दिल्लीः AIIMS में वर्चुअल अटॉप्सी की हुई शुरुआत, अब बिना चीरफाड़ के होगा पोस्टमॉर्टम
दिल्ली एम्स में वर्चुअल अटॉप्सी की शुरुआत की गई है. इसमें बॉडी की चीरफाड़ की जरूरत नहीं होगी. एम्स में हर साल पोस्टमॉर्टम के करीब 3,000 केस आते हैं, जिनमें से ज्यादातर मामलों में चीरफाड़ की आवश्यकता नहीं होती है.
नई दिल्लीः किसी व्यक्ति की एक्सीडेंट से मौत, आत्महत्या या अप्राकृतिक मौत होने के बाद परिवार का दुख तब बढ़ जाता है जब वे पोस्टमार्टम के बाद शव को देखते हैं. पोस्टमॉर्टम में शरीर की चीरफाड़ होती है. इससे बचने के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने जहां भी संभव हो, वर्चुअल अटॉप्सी करने का निर्णय लिया है. इस सुविधा का उद्घाटन शनिवार को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने किया.
वर्चुअल अटॉप्सी में शरीर को छूए बिना अंदरूनी अंगों, ऊतकों और हड्डियों की जांच शामिल है. इस प्रक्रिया के तहत बॉडी को एक बैग में पैक किया जाता है और सीटी स्कैन मशीन में रखा जाता है. कुछ सेकंड के भीतर ही अंदरूनी अंगों की हजारों इमेज कैप्चर की जाती हैं, जिनका विश्लेषण फोरेंसिक विशेषज्ञों द्वारा किया जा सकता है. ऐसी सुविधा देने वाले चुनिंदा संस्थानों में एम्स शामिल एम्स में फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख डॉ. सुधीर गुप्ता ने कहा कि एम्स यह सुविधा देने वाला दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया का पहला चिकित्सा संस्थान होगा. स्विट्जरलैंड, अमेरिका और यूके जैसे विकसित देशों ने चुनिंदा मामलों में अटॉप्सी करने के लिए इमेजिंग तकनीक को पहले ही अपना लिया है.एम्स में हर साल 3000 पोस्टमॉर्टम केस एम्स में हर साल पोस्टमॉर्टम के करीब 3,000 केस आते हैं. डॉ. गुप्ता ने कहा कि इनमें से 30 से 50 फीसदी मामलों में चीरफाड़ की आवश्यकता नहीं होती है. इनमें दुर्घटना, फांसी या आत्महत्या के कारण हुई मौतें शामिल हैं. उन्होंने कहा कि कई मामलों में मौत का कारण पता करने के लिए बॉडी को कट करके ऑपन करने की आवश्यकता नहीं होती है और एक एक वर्चुअल अटॉप्सी पर्याप्त होती है.
अप्राकृतिक मौत के मामले में पुलिस जांच में अटॉप्सी एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है. केस की जटिलता और विशेषज्ञों की उपलब्धता के आधार यह 30 मिनट से तीन दिनों के बीच की जा सकती है. हालांकि वर्चुअल अटॉप्सी मिनटों में की जा सकेगी. इससे मैनपावर और समय दोनों की बचत होगी.
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