नई दिल्लीः हर चुनाव में कई ऐसे मौके आते हैं जब कई दिग्गजों की चमक नए चेहरों के सामने फीके पड़ जाते हैं. इन चेहरों के सामने कद्दावर उम्मीदवारों को अपनी सीट बचाने के लिए काफी प्रयास करना पड़ता है. कद्दावर नेता पूरे चुनाव में कार्यकर्ताओं की फौज तो उतार देते हैं लेकिन नए चेहरे के सामने अपनी सीट बचा पाने में नाकाम हो जाते हैं. कभी-कभी ऐसा होता है कि कद्दावर उम्मीदवार जीत तो जाते हैं लेकिन अंतर मामूली होता है. चुनावी चाल ऐसी होती है कि कब किधर पलट जाए पता नहीं चलता है.
कुछ ऐसा ही हाल देखने को मिला था दिल्ली के जनकपुरी विधानसभा सीट की. साल 2015 में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार राजेश ऋषि ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के कद्दावर नेता डॉ जगदीश मुखी को 25 हजार से ज्यादा वोटों से हरा दिया था.
जगदीश मुखी का रहा था कब्जा
जनकपुरी सीट बीजेपी की सबसे सुरक्षित सीटों में से एक मानी जाती है. साल 1993 से लेकर 2013 तक इस सीट से बीजेपी के प्रत्याशी रहे प्रोफेसर जगदीश मुखी लगातार जीत हासिल करते रहे.
जैसे ही दिल्ली की राजनीति में नई नवेली पार्टी आम आदमी पार्टी लोगों के बीच पहुंची जनता का रुझान दोनों पुरानी पार्टी कांग्रेस और बीजेपी से शिफ्ट होने लगी. दिल्ली के वोटर एक बार आम आदमी पार्टी को आजमाना चाहते थे.
राजेश ऋषि जीते पहली बार चुनाव
जनकपुरी विधानसभा सीट से साल 2013 के चुनाव में आम आदमी पार्टी की ओर से राजेश ऋषि पहली बार चुनावी मैदान में उतरे. साल 2013 में राजेश ऋषि मात्र 2 हजार 644 वोटों के अंतर से हर गए. साल 2015 आते-आते जनता का मूड पूरी तरह से बदल चुका था.
जनता ने मन बना लिया था कि इस बार राजेश ऋषि को बहुमत देंगे. साल 2015 के विधानसभा चुनाव में जनता ने राजेश ऋषि को आंखों पर बिठाया और जगदीश मुख 25 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव हार गए.
दो चुनाव से कांग्रेस तीसरे नंबर पर
इससे पहले कांग्रेस के उम्मीदवार हर बार जगदीश मुखी को टक्कर देते थे लेकिन जगदीश मुखी चुनावी सफलता के झंडे गाड़ देते थे. साल 2015 के मुकाबले में यहां से राजेश ऋषि ने जीत हासिल की जबकि जगदीश मुखी दूसरे नंबर पर रहे.
कांग्रेस के उम्मीदवार साल 2013 और 2015 में तीसरे नंबर पर चले गए. अब इस बार के विधानसभा चुनाव में यह देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि आखिर चुनाव में इस बार किसका सिक्का चलेगा.
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