अयोध्या की विवादित जमीन कानूनन सरकार के पास है, इसे अधिग्रहण करने की जरूरत नहीं
सवाल है कि जब ये मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, ऐसे में क्या केंद्र सरकार अध्यादेश लाकर मंदिर बनाने का रास्ता निकाल सकती है?
नई दिल्ली: अयोध्या जमीन विवाद की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में जनवरी तक टल जाने के बाद कट्टरपंथी हिंदू संगठनों की तरफ से ये मांग ज़ोर पकड़ रही है कि विवादित भूमि का अधिग्रहण कर मंदिर बनाने का रास्ता साफ किया जाए. सवाल है कि जब ये मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, ऐसे में क्या केंद्र सरकार अध्यादेश लाकर मंदिर बनाने का रास्ता निकाल सकती है? इस मामले में दूसरा सवाल ये है कि जो विवादित भूमि है, उसकी कानूनी स्थिति क्या है. क्या इस वक़्त जमीन की मालिक सरकार ही है? उसके बारे में कानूनी स्थिति आप को साफ कर देते हैं.
अयोध्या में केंद्र सरकार ने 1993 में एक्विजिशन ऑफ सर्टन एरियाज इन अयोध्या एक्ट के जरिए 67.70 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण कर लिया था. इसमें बाबरी मस्जिद या राम जन्मभूमि स्थान की 2.77 एकड़ जगह भी शामिल है. इस एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बहुमत से केंद्र सरकार के अधिग्रहण को सही करार दिया. लेकिन ये कहा कि 2.77 एकड़ की विवादित जमीन उसी को दी जाएगी, जो अयोध्या का टाइटल सूट यानी भूमि विवाद से जुड़ा मुकदमा जीतेगा.
ऐसे में सरकार की हैसियत इस मामले में कोर्ट रिसीवर की है. फैजाबाद के डीएम ये भूमिका निभाते हैं. ऐसे में ये कहना कि सरकार जमीन का अधिग्रहण करे, इसका कोई अर्थ समझ में नहीं आता. जमीन सरकार के पास ही है. कोर्ट के फैसले के चलते वो किसी को इसे नहीं दे सकती. अगर सरकार किसी एक पक्ष को जमीन देना चाहती है, तो उसे नए सिरे से कानून बनाना पड़ेगा. हालांकि, नए कानून को सुप्रीम कोर्ट के 1994 के फैसले के मद्देनजर फिर से चुनौती दी जा सकती है.
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