सभी धार्मिक स्थलों की वर्तमान स्थिति बनाए रखने की मांग, लखनऊ की मस्जिद के सह-मुतवल्ली पहुंचे SC
12 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया था. यह याचिका बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय की है.
![सभी धार्मिक स्थलों की वर्तमान स्थिति बनाए रखने की मांग, लखनऊ की मस्जिद के सह-मुतवल्ली पहुंचे SC Demand to maintain the current status of all religious places, Lucknow mosque co mutawalli reaches Supreme court ann सभी धार्मिक स्थलों की वर्तमान स्थिति बनाए रखने की मांग, लखनऊ की मस्जिद के सह-मुतवल्ली पहुंचे SC](https://static.abplive.com/wp-content/uploads/sites/2/2021/01/08151615/Supreme_Court_PTI.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
नई दिल्ली: धार्मिक स्थलों की यथास्थिति बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल होनी शुरू हो गई हैं. सबसे पहली याचिका लखनऊ की टीले वाली मस्जिद के सह-मुतवल्ली की है. उन्होंने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करने की मांग की है. उनका कहना है कि देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को बनाए रखने के लिए यह कानून बहुत ज़रूरी है.
12 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया था. यह याचिका बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय की है. याचिका में कहा गया है कि 1991 में बना कानून हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन समुदाय को उनके वाजिब हक से वंचित करता है. यह कानून हर धर्मस्थल की स्थिति 15 अगस्त 1947 वाली बनाए रखने की बात कहता है. इस कानून के रहते हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन समुदाय अपने उन पवित्र स्थलों पर कानूनी दावा नहीं कर सकते, जिन्हें विदेशी आक्रांताओं ने तोड़ कर मस्ज़िद, दरगाह या चर्च बना दिया था. यह कानून न सिर्फ धार्मिक आधार पर भेदभाव करता है, बल्कि न्याय मांगने के मौलिक अधिकार का भी हनन करता है.
अब टीले वाली मस्जिद के सह-मुतवल्ली वासिफ हसन ने याचिका दाखिल कर खुद को मामले में पक्षकार बनाने की मांग की है. उन्होंने बताया है कि उनकी मस्जिद को भी एक प्राचीन मंदिर बता कर लखनऊ की सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर हुआ है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सीधा असर उस मुकदमे पर पड़ेगा. इसलिए, मामले में उन्हें भी सुना जाना चाहिए.
वासिफ हसन ने कहा है कि 15 अगस्त 1947 को एक स्वतंत्र देश की स्थापना हुई. इस देश का एक प्रमुख आधार धर्मनिरपेक्षता था. प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट में 1947 की इस तारीख को कट ऑफ डेट इसी वजह से बनाया गया है. संसद का उद्देश्य था कि लोग धार्मिक स्थलों को लेकर न झगड़ें. देश में शांति हो और विकास हो.
वकील सरीम नावेद और कबीर दीक्षित के ज़रिए दाखिल इस याचिका के मुताबिक विदेशी आक्रांताओं की तरफ से मंदिर तोड़े जाने का कोई ठोस सबूत नहीं है. राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद में भी सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि मस्जिद एक हिंदू धार्मिक ढांचे के ऊपर बनी थी. लेकिन उसे बनाने के लिए मंदिर को तोड़े जाने का सबूत नहीं है. हर धार्मिक स्थल की वर्तमान स्थिति को बनाए रखना ही देश के व्यापक हित में है.
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि सुप्रीम कोर्ट में दायर मुकदमे के पीछे राजनीतिक वजह है. इसके जरिए मुस्लिम और ईसाई समुदाय को अलग-थलग करने की कोशिश की जा रही है. संसद ने जो कानून बनाया, वह उसके अधिकार क्षेत्र में आता है. यह कहना गलत है कि यह राज्य सूची का विषय है, इस पर संसद कानून नहीं बना सकती. 1995 के इस्माइल फारुखी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की तरफ से अयोध्या में किए गए भूमि अधिग्रहण को सही करार दिया था. अगर आज अश्विनी उपाध्याय की दलील को सही करार दें तो 1993 में अयोध्या में किया गया भूमि अधिग्रहण भी अवैध साबित हो जाएगा.
याचिका में यह भी कहा गया है कि किसी संपत्ति पर दावे के लिए सिविल मुकदमा दाखिल करने की एक समय सीमा होती है. लिमिटेशन का यह प्रावधान सिविल कानून में बहुत अहम है. प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को रद्द करने का मतलब होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस प्रावधान में ढील दे रहा है. अभी अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर विस्तृत सुनवाई शुरू नहीं हुई है. कोर्ट ने उस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. उम्मीद की जा रही है कि याचिका पर सुनवाई शुरू होने से पहले कई और पक्षकार मामले से जुड़ने के लिए आवेदन दे सकते हैं.
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