नई दिल्ली: नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में हुए दंगों ने पूरे देश को दहला दिया और इस हिंसा ने 42 परिवारों के चिराग बुझा दिए. दंगों की मार झेलने वाले परिवार वाले अब अस्पताल के चक्कर काटने को मजबूर हैं. शव के पोस्टमार्टम हो गए हैं लेकिन परिजनों को शव को घर ले जाने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है.


सूत्रों के मुताबिक 15 शव अभी भी गुरु तेग बहादुर अस्पताल के शव गृह में पड़े हुए हैं जिनमे से छह शवों की अब तक शिनाख्त नहीं हो पाई है. बाकी शवों को भी परिवारों को सौंप दिया गया लेकिन उसके लिए परिवार वालों को रोज अस्पताल के चक्कर काटने पड़ रहे हैं. कई ऐसे भी केस हैं जिनमें बॉडी का हर हिस्सा जल चुका है और पहचान के लिए डीएनए टेस्ट ही करना होगा. मोर्चरी में सिर्फ 20 शवों को रखने का ही स्थान है. मृतकों के परिवारजनों का आरोप है के बॉडी देरी से मिलने की वजह से डेड बॉडी पर भी असर होने लगा है.


ऐसे ही एक बेटी की कहानी है जो तीन दिन से अपने पिता की बॉडी के लिए जीटीबी अस्पताल के चक्कर काट रही है. वहीं एक गुलशन नाम की महिला भी दर-दर भटकती मिली. महिला का पति पति एक्सीडेंट में जल चुका है और उसे कुछ दिखाई भी नहीं देता है. ऐसे में गुलशन के पिता इकलौते कमाने वाले थे. गुलशन 26 फरवरी को भटकती हुई मोर्चरी के बाहर नजर आई. वो हर एक के सामने हाथ जोड़ कर बस ये गुहार कर रही थी के कोई उसके बाबा का शव उसे दिलवा दे, लेकिन कोई उसे थाने जाने के लिए कहता तो कोई शव नहीं होने की बात कहकर टाल देता.


वहीं एबीपी न्यूज़ ने जब उसे परेशान हाल में पाया गुलशन की मदद की और उसको मोर्चरी में दाखिल करवाया. तब जाके उसके पिता के शव की शिनाख्त हो पाई. उसके पिता के केवल पैर ही बचे थे बाकी बॉडी जल चुकी थी. अब अनवर के शव का डीएनए टेस्ट होना है जिसकी बाद शव गुलशन को सौंप दिया जाएगा.


बता दें कि पोस्टमार्टम मेडिकल और लीगल केस होता है. इसमें दोनों पुलिस और डॉक्टरों का रोल होता है. सबसे पहले डेड बॉडी से संबंधित डॉक्युमेंट्स का काम केस से जुड़े आईओ (इनवेस्टिगेटिंग ऑफिसर) को पूरा करना होता है, उसके बाद ही डॉक्टर पोस्टमॉर्टम करते हैं. खासकर जब इस तरह के गंभीर मामले होते हैं, उसमें कागजी कार्रवाई पर पूरा ध्यान रखा जाता है, ताकि कोई कमी नहीं रह जाए.


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