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Congress President: पार्टी राहुल-राहुल करती रही, गांधी परिवार को गहलोत पर था भरोसा, थरूर की एंट्री और ताज खड़गे को मिला- 10 प्वाइंट्स

Kharge Wins: सितंबर के आखिर में राजस्थान में जब खड़गे को अजय माकन के साथ विधायक दल की बैठक कराने के लिए पर्यवेक्षक के तौर पर भेजा गाया था तो शायद उन्हें अहसास होगा कि अगले अध्यक्ष वहीं होंगे.

Congress President Election in 10 Points: पिछले लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2019) में कांग्रेस (Congress) को 52 सीटें मिली थीं. इसके बाद 3 जुलाई 2019 को राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने ट्विटर पर चार पन्नों की चिट्टी पोस्ट करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष पद (Congress President) से इस्तीफा दे दिया था. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार के लिए राहुल गांधी ने खुद को जिम्मेदार बताया था. इसके कुछ दिनों बाद 10 अगस्त 2019 को कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) ने सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को अंतरिम अध्यक्ष (Interim President of Congress) बना दिया. एक साल के लिए अंतरिम अध्यक्ष चुनी गईं सोनिया गांधी का कार्यकाल 10 अगस्त 2020 को समाप्त होना था लेकिन मार्च में लगे कोरोना लॉकडाउन (Corona Lockdown) को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव (Congress President Election) की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई थी. 

24 अगस्त 2020 को कांग्रेस कार्यसमित ने सोनिया गांधी से अंतरिम अध्यक्ष पद पर बने रहने का आग्रह किया. इसके बाद कई बार चुनाव के लिए टालमटोल होता रहा. इस साल सितंबर में भी चुनाव कराने की बात उठी थी. आखिर, सोमवार (17 अक्टूबर) को कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के लिए वोट डाले गए और बुधवार (19 अक्टूबर) को घोषित नतीजे में वरिष्ठ कांग्रेसी मल्लिकार्जुन खड़गे की जीत हुई. आइये 10 प्वाइंट में समझते हैं इस बार के कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव का घटनाक्रम.

1. राहुल-राहुल की रट

चुनाव से पहले तक ज्यादातर नेता और कार्यकर्ता राहुल-राहुल की रट लगाते रहे. कांग्रेस सरकार वाले राज्यों ने राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाने के समर्थन प्रस्ताव भी पारित किए. राहुल के चुनाव लड़ने को लेकर काफी दिनों तक संशय बना रहा. राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत का नाम जब चुनावी रेस में आया तो उन्होंने कहा कि अंतिम फैसला राहुल से बात करके लेंगे. उन्होंने कहा कि अगर राहुल चुनाव नहीं लड़ेंगे तो वह पर्चा भरेंगे लेकिन कांग्रेस पार्टी के नियम एक 'व्यक्ति, एक पद' ने उनका मजा किरकिरा कर दिया. 

2. गहलोत का बिगड़ गया खेल

राजस्थान में पार्टी के भीतर ही गहलोत के कथित विरोधी सचिन पायलट को सीएम की गद्दी सौंपे जाने के प्लान की भनक लगते ही 80 से ज्यादा विधायकों ने मुख्यमंत्री का समर्थन करते हुए बगावत कर दी. घमासान के चलते गहलोत की फजीहत हुई और उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा. 25 सितंबर से पहले तक गहलोत का कांग्रेस अध्यक्ष बनना लगभग तय माना जा रहा था.

3. गांधी परिवार को इसलिए था गहलोत पर भरोसा

अध्यक्ष चुनाव की घोषणा के बाद दिल्ली के दस जनपथ पर गहलोत और सोनिया गांधी की कई मुलाकातों का दौर चला था. पार्टी सूत्रों ने अशोक गहलोत को अध्यक्ष पद के लिए गांधी परिवार की पहली पसंद बताया था. इसके पीछे पार्टी के साथ उनकी लंबी वफादारी को कारण बताया गया क्योंकि उन्होंने कभी पार्टी लाइन से इतर कोई बात नहीं की थी. हालांकि, जब राहुल गांधी ने 'भारत जोड़ो यात्रा' के दौरान ही यह स्पष्ट कर दिया की 'उदयपुर घोषणा' यानी 'एक व्यक्ति, एक पद' के सिद्धांत का पालन किया जाएगा तो अशोक गहलोत सीएम पद छोड़ने के लिए राजी हो गए थे लेकिन आलाकमान से राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को अगला सीएम बनाए जाने की सिफारिश कर दी थी. 

4. गहलोत नाराज हो गया आलाकमान

आलाकमान सचिन पायलट को यह जिम्मेदारी देना चाहता था. इसलिए मामला उलझ गया. राजस्थान के अगले सीएम को तय करने के लिए अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे को पर्यवेक्षक बनाकर विधायक दल की मीटिंग कराने के लिए भेजा गया था लेकिन विधायकों के विद्रोह के चलते उन्हें बैरंग लौटना पड़ा. इसके बाद अशोक गहलोत ने आलाकमान के साथ एक बार फिर भेंट की और घटनाक्रम को लेकर सफाई दी लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. पहले जहां गांधी परिवार उन्हें खुद अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के लिए मना रहा था, वह राजस्थान के घटनाक्रम के कारण गहलोत से नाराज हो गया. 

5. थरूर की एंट्री

इधर खुद को बदलाव का प्रतिनिधि बताते हुए शशि थरूर भी कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने के लिए सोनिया गांधी से मुलाकात कर चुके थे. इससे पहले कई मौके पर जब थरूर से चुनाव लड़ने के बारे में पूछा गया तो वह टालमटोल जवाब देते रहे थे लेकिन फिर चुनावी संग्राम में कूदने का मन बना लिया. इसके पीछे तर्क दिया कि पार्टी के कई कार्यकर्ताओं ने उनसे चुनाव लड़ने के लिए आग्रह किया है. शशि थरूर ने जब दस जनपथ पर सोनिया गांधी से चुनाव के बारे में बात की तो आलाकमान ने कहा कि पार्टी में हर कोई इसके लिए स्वतंत्र है. 

6. कई संभावित नामों की रही चर्चा

इस बीच कांग्रेस के और भी कई संभावित उम्मीदवारों के नामों की चर्चा भी रही. इस दौरान दस जनपथ से जो भी नेता सोनिया गांधी से मुलाकात करके बाहर निकलता था तो उसकी गिनती संभावित उम्मीवारों में होने लगती थी. जैसे कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल को सोनिया गांधी ने अचानक पदयात्रा के बीच से दिल्ली बुला लिया तो माना जाने लगा के वह उम्मीदवार होंगे. इसके अलावा, दिग्विजय सिंह आखिरी तक चुनाव लड़ने का मन ही बनाते रहे. मनीष तिवारी के नाम की चर्चा हुई. कांग्रेस नेता पवन बंसल ने तो एक नामांकन पत्र भी ले लिया था लेकिन कहा कि किसी और लिए लिया है. महाराष्ट्र के दलित नेता सुशील कुमार शिंदे का नाम भी चर्चा में आया. इनके अलावा और भी कई नामों को लेकर चर्चा रही लेकिन आखिर में दो ही उम्मीदवार मैदान में दिखे- एक मल्लिकार्जुन खड़गे और दूसरे शशि थरूर. 

7. मल्लिकार्जुन खड़गे को शायद ही इस बात का अंदाजा होगा

मल्लिकार्जुन खड़गे को जब अजय माकन के साथ राजस्थान में विधायक दल की बैठक कराने की जिम्मेदारी देकर पर्यवेक्षक बना कर भेजा गया तो उन्हें इस बात का अहसास शायद ही रहा होगा कि पार्टी के अगले अध्यक्ष वहीं होंगे. उस समय तक वह राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के तौर पर ही पहचाने जा रहे थे. कांग्रेस के प्रदर्शनों या कार्यक्रमों में उनकी औसत भागीदारी देखी जा रही थी. अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर दूर-दूर तक उनके नाम की चर्चा नहीं थी. 

8. ऐसे मिला खड़गे को मौका

अशोक गहलोत के चुनाव न लड़ने की घोषणा के बाद आनन-फानन में गांधी परिवार ने खड़गे को चुनाव लड़ने के लिए कहा. हालांकि, यह कहा जाता रहा कि चुनाव में गांधी परिवार का कोई आधिकारिक उम्मीदवार नहीं था लेकिन जिस तरह से पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का झुकाव खड़गे के प्रति रहा उससे उनके प्रतिद्वंदी शशि थरूर को आपत्ति होती रही. हालांकि, थरूर भी यह कहते रहे कि गांधी परिवार चुनाव में तटस्थ भूमिका निभा रहा है. 

9. तीन उम्मीदवारों ने किया था नामांकन

30 सितंबर यानी नामांकन तिथि के आखिरी दिन तीन आवेदन दाखिल किए गए. शशि थरूर, झारखंड कांग्रेस के नेता केएन त्रिपाठी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने नामांकन दाखिल किए. आवेदनों की जांच में केएन त्रिपाठी का नामांकन खारिज कर दिया गया. इस प्रकार मुकाबला शशि थरूर और मल्लिकार्जुन खड़गे के बीच हो गया. कुछ नेता खुलकर खड़गे का समर्थन करने लगे, जिनमें अशोक गहलोत भी शामिल थे. इस पर सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वह खड़गे के प्रस्तावक बने थे, इसलिए उनका समर्थन करके कोई गलत काम नहीं किया है. 

10. खड़गे के सिर सजा ताज

कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के लिए सोमवार (17 अक्टूबर) को देशभर के 65 से ज्यादा केंद्रों पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नौ हजार से ज्यादा डेलिगेट्स ने मतदान में हिस्सा लिया. कुल 9497 मत पड़े. आखिरकार बुधवार को आए नतीजों में अध्यक्ष का ताज खड़गे के सिर सजा. इनमें खड़गे को 7,897 वोट मिले तो वहीं थरूर के लिए सिर्फ 1,072 वोट ही पड़े. माना जा रहा है कि जमीनी नेता होने का फायदा खड़गे को मिला. 

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