ये सब आपको पहले से पता है. लेकिन इंसाफ में देरी होने की कुछ और वजहें भी हैं, उन्हें भी आप जानिए. देश में 5 लाख 50 हजार पुलिसवालों की कमी है. तो जांच धीरे ही होती है. देश में 44 फीसदी जजों की कमी है. तो ट्रायल लंबा चलता है. बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने हाल में ही बताया है कि देश के 45 फीसदी वकीलों की डिग्री असली नहीं है. यानी इंसाफ दिलाना है और पूरा दिलाना है तो किसी एक को नहीं कोस सकते. पूरे सिस्टम के पेंच कसने होंगे. वर्ना यूं ही देश की जनता सालों तक न्याय का इंतजार करेगी. और फिर अधूरा इंसाफ पाकर टूटने लगेगी.
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