लेकिन कोर्ट ने कहा कि याचिका दाखिल करने वाला कोई भी व्यक्ति मामले में प्रभावित पक्ष नहीं है. इसलिए, याचिका पर सुनवाई नहीं हो सकती.
तीन वकीलों आदित्य रंजन, वरुण ठाकुर और वी एलनचेरियन की तरफ से दाखिल याचिका में कहा गया था कि आईपीसी 124A एक औपनिवेशिक कानून है. अंग्रेज अपनी सरकार के खिलाफ बोलने वाले लोगों पर यह धारा लगाते थे. लोकतांत्रिक भारत देश में इस कानून की कोई जरूरत नहीं है. इसके माध्यम से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन किया जाता है.
सामान्य नागरिकों पर इस धारा का बेवजह इस्तेमाल हो रहा है- वकील
याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि 1962 के केदार नाथ सिंह बनाम बिहार और 1995 के बलवंत सिंह बनाम पंजाब मामलों में दिए फैसलों में खुद सुप्रीम कोर्ट इस धारा के दुरुपयोग की बात कह चुका है. कोर्ट ने बेवजह इसे किसी भी व्यक्ति पर लगाने को गलत बताया था. लेकिन फिर भी बिना किसी रोक-टोक के पुलिस नागरिकों के उपर इस धारा को लगा रही है.
याचिकाकर्ताओं की तरफ से कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ वकील अनूप जॉर्ज चौधरी से चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने ने कहा, "हम कई फैसलों में यह भी कह चुके हैं कि किसी कानून को चुनौती देने के पीछे कोई सीधी वजह होनी चाहिए. क्या आप लोग इस कानून से प्रभावित हुए हैं?" वकील ने जवाब दिया कि पत्रकारों समेत सामान्य नागरिकों पर इस धारा का बेवजह इस्तेमाल हो रहा है. एक मामले में तो एक इंस्पेक्टर को सिर्फ इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि उसने मुख्यमंत्री की आलोचना की थी.
जजों ने इस दलील पर असहमति जताते हुए कहा, "अगर कोई इस कानून के गलत इस्तेमाल के चलते जेल में बंद है, तो हम जरूर उसे सुनेंगे. लेकिन याचिकाकर्ताओं का मामले से कोई सीधा संबंध नहीं है. इसलिए हम याचिका को खारिज कर रहे हैं."
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