Supreme Court News: नोएडा सेक्टर 93 की सुपरटेक एमरॉल्ड सोसाइटी में अवैध तरीक़े से बने दो बड़े टावर्स को गिराये जाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब इस बात की क़वायद शुरू हो गयी है कि आख़िर ये 40 मंज़िला इमारत जो पूरी तरह से तैयार भी नहीं हो पायी थी, उसे किस तरह से गिराया जायेगा. इसको लेकर सोसाइटी के रेज़िडेंट में इस बात की खुशी तो ज़रूर है कि सोसाइटी में पार्क वाली जगह पर अवैध रूप तैयार किये गये इन टावर्स को अब जल्द गिरा दिया जायेगा. लेकिन रेज़िडेंट्स के मन में इस बात को लेकर चिंता भी है कि अगर इन्हें विस्फोट के ज़रिये गिराया जाता है तो उन्हें किसी तरह का नुक़सान ना झेलना पड़े.


दरअसल चिंता इस बात की भी है कि जब बिल्डिंग गिरेंगी और उसके बाद जो धुंए का ग़ुब्बारा उठेगा उसकी वजह से लोगों को प्रदूषण जैसी समस्या से भी जूझना पड़ सकता है और डर इस बात का भी है कि विस्फोट के दौरान आस-पास के टावर्स जिनमें लोग रह रहे है उनमें किसी तरह का नुक़सान या टूट-फूट ना हो. यही वजह है कि सोसाइटी में रह रहे लोग अथॉरिटी से यही मांग कर रहे हैं कि इन टावर्स को गिराते समय लोगों की सेहत और सेफ़्टी का पूरा ध्यान रखा जाये.


इस सोसाइटी के आरडब्ल्यूए के वाइस प्रेज़िडेंट एक के शर्मा ने बताया कि फ़िलहाल लोगों को किसी बात का डर नहीं है, लेकिन कुछ लोगों के मन में इस बात को लेकर चिंता ज़रूर है कि ये टावर कैसे गिराये जायेंगे. अथॉरिटी के साथ मिलकर हम लोग इसके लिये काफी तैयारी कर रहे हैं ताकि नुक़सान ना झेलना पड़े. एक और रेज़िडेंट ने बताया कि डर ज़्यादा नहीं है क्योंकि एक्सपर्ट की निगरानी में ये सब किया जाना है और सुरक्षा से जुड़ी तमाम चीजों को ध्यान में रखकर ही ये किया जायेगा. क़रीब 10 साल तक इसके लिये रेज़िडेंट कोर्ट में लड़ाई लड़ते रहे, इसलिये अब इन टावर्स का हटना बहुत ज़रूरी है.


बिल्डिंग गिराये जाते समय किन चीज़ों पर सभी एक्सपर्ट को फ़ोकस करना होगा और ख़ासतौर पर क्या परेशानियां सामने आ सकती हैं, इसको समझ लीजिए-



  • ये दोनों टावर आपस में जुड़े हुये है और इनकी लंबाई भी आस पास की बिल्डिंग से काफ़ी ज़्यादा है.

  • इन टावर्स के नज़दीक 3 बिल्डिंग ऐसी हैं, जिनकी दूरी इन टावर्स से क़रीबन 9 से 10 मीटर तक ही है.

  • कुछ ही दूरी पर यमुना एक्सप्रेसवे भी है और उसे जोड़ने वाली मुख्य सड़क भी, ऐसे में धुंए का गुबार ज़्यादा होगा तो एक्सप्रेसवे पर चलने वाली गाड़ियाँ के लिये विजिबिलिटी की समस्या हो सकती है.

  • बिल्डिंग गिराने में अगर विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया तो आस पास के फ़्लैट में दरारें भी आ सकती हैं.

  • धूल की वजह से इलाके में प्रदूषण भी काफ़ी बढ़ सकता है.


लंबी कानूनी लड़ाई के बाद कोर्ट ने दिया आदेश


क़रीबन 10 साल की लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट से इन टावर्स को गिराने का आदेश आया है. ऐसे में इसे गिराने को लेकर कई सारे पेंच भी फंसे हुए हैं. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा है कि 2 हफ़्ते में इन टावर को गिराने की क़वायद शुरू हो जानी चाहिए. इसके लिये नोएडा अथॉरिटी सीईओ को भी 72 घंटे के अंदर तमाम संबंधित ऐजेसिंयो के साथ मीटिंग कर इन टावर्स को गिराये जाने को लेकर रूप रेखा तैयार करने को भी कोर्ट ने कहा है. नोएडा अथॉरिटी की तरफ़ से इसको लेकर काफ़ी हद तक तैयरियां पूरी भी हो चुकी हैं.


कुछ पर्यावरण के जानकारों का ये भी कहना है कि इसका पर्यावरण पर इसका काफ़ी असर पड़ेगा. अगर इन टावर्स को विस्फोटक से गिराया जाता है तो भी नुक़सान होगा और जेसीबी जैसी मशीनों से गिराया जाता है तो भी काफी नुक़सान हो सकता है. जानकारों ने कहा कि मलबे की डंपिंग को लेकर भी सवाल है कि ये कहा डाला जायेगा क्योंकि ये जिस जगह पर पड़ेगा वहां भी ज़मीन को नुक़सान होगा.


सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि इन टावर्स को गिराने की प्लानिंग अथॉरिटी को करनी होगी और जानकारों से बातचीत कर इसे गिराना होगा. बताया जा रहा है कि एक ऐसी विदेशी कंपनी को इसके लिये कांट्रेक्ट दिया जा रहा है जिसके पास इस तरह की बिल्डिंग गिराने का काफ़ी अनुभव है. साफ़ है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इन टावर्स का गिरना तय है लेकिन ये कब और किस तरह गिराये जायेंगे इस पर सबकी नज़रें टिकी हुयी हैं.


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