रानी लक्ष्मी बाई, सुभाष चंद्र बोस, बहादुर शाह जफर, महाराणा प्रताप और न जाने कितने अनगिनत शहीद जिन्होंने अपनी जिंदगी वतन के सदके में वार दी. इन शहीदों की याद हमेशा ताजा रहे और देश की भावी पीढ़ी इनके बलिदान को समझे. इसके लिए दिल्ली की एक गैर सरकारी संस्था लगातार कोशिशें कर रही हैं.


उसकी ये कोशिशें भी अनोखी और हैरान करने वाली हैं. ये संस्था एक दशक से अधिक वक्त से इन अमर शहीदों की तस्वीरें बनाती है. इन तस्वीरों को बनाने में कलाकार कूची का तो इस्तेमाल करते हैं, लेकिन रंग का इस्तेमाल नहीं करते. आपको भी आश्चर्य होगा कि आखिर जब तस्वीरें बनाने में रंग का इस्तेमाल नहीं होता तो फिर कैसे ये तस्वीरे तैयार होती हैं. दरअसल नेताजी सुभाष चंद्र बोस के "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दो" के नारे पर अमल करते हुए ये तस्वीरें इंसान के खून से तैयार होती हैं. 




  • शहीद भगत सिंह की खून से बनी तस्वीर


एक ख्वाब जो बना हकीकत 


दिल्ली के रोहिणी के सेक्टर-9 में कैप्टन संजीव दहिया सीनियर सेकेंडरी स्कूल के प्रिंसिपल रहे स्वर्गीय रवि चंद्र गुप्ता ने आज से लगभग 31 साल पहले एक ख्वाब देखा था. नेताजी सुभाषचंद्र को अपना आदर्श मानने वाले गुप्ता 1991 में इस स्कूल के वाइस प्रिंसिपल हुआ करते थे. उन्होंने नेताजी के भारत की आजादी के वक्त दिए नारे "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा" के जरिए लोगों में खत्म होती जा रही देशभक्ति का भावना को जगाने के लिए अनोखा प्रयोग किया था.


तब उन्होंने अपने खून से सुभाष चंद्र बोस की एक तस्वीर बनाई थी. साल 1997 में वो इस स्कूल के प्रिंसिपल पद से रिटायर हुए और इसके बाद से ही लगातार वो अपने ख्वाब को पूरा करने में लग गए. उनका मानना था कि देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले शहीदों को लोग भूलते जा रहे हैं, जिनके बलिदानों की वजह से आज करोड़ों भारतवासी आजाद फिजा में सांस ले रहे हैं. ऐसे में लोगों को ये याद दिलाने की जरूरत है कि इस आजादी की कितनी अहमियत है और इसकी कद्र की जानी चाहिए. 




  • शहीद भगत सिंह के साथी क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त


एक इंटरव्यू में स्वर्गीय रवि चंद्र गुप्ता ने कहा था "मैंने इसे जनता को आकर्षित करने और उनका ध्यान खीचने के लिए शुरू किया था. यदि तस्वीर खून से बनी हैं तो लोग उनमें अधिक दिलचस्पी लेते हैं. खून से एहसास पैदा होते हैं." इस सोच को लेकर उन्होंने 18 अक्टूबर 2000 को शहीद स्मृति चेतना समिति को रजिस्टर करवाया. इस समिति का काम था अपने खून से क्रांतिकारियों और अमर शहीदों की तस्वीरें बनाने का.


धीरे-धीरे उनकी इस मुहिम में लोग जुड़ते गए और आज इस संस्था के खून से बनाई क्रांतिकारियों के तस्वीर देश के कई संग्रहालयों की शोभा बढ़ा रहे हैं. 27 अप्रैल 2017 को दुनिया को अलविदा कह गए रवि चंद्र गुप्ता के खुद 100 तस्वीरों के लिए रक्तदान किया जब तक कि उनका सेहत खराब नहीं होने लगी. उन्होंने अपनी मौत से पहले आजादी शहीदों पर 27 से अधिक किताबें लिखी हैं.  उनके काम को अब मौजूदा संस्थापक डॉ प्रेम कुमार शुक्ला देख रहे हैं. डॉ शुक्ला कहते हैं कि उनके गुरु जी ने 2012 में उन्हें इस समिति का कामकाज सौंपा था. तभी से वो उनके शुरू किए गए काम को आगे बढ़ा रहे हैं.





  • बाडरोली किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल


100 मिली खून से तैयार होती 2-3 तस्वीरें


शहीद स्मृति चेतना समिति के मौजूदा संस्थापक 50 साल के डॉ प्रेम कुमार शुक्ला  दिल्ली के सरकारी स्कूल में प्रवक्ता हैं. वो कवि भी है और आल्हा की वीरता के किस्से गाते हैं. वह बताते हैं कि खून से बने क्रांतिकारियों और शहीदों की 100 से ज्यादा तस्वीरों की प्रदर्शनी से शुरू हुआ ये सिलसिला आज करोड़ों तक पहुंच गया है. वह कहते हैं कि उन्होंने 150 से अधिक क्रांतिकारियों की तस्वीरें दोबारा से बनवाने के लिए भी खुद का खून दिया है. वह कहते हैं. "मैं तस्वीरों के लिए साल में चार बार रक्तदान करता हूं."


उनका कहना है कि जब उनके गुरु स्वर्गीय रवि चंद्र गुप्ता ने अपने खून से पहला तस्वीर बनवाया था तो उसे गुरु दर्शन सिंह बिंकल ने बनाया था. बीते 31 साल से बिंकल ही खून से क्रांतिकारियों की तस्वीर बनाते हैं. आज वो 60 साल के है, लेकिन उनके जोश में कोई कमी नहीं है. तस्वीर बनाने के लिए खून केवल लोकल डायग्नोस्टिक सेंटर में लिया जाता है. पहली बार समिति के संस्थापक रवि चंद्र गुप्ता ने यहीं खून दिया तब से यहीं ब्लड बैंक तस्वीरों के लिए खून लेता है. 





  • क्रांतिकारी भाई बालमुकुंद अंग्रेजों ने 8 मई 1915 को इन्हें दिल्ली में फांसी पर लटका दिया था.


वह बताते हैं कि खून देने वाले इस लोकल डायग्नोस्टिक सेंटर में जाते हैं. यहां उनका खून निकालकर एंटी-कोगुलेंट के साथ मिलाया जाता है. एंटी  एंटी-कोगुलेंट दवाओं का वह वर्ग है जो खून को जमने से रोकने के लिए इस्तेमाल होता है. इंसान का खून निकालने के बाद चिपचिपा थक्कों में जमने लगता है. एंटी-कोगुलेंट मिलाने से वो जमने नहीं पाता.


इस खून को 50 मिलीलीटर की बोतलों में डालकर तस्वीर बनाने वाले कलाकार को दिया जाता है. आमतौर पर 100 मिली खून दो से तीन तस्वीरें बनाने के लिए काफी होता है. डॉ प्रेम कुमार शुक्ला का कहना है कि हम छोटे संग्रहालयों के लिए खून से बनाए क्रांतिकारियों की तस्वीर देते हैं तो लोगों की मांग पर इनकी प्रदर्शनी भी लगाते हैं. इसके लिए हम लोगों से आने-जाने के किराए के अलावा कुछ नहीं लेते हैं. वो कहते हैं कि समिति जल्द ही अपना संग्रहालय खोलेगी. इसके लिए पूरा सामान उनके पास है. 


262 साल पुराने क्रांतिकारियों की हैं तस्वीरें


क्रांतिकारियों और शहीदों के सम्मान में ऐसी 250 से अधिक कलाकृतियां दिल्ली के शहीद स्मृति चेतना समिति ने बनाई हैं.  ये समिति आमतौर पर आश्रमों  और छोटे संग्रहालयों और प्रदर्शनियों को अपनी तस्वीरें देती हैं. शहीद स्मृति चेतना समिति के पास 600 से अधिक क्रांतिकारियों की दुर्लभ तस्वीरें हैं. इनमें महिला,बाल, प्रवासी, आदिवासी क्रांतिकारियों सहित 1987 स्वतंत्रता संग्राम और  गुमनाम क्रांतिकारियों की तस्वीरें शामिल हैं. ये तस्वीरें 1760 से लेकर 1947 के क्रांतिकारियों की हैं.





  • 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के नायक तात्या टोपे की खून से बनी तस्वीर 


वृंदावन वात्सल्य ग्राम में 20 अक्टूबर 2022 को खून से बनी शहीदों की तस्वीरों का पहला अंतरराष्ट्रीय भानुप्रताप शुक्ल स्मृति संग्रहालय बना. इसके लिए सभी तस्वीरें शहीद स्मृति चेतना समिति ने दी. इसका उद्घाटन उस वक्त गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने किया था. इसके बाद लाल किले में 23 फरवरी 2016 में 100 बाल शहीदों के संग्रहालय में भी समिति ने तस्वीरें दीं.


इसमें 35 तस्वीरे खून से बनी थी और बाकी रंग वाली तस्वीरें थीं.  26 जनवरी 2018 दिल्ली विधानसभा में क्रांतिकारियों की 70 तस्वीर कलर वाली भी समिति ने लगाई थीं. अब बाबा बंदा बहादुर रियासी कटरा में संग्रहालय में खून से बनी क्रांतिकारियों की तस्वीर समिति लगाने जा रही हैं.