दिल्ली वालों को सर्दी में पराली के प्रदूषण से मिलेगी निजात, IARI के इंजीनियरों ने विकसित की ये खास तकनीक
पराली को खाद में बदलने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने 20 रुपये की कीमत वाली 4 कैप्सूल का एक पैकेट तैयार किया है.
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नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में हर साल सर्दियों के समय में प्रदूषण की समस्या विकराल रूप ले लेती है. पराली जलाने से होने वाला धुआं इसके पीछे एक बड़ी वजह है. पूसा रोड स्तिथ भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने पराली से खेत में ही सीधे खाद बनाने की बायो डी-कंपोजर तकनीक विकसित करने का दावा किया है. महज़ 20 रुपये में 1 हेक्टेयर यानि ढाई एकड़ ज़मीन में पराली से खाद तैयार की जा सकती है. पूसा रिसर्च इंस्टीट्यूट ने पूसा डिकम्पोज़र के नाम से कैप्सूल तैयार की है. इस तकनीक की मदद से खेतों में पराली जलाने की समस्या का समाधान होने की उम्मीद है और अगर ऐसा होता है, तो दिल्ली वालों को जाड़े के दिनों में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के खेतों में जलाई जाने वाली पराली के धुंए की वजह से सांस लेने में होने वाली समस्या का समाधान हो जाएगा.
पराली को खाद में बदलने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने 20 रुपये की कीमत वाली 4 कैप्सूल का एक पैकेट तैयार किया है. कैप्सूल तैयार करने वाली IARI पूसा की प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ लिवलीन शुक्ला ने ABP न्यूज़ से खास बातचीत में बताया कि 4 कैप्सूल से पराली पर छिड़काव के लिए 25 लीटर तरल पदार्थ बनाया जा सकता है और 1 हेक्टेयर में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. तरल पदार्थ बनाने के लिये पहले 5 लीटर पानी में 100 ग्राम गुड़ उबालना है और ठंडा होने के बाद घोल में 50 ग्राम बेसन मिलाकर कैप्सूल घोलना है. इसके बाद घोल को 10 दिन तक एक अंधेरे कमरे में रखना होगा, जिसके बाद पराली पर छिड़काव के लिए तरल पदार्थ तैयार हो जाता है.
उन्होंने कहा कि किसी भी कटाई के बाद ही छिड़काव किया जा सकता है. इस कैप्सूल से हर तरह की फसल की पराली खाद में बदल जाती है और अगली फसल में कोई दिक्कत भी नहीं आती है. ये कैप्सूल 5 जीवाणुओं से मिलाकर बनाया गया है जो खाद बनाने की रफ़्तार को तेज़ करता है. 30-40 दिन का समय खाद बनने में लग जाता है. इसके बाद अगली फसल के लिये जुताई और बुआई की जा सकती है.
इसका इस्तेमाल दो तरीके से किया जा सकता है. खेत में ही खाद बनाकर और पराली को उठाकर एक साथ एक जगह पर रखकर कम्पोस्ट बनाकर. IARI पूसा के एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग हेड डॉ इन्द्रमणि मिश्रा ने खेत से बाहर खाद बनाने की तकनीक पर काम किया है. छिड़काव के करीब 10-15 दिन बाद मशीन की मदद से पराली को मिक्स किया जाता है. खाद में तब्दील होने के बाद जेसीबी की मदद से इसे गायरेशन मशीन में डाला जाता है, जिसके ज़रिये खाद से अनावश्यक चीजों जैसे कंकड़, पत्थर गंदगी आदि को अलग किया जाता है.
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने बॉयो डिकम्पोज़र तकनीक का जायज़ा लिया. गोपाल राय ने कहा कि अगर ये तकनीक कामयाब होती है तो दिल्ली के किसानों को दिल्ली सरकार सभी सुविधाएं उपलब्ध कराएगी. गोपाल राय ने कहा, "दिल्ली के अंदर खासतौर पर जाड़े के समय में प्रदूषण की समस्या भयंकर रूप से उत्पन्न होती है. पिछले साल हमने देखा था कि दिल्ली का जो प्रदूषण है, उसके अलावा 44 प्रतिशत पराली की वजह से नवंबर के महीने में दिल्ली के लोगों को सांस के संकट का सामना करना पड़ा था. दिल्ली के अंदर पराली बहुत कम पैदा होती है, लेकिन पंजाब के अंदर 20 मिलियन टन पराली पैदा होती है, जिसमें पिछले साल का आंकड़ा बताता है कि वहां पर करीब 9 मिलियन टन पराली जलाई गई है. हरियाणा के अंदर करीब 7 मिलियन टन पराली पैदा होती है, जिसमें से 1.23 मिलियन टन पराली जलाई गई थी और उसकी वजह से दिल्ली के लोगों को प्रदूषण का सामना करना पड़ा था."
गोपाल राय के मुताबिक अगर ये तकनीक सफल होती है तो हम पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकार से बात करेंगे, वहां की सरकारें अपने किसानों को सारी सुविधाएं उपलब्ध कराएंगी. दिल्ली में जो किसान हैं, उनको दिल्ली सरकार सुविधाएं उपलब्ध कराएगी.
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