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जानें- दिल्ली समेत पूरा NCR क्यों बन रहा है गैस चैम्बर, कौन है जिम्मेदार?

प्रदुषण रोकने के लिए ना तो अलग-अलग अदालतों के आदेश काम आ रहे हैं, ना ही सरकार के उठाए वह कदम, जिनका सरकार बार-बार कोर्ट में सुनवाई के दौरान हवाला देती है.

नई दिल्ली: दिल्ली और एनसीआर में जहरीली धुंध के चलते मेडिकल इमरजेंसी जैसे हालात बन गए हैं. सवाल यही है कि आख़िर हर साल इसी मौसम में दिल्ली और एनसीआर गैस चैंबर क्यों बन जाता है? वैसे तो इस हालात के लिए दिल्ली और एनसीआर के लोग भी कम जिम्मेदार नहीं है, लेकिन सिर्फ इसी मौसम में इस तरीके के हालात क्यों बनते हैं यह जानना बेहद जरूरी है.

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विशेषज्ञ दिल्ली और एनसीआर के इस हालात के लिए पड़ोसी राज्यों में फसल कटने के बाद पराली जलाने को सबसे ज्यादा जिम्मेदार मानते हैं. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक और हाईकोर्ट से लेकर एनजीटी तक सुनवाई हो चुकी है.

क्या होती है पराली?

दिल्ली के पड़ोसी राज्यों के किसान फसल काटने के बाद उसके अवशेष जलाते हैं, जिसको पराली कहा जाता है और इस पराली को जलाने की वजह से आसपास के राज्यों में उठने वाला धुआं दिल्ली के ऊपर इकट्ठा हो जाता है.

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क्या होता है स्मॉग?

दिल्ली में जहां पहले से ही प्रदूषण है, वहां यह धुआं मिल जाता है और उसके बाद जैसे ही मौसम में नमी आती है, यह धुंध का रुप ले लेता है. इसको अंग्रेजी में स्मॉग कहते हैं. स्मॉग का मतलब स्मोक और फॉग का मिश्रण है. यही स्मॉग इन दिनों दिल्ली में रहने वाले लोगों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है.

पराली जलाने से रोकने के लिए एनजीटी ने दिया था आदेश

सवाल उठता है कि क्या वाकई में आज भी किसान फसल अवशेष यानी पराली जलाते हैं, क्योंकि पिछले साल जब दिवाली के बाद दिल्ली में गैस चैम्बर जैसे हालात बने थे तो नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिल्ली के पड़ोसी राज्यों को निर्देश दिया था कि वह अपने यहां पराली जलाने पर रोक लगाएं और किसानों को ऐसी मशीन दें जिसके जरिए पराली को खेतों से हटाया जा सके और उसको जलाना ना पड़े.

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लेकिन जब हरियाणा में पानीपत जिले के कुछ किसानों से पूछा कि आखिर वह इस पराली को क्यों जलाते हैं? तो उन्होंने कहा कि हमारे पास कोई विकल्प नहीं है. अगर वह इस पराली को खत्म करने के लिए मेहनत करते हैं तो उस पर काफी खर्च आएगा और उनकी लागत काफी बढ़ जाएगी. इतना ही नहीं किसानों ने कहा कि यह मौसम गेहूं की फसल बोने का है और अगर इस पराली को जल्द से जल्द नहीं जलाया जाता या खत्म किया जाता तो फिर अगली फसल बोने के लिए समय नहीं बचता. लिहाज़ा इसको जलाने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है. पराली को जलाना ही सबसे आसान विकल्प है.

प्रशासन ने किसानों के लिए कुछ नहीं किया- किसान

क्या सरकार की तरफ से इस पराली को ठिकाने लगाने के लिए कोई मदद नहीं मिली? इस सवाल पर किसानों ने कहा, ‘’प्रशासन ने कुछ महीनों पहले एक लिस्ट मांगी थी, वह लिस्ट तो उनको तभी दे दी गई थी, लेकिन उसके बाद मशीन आने की जो बात कही गई थी, वह आजतक नहीं आई. अगर वह मशीन आ जाती तो उससे इस पराली को आसानी से हटाया जा सकता था, लेकिन मशीन के दर्शन नहीं हुए.’’

शिकायत दर्द ना हो, इसलिए शाम में जलाते हैं पराली

किसान पराली को दिन में ना जला कर देर शाम या रात के अंधेरे में आग लगाते हैं, जिससे इनके खिलाफ मामला भी ना दर्ज़ हो और पराली भी जल जाए. हालांकि किसानों ने कहा कि दिक्कत तो होती है और हम भी चाहते हैं कि पराली ना जलाएं, लेकिन और कोई विकल्प मौजूद नहीं है.

दिल्ली समेत पूरे एनसीआर में जो जहरीली धुंध के हालात बने हैं और उसकी एक बड़ी वजह जानकार जिस पराली के जलाने को मान रहे हैं, वह पराली तो आज भी उसी तरह से जल रही है. ना अलग-अलग अदालतों के आदेश काम आ रहे हैं ना ही सरकार के उठाए वह कदम, जिनका सरकार बार-बार कोर्ट में सुनवाई के दौरान हवाला देती है.

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