नोटबंदी मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मांगा समय, अब 24 नवंबर को होगी अगली सुनवाई
Demonetisation Case: केंद्र सरकार ने 2016 में नोटबंदी की घोषणा की थी. इसके तहत देश में 500 और 1000 रुपये के करेंसी नोट को रद्द करने का फैसला लिया गया था.
Supreme Court Hearing Against Demoetisation: सुप्रीम कोर्ट में बुधवार (9 नवंबर) को नोटबंदी (Demonetisation) मामले पर सुनवाई टल गई. 2016 में हुई नोटबंदी को गलत बताने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई फिलहाल के लिए टल गई है. सरकार की तरफ से पेश अटॉर्नी जनरल ने जवाब के लिए और समय देने का अनुरोध किया. कोर्ट ने सरकार के अनुरोध को मानते हुए मामले की सुनवाई के लिए 24 नवंबर की अगली डेट दी है.
दरअसल, मामले की सुनवाई कर रही 5 जजों की संविधान पीठ ने केंद्र से यह जानकारी मांगी है कि 500 और 1000 के नोट वापस लेने के फैसले से पहले क्या प्रक्रिया अपनाई गई? सरकार की ओर पेश अटॉर्नी जनरल ने इसका जवाब देने के लिए अदालत से कुछ समय की मांगा है.
सरकार ने 500 और 1000 रुपये के नोट किए थे रद्द
केंद्र सरकार ने साल 2016 में नोटबंदी की घोषणा की थी. इसके तहत देश में 500 और 1000 रुपये के करेंसी नोट को रद्द करने का फैसला लिया गया था. इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में की याचिकाएं दायर की गई थीं. सबसे पहले विवेक नाराण शर्मा ने केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले कोर्ट में याचिका दाखिल कर चुनौती दी थी. 2016 के बाद से नोटबंदी के खिलाफ 57 और याचिकाएं दर्ज कराई गईं.
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने पूछा
नोटबंदी को लेकर पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इसकी संवैधानिक वैधता को लेकर बड़ा कदम उठाया. जस्टिस सैयद अब्दुल नजीर की अगुआई वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक से नोटबंदी के फैसले पर जवाब मांगा. अदालत ने केंद्र और आरबीआई से 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को लेकर 9 नवंबर को होने वाली सुनवाई से पहले व्यापाक हलफनामा दाखिल करने को कहा था. इसके अलावा पीठ ने केंद्र को 7 नवंबर 2016 को आरबीआई के नाम लिखी चिट्ठी और अगले दिन नोटबंदी के फैसले से संबंधित फाइलों को तैयार रखने के लि भी कहा.
5 जजों की बेंच कर रही सुनवाई
इस पूरे मामले की सुनवाई जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच कर रही है. बेंच में जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन और जस्टिस बीवी नागरत्ना शामिल हैं.
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