नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले साल उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा के एक मामले में पिंजरा तोड़ एक्टिविस्ट देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा को 50,000 के निजी मुचलके पर जमानत दे दी है. कोर्ट ने इन तीनों आरोपियों को जमानत देते हुए दिल्ली पुलिस द्वारा लगाई गई यूएपीए की धारा पर भी सख़्त टिप्पणियां कीं.
दिल्ली में हुए दंगे मामले में आरोपी देवांगना कलिता, नताशा नारवाल और आसिफ इकबाल तन्हा की जमानत याचिका का दिल्ली पुलिस ने विरोध किया था लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस की दलीलों को खारिज करते हुए अपने आदेश में दिल्ली पुलिस की जांच और आरोपियों के खिलाफ लगाई गई धाराओं पर कई टिप्पणियां भी की हैं. हाईकोर्ट ने तीनों आरोपियों को जमानत देते हुए कहा कि इस मामले में सात सौ से ज्यादा गवाह है तो क्या ऐसे में हाईकोर्ट को इन लोगों को तब तक जेल में ही रखना चाहिए और सिर्फ इंतजार करना चाहिए जब तक मामले का ट्रायल पूरा नहीं हो जाता?
कोर्ट ने अपने आदेश में टिप्पणी करते हुए कहा कि लोगों पर यूएपीए ( अनलॉफुल एक्टिविटी प्रिवेंशन एक्ट) की अत्यधिक गंभीर धाराएं थोपना संसद की उस मंशा के खिलाफ भी है और उसको कमजोर भी करेगा जिस मंशा को ध्यान में रखकर यूएपीए का कानून बनाया गया था. कोर्ट ने अपने आदेश में टिप्पणी करते हुए कहा कि हमारा मानना है कि हमारे राष्ट्र की नींव एक विरोध से हिलने की संभावना न के बराबर है. कोर्ट ने इसके साथ ही यह भी कहा है कि यूपीए की धाराओं का ऐसे मामलों में इस्तेमाल करना एक तरह से आतंकी साजिश और उसके चलते होने वाले जघन्य अपराधों की जघन्यता को कम करने जैसा भी है (मतलब कि जो धाराएं जघन्य अपराधों में लगनी चाहिए अगर वह छोटे-मोटे मामलों में भी लगेंगे तो उससे उन धाराओं की महत्ता भी कम हो जाएगी)
कोर्ट ने आरोपियों को सशर्त दी जमानत
- कोर्ट ने तीनों आरोपियों को ₹50,000 के निजी मुचलके पर जमानत दी.
- कोर्ट ने आरोपियों से कहा कि वह जांच अधिकारी के साथ अपना पता और कांटेक्ट नंबर साझा करें और जरूरत पड़ने पर जांच में सहयोग करने के लिए हाजिर हो.
- कोर्ट ने आदेश दिया कि अगर इनके पास पासपोर्ट है तो वह निचली अदालत के पास सरेंडर करें बिना कोर्ट की जानकारी के देश से बाहर नहीं जा सकते.
- इसके साथ ही किसी भी गवाह और केस को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करेंगे.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में टिप्पणी करते हुए यह भी कहा है कि यूएपीए की धारा अमूमन देश की सुरक्षा के खतरा के मामलों में ही लगनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि यूएपीए कानून को बनाने का मकसद यह था कि देश विरोधी घटनाओं में शामिल या देश के खिलाफ साजिश रचने वाले या फिर देश की सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाले लोगों को इस कानून के दायरे में लाया जा सके ना कि छोटे-छोटे मामलों में भी इस धारा का इस्तेमाल किया जाए. कोर्ट ने कहा कि भले ही वह मामला गंभीर क्यों ना हो लेकिन उनमें भी इंडियन पीनल कोड की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की जा सकती है और ऐसे मामलों में भी यूएपीए के इस्तेमाल से बचना चाहिए.
कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि सिर्फ आरोप लगा देने से अपराध साबित नहीं होता इस मामले में फिलहाल शुरुआती तौर पर ऐसे तथ्य सामने नहीं आए हैं जिसके आधार पर इन तीनों आरोपियों को जमानत ना दी जाए. ऐसा ही दिल्ली पुलिस इस मामले में चार्जशीट भी दायर कर चुकी है ऐसे में आरोपियों को जेल की सलाखों के पीछे रखने का कोई औचित्य नहीं बनता.