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LG और केजरीवाल सरकार में ठनी, लोकसभा में दिल्ली सेवा बिल पास होते ही एक दूसरे पर लगाए ये नए आरोप

Delhi LG Vs Kejriwal: लोकसभा में दिल्ली सेवा बिल पास हो गया, जिसके बाद दिल्ली सरकार और एलजी ने एक दूसरे पर आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं.

Delhi Ordinance Bill: दिल्ली सरकार ने एक बार फिर दिल्ली के उपराज्यपाल पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि एलजी ने संवैधानिक व्यवस्था और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लंघन कर चुनी हुई सरकार और मुख्यमंत्री को नजरअंदाज करने के लिए मुख्य सचिव को कड़ी फटकार लगाई है.

मुख्य सचिव, अपने संवैधानिक कर्तव्यों का उल्लंघन करते हुए स्थानांतरित विषयों पर आधिकारिक फाइलें दिल्ली सरकार के संबंधित मंत्री या मुख्यमंत्री के माध्यम से भेजने के बजाय सीधे LG कार्यालय को भेज रहे हैं. दिल्ली सरकार के मुताबिक इस मामले में दिल्ली की मेयर डॉ. शैली ओबेरॉय ने उचित प्रक्रिया के तहत ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन शहर में एशिया पैसिफिक सिटीज समिट-2023 में भाग लेने की अनुमति देने का अनुरोध किया था.

यह शिखर सम्मेलन 11 से 13 अक्टूबर 2023 के बीच होना है. शिखर सम्मेलन की थीम ‘सेपिंग सिटीज फॉर अवर फ्यूचर’ है. इसके अलावा तीनों थीम कनेक्शन, सिटीज ऑफ सस्टेनेबिलिटी और सिटीज ऑफ लेगेसी है, जिनमें प्रौद्योगिकी, डेटा, विकास और लोगों के कल्याण पर चर्चा की जाएगी. 

मेयर समिट के समझौतों का लोगों के जीवन पर पड़ सकता है सीधा प्रभाव
दिल्ली सरकार ने बताया कि मेयर ने शिखर सम्मेलन में भाग लेने का अनुरोध इस वजह से किया है, क्योंकि इससे एमसीडी को अत्यधिक लाभ होगा. समिट में मेयर, नीति निर्माताओं, व्यापारिक नेताओं आदि के बीच विचारों और उपलब्धियों का आदान-प्रदान होगा. यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि 2019 में हुए इस शिखर सम्मेलन में दुनियाभर से आए मेयर्स ने 9.9 करोड़ से अधिक लोगों का प्रतिनिधित्व किया था. ऐसे में इस मेयर समिट के समझौतों का लोगों के जीवन पर सीधा प्रभाव पड़ सकता है. 

एमसीडी कमिश्नर को एक प्रस्ताव बनाकर था भेजा
दिल्ली सरकार ने जानकारी देते हुए कहा कि मेयर शैली ओबेरॉय की ओर से 15 जून को एमसीडी कमिश्नर को एक प्रस्ताव बनाकर भेजा गया था. प्रस्ताव में एमसीडी कमिश्नर ज्ञानेश भारती ने यह भी प्रस्ताव रखा कि मेयर के साथ एमसीडी का एक अधिकारी भी रह सकता है. प्रक्रिया के अनुसार एमसीडी आयुक्त ने फाइल को शहरी विकास सचिव संजय गोयल को भेज दी और उन्होंने इसे मुख्य सचिव नरेश कुमार के पास भेज दिया. इसके बाद मुख्य सचिव ने चुनी हुई सरकार को दरकिनार करने का फैसला किया और फाइल को मुख्यमंत्री और संबंधित मंत्री (शहरी विकास) सौरभ भारद्वाज या उनके कार्यालय को भेजे बिना सीधे एलजी के पास भेज दी. 

दिल्ली सरकार के मुताबिक, दिल्ली की संवैधानिक व्यवस्था और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार, निर्वाचित सरकार को हस्तांतरित विषयों से संबंधित सभी फाइलों को अनिवार्य रूप से पहले संबंधित मंत्री और फिर मुख्यमंत्री के पास भेजा जाना चाहिए. सीएस को निर्वाचित सरकार और सीएम को दरकिनार करने और स्थानांतरित विषयों पर फाइलें सीधे एलजी को भेजने की अनुमति नहीं है. 

दिल्ली सरकार का कहना है कि यह पहला मामला नहीं है, जब मुख्य सचिव ने संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन किया है और निर्वाचित सरकार के अधिकारों को दरकिनार किया है. इस मामले में एलजी ने मुख्य सचिव को प्रक्रिया का उल्लंघन करने पर कड़ी फटकार लगाई है और अपनी नाराजगी व्यक्त की है. एलजी ने मुख्य सचिव की कार्रवाई की निंदा की है और निर्देश दिया है कि फाइल उचित माध्यम से यानी संबंधित मंत्री और मुख्यमंत्री कार्यालय के जरिए भेजी जाए. 

विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने राज्य (एनसीटी दिल्ली) बनाम भारत संघ (2018) 8 एससीसी 501 के मामले में अपने फैसले में कहा है कि आरक्षित विषयों लॉ एंड ऑर्डर, पुलिस और भूमि को छोड़कर एनसीटी दिल्ली की निर्वाचित सरकार के पास राज्य और समवर्ती सूची में शामिल सभी विषयों पर विशेष कार्यकारी शक्तियां हैं. इन्हें हस्तांतरित विषय भी कहा जाता है.

क्या है सुप्रीम कोर्ट का 2018 में जारी किया हुआ आदेश 
इस संबंध में, 4 जुलाई, 2018 को जारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पैरा 284.17 में कहा गया है कि अनुच्छेद 239AA (4) में नियोजित ‘सहायता और सलाह’ का अर्थ यह समझा जाना चाहिए कि एनसीटी के उपराज्यपाल दिल्ली मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बंधे है और यह स्थिति तब तक सही है जब तक कि उपराज्यपाल अनुच्छेद 239AA के खंड (4) के प्रावधान के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं करते हैं. उपराज्यपाल को स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति नहीं है. उपराज्यपाल को मंत्रिपरिषद की ‘सहायता और सलाह’ पर कार्य करना होगा या फिर वो राष्ट्रपति से उस संदर्भ पर लिए गए निर्णय को लागू करने के लिए बाध्य हैं. इसके अलावा, उसी फैसले के पैरा 475.20 में कहा गया है कि सरकार के कैबिनेट में निर्णय लेने की वास्तविक शक्ति मंत्रिपरिषद में निहित होती है, जिसका प्रमुख मुख्यमंत्री होता है.

अनुच्छेद 239AA(4) के मूल 38 भाग में निहित सहायता और सलाह का प्रावधान इस सिद्धांत को मान्यता देता है. जब उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के आधार पर कार्य करता है तो यह माना जाता है कि सरकार के लोकतांत्रिक रूप में वास्तविक निर्णय लेने का अधिकार कार्यपालिका में निहित है. यहां तक कि जब उपराज्यपाल प्रावधान की शर्तों के तहत राष्ट्रपति को संदर्भ देता है तो उसे राष्ट्रपति से लिए गए निर्णय का पालन करना होता है. इस प्रकार उपराज्यपाल के पास निर्णय लेने का कोई स्वतंत्र अधिकार नहीं है. 

दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि इसके अलावा पांच जजों की संविधान पीठ ने 2017 की सिविल अपील 2357 (सेवा निर्णय) में 11 मई 2023 के अपने आदेश में इस स्थिति को बरकरार रखा है. कोर्ट ने दोहराया है कि अनुच्छेद 239AA और 2018 में सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के फैसले के संदर्भ में एलजी दिल्ली सरकार के विधायी दायरे में आने वाले मामलों में मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से काम करने के लिए बाध्य हैं. 

दिल्ली के उपराज्यपाल ने किया आरोपों का खंडन
दिल्ली सरकार के इन आरोपों पर दिल्ली के उपराज्यपाल के दफ्तर की तरफ से भी बयान सामने आया है. उपराज्यपाल के दफ्तर ने कहा कि इस तथ्य के बावजूद कि मौजूदा नियमों के अनुसार, CS को फाइल सीधे LG को भेजनी थी. LG सचिवालय ने फाइल को मुख्य सचिव को वापस भेज दिया और LG की इच्छा बताते हुए कहा कि फाइल को CM के माध्यम से फिर से उनके पास भेजा जाए, केवल इसलिए कि LG हमेशा की तरह चाहते थे कि CM को फैसलों पर लूप में रखा जाए. खासकर वे फैसले जो उनके राजनीतिक सहयोगियों से संबंधित थे. 

उपराज्यपाल दफ्तर के अनुसार पहले भी AAP सरकार और उनकी पार्टी के पदाधिकारियों से लगाए गए राजनीतिक रूप से आरोपों के विपरीत, LG ने हमेशा सभी मामलों में CM को लूप में रखा है. यहां तक कि उन मामलों में भी, जिन पर इसकी आवश्यकता नहीं थी. LG दफ्तर ने आरोप लगाते हुए कहा कि हालांकि, सरकार ने हमेशा झूठ बोलने और फैलाने का सहारा लिया है और इस मामले में भी एलजी से CS को फटकार और निंदा जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है. ऐसी बातें जो कभी लिखित या मौखिक रूप से नहीं हुईं. LG दफ्तर ने साफ किया है कि सरकार और उसके पदाधिकारियों को सलाह दी जाती है कि वे उच्च कार्यालयों के नाम को कलंकित करने के ऐसे घृणित प्रयासों से बचें. 

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