दिल्ली विश्वविद्यालय की ओवरसाइट कमेटी ने चंद्रावती रामायण को हटा कर इसकी जगह तुलसीदास द्वारा लिखित रामचरित मानस पढ़ाने को लेकर चर्चा की थी. साथ ही पाठ्यक्रम की समीक्षा के दौरान इसे हटाने की मांग भी उठी थी.
दरअसल चंद्रावती रामायण में सीता को रावण की पत्नी के रूप में पढ़ाया जा रहा है जो कि छात्रों के लिए प्रासंगिक नहीं है इसकी जगह तुलसीदास रचित रामचरित मानस पढ़ाने की सिफारिश की गई है. कमेटी के अनुसार इसकी सार्थकता ज्यादा है. कन्वीनर प्रोफेसर महाराज के. पंडित कहते हैं कि डीयू में अलग-अलग बैकग्राउंड से लोग आते हैं. उन्हें कुछ ऐसा पढ़ने के लिए देना जिसके बारे में उन्होंने सुना भी नहीं है उन्हें भ्रमित कर देगा.
हमने यूजीसी के पाठ्यक्रम को बरकरार रखा है- दौलतराम कॉलेज की प्रिंसिपल
चंद्रावती रामायण में बड़े अंतराल थे. यह अनावश्यक है क्योंकि यह शोध का हिस्सा है. छात्र चाहें तो कभी भी अपनी इच्छा अनुसार कुछ भी पढ़-लिख सकते हैं. डीयू की ओवरसाइट कमेटी का हिस्सा रहीं दौलतराम कॉलेज की प्रिंसिपल सविता रॉय एबीपी न्यूज से बातचीत में कहती हैं कि महिलाओं को किस तरह से व्यक्त किया जा रहा है इसकी समीक्षा होनी चाहिए. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि "हमने यूजीसी के पाठ्यक्रम को बरकरार रखा है"
हाल ही में दिल्ली यूनिवर्सिटी के बीए (ऑनर्स) के कोर्स से महाश्वेता देवी की कहानी और दो दलित लेखकों को हटाने का विरोध भी जोरों पर है. महाश्वेता देवी की कहानी 'द्रौपदी' को हटाने को मंजूरी दे दी गई है और दो दलित लेखकों को भी हटा दिया गया है जिसे लेकर कन्वीनर प्रोफेसर पंडित कहते हैं कि "कोई दलित लेखक नहीं निकाल गया."
अभद्र और अश्लील है- प्रोफेसर रॉय
ओवरसाईट कमिटी की सदस्य रहीं प्रोफेसर रॉय इस विषय पर कहती हैं कि महाश्वेता देवी की कहानी द्रौपदी के कुछ हिस्से आपत्तिजनक थे. कहानी में औरत के साथ हुए बलात्कार के दृश्य को विस्तार से वर्णित किया है जो कि अपने आप में अभद्र और अश्लील है. यह गलत है और इसकी प्रासंगिकता को नहीं समझा जा सकता है. आखिर इस तरह की सामग्री से छात्रों को किस प्रकार के ज्ञान और साहित्य से परिचित किया जा रहा है? मेरा मानना है कि यदि दलित साहित्य पढ़ाया जाता है तो उसका अंत सकारात्मक होना चाहिए.
पाठयक्रम से इस लघु कथा को हटा कर इसकी जगह रमाबाई की कहानी को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है जिसका डीयू के एक धड़े ने काफी विरोध भी किया. हालांकि समिति पर आरोप ये भी है कि इसमें कोई भी दलित या आदिवासी समुदाय का सदस्य नहीं है. इन आरोपों पर निगरानी समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर एमके पंडित कहते हैं कि 'मुझे नहीं पता कि वो लेखक दलित थे. अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष मीटिंग में मौजूद थे.' उन्होंने कहा, 'क्या वो अपने विषय के एक्सपर्ट नहीं हैं.
दो दशक से अंग्रेजी का पाठ्यक्रम नहीं बदला गया
आर्ट्स, सोशल साइंस के डीन भी मीटिंग में थे. क्या वो एक्सपर्ट नहीं हैं? लोकतंत्र में असहमति होना लाजमी है. वो हमारे कलीग हैं और हम उनके विचारों का सम्मान करते हैं.' समिति की चर्चा में यह भी कहा गया कि अंग्रेजी का पाठ्यक्रम करीब दो दशक से बदला नहीं गया है और कई सालों से वही कहानियां पढ़ाई जा रही हैं लिहाजा अब नई कहानियां पाठक्रम में शामिल करने की जरूरत है.
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