नई दिल्ली: घूसखोरी में कमी आय़ी है. खास बात ये है कि 2005 के मुकाबले पुलिस और न्यायिक सेवाओं में घूसखोरी बड़े पैमाने पर घटी है. थिंकटैंक सीएमएस की ताजा रिपोर्ट में ये बातें सामने आयी है. संस्था की ये 11 वीं रिपोर्ट है.
21 फीसदी लोगों के मुताबिक कोई बदलाव नहीं
रिपोर्ट तैयार करने की प्रक्रिया में नोटबंदी के बाद इस साल जनवरी के दौरान 20 राज्यों में फोन पर एक सर्वे कराया गया. इसमें 56 फीसदी लोगों ने कहा कि नोटबंदी की वजह से भ्रष्टाचार मे कमी आयी है जबकि 12 फीसदी लोगों की राय इससे उलट रही. 21 फीसदी की मुताबिक कोई बदलाव नहीं हुआ जबकि 11 फीसदी लोगों ने अपनी राय नहीं दी.
CMS-Indian Corruption Study (CMS-ICS) के नतीजे 20 राज्यों के 3000 परिवारों के अनुभव के आधार पर है. ये अनुभव दस सार्वजनिक सेवाओं जैसे बिजली, राशन की दुकान, स्वास्थ्य सेवाएं, पुलिस, न्यायिक सेवाएं, पानी वगैरह पर आधारित हैं. वैसे रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि वर्ष चाहे 2005 हो या फिर 2017, घूस देने की वजह कमोबेश समान ही है. मसलन, तय रकम नहीं चुकाना, काम जल्दी करावाना, जरुरी कागजाद की कमी और सेवा देने वाले पर खासी निर्भरता शामिल है.
रिपोर्ट के मुताबिक...
- 2005 में जहां करीब 53 फीसदी परिवारों ने सार्वजनिक सेवाओं में पूरे साल में कम से कम एक बार भ्रष्ट्राचार के अनुभव की बात मानी थी, वहीं 2017 में ये संख्या घटकर 33 फीसदी के करीब रही गयी.
- 2005 मे जहां 73 फीसदी परिवारों का मानना था कि सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार बढ़ा है, वही 2017 में ऐसी राय सिर्फ 43 फीसदी परिवारों की है.
- 20 राज्यों की 10 सार्वजनिक सेवाओं में जहां 2005 के दौरान करीब 20,500 करोड़ रुपये बतौर घूस दिए गए, वही 2017 में ये रकम घटकर 6350 करोड़ रुपये रह गयी.
- 2005 में जहां बिहार में 74 फीसदी परिवार, जम्मू व कश्मीर में 69 फीसदी, ओडिशा में 60 फीसदी, राजस्थान में 59 फीसदी और तमिलनाडु में 59 फीसदी परिवारों ने सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार की बात दर्ज करायी थी, वहीं 2017 में कर्नाटक में 77 फीसदी, आंध्र प्रदेश में 74 फीसदी, तमिलनाडु में 68 फीसदी, महाराष्ट्र में 57 फीसदी, जम्मू व कश्मीर में 44 फीसदी और पंजाब में 42 परिवारों ने सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्ट्राचार की बात मानी.
- रिपोर्ट में शामिल 20 राज्यों में दिल्ली भी शामिल है. दिल्ली में करीब 49 फीसदी लोगों को लगता है कि बीते एक साल यानी 2016 से 2017 के दौरान यहां भ्रष्ट्राचार घटा है जबकि 25 फीसदी के मुताबिक इसमें बढ़त हुई है. दिलचस्प बात ये है कि 2005 में महज 6 फीसदी लोग ही बीते एक साल के दौरान भ्रष्ट्राचार घटने की बात मानते थे जबकि 73 फीसदी लोगों की राय बढ़ने की थी.
- ज्यादातर राज्यों में घूस की औसत रकम 100 से 500 रुपये के बीच है. हालांकि कुछ मामलों में ये कम से कम 10 रुपये और ज्यादा से ज्यादा 50 हजार रुपये भी रही है.
- रिपोर्ट में शामिल 20 राज्यों में 2005 के दौरान तीन सबसे कम भ्रष्ट्र राज्यों में केरल (35 फीसदी), महाराष्ट्र (39 फीसदी) और गुजरात (43 फीसदी) शामिल रहे, वहीं 2017 में इस सूची में हिमाचल प्रदेश (3 फीसदी) पहले स्थान पर, केरल (4 फीसदी) दूसरे स्थान पर औऱ छत्तीसगढ़ (13 फीसदी) के साथ तीसरे स्थान पर है.
- घूसखोरी के लिए सबसे ज्यादा बदनाम पुलिस महकमा है, जबकि उसके बाद जमीन-आवास, न्यायिक सेवा, टैक्स, और फिर राशन दुकान की व्यवस्था का नंबर आता है.
- आम सार्वजनिक सेवाओं पर निर्भरता अभी भी ऊंचे स्तर पर बनी हुई है. इन सेवाओं सबसे ऊपर बैंकिंग व्यवस्था है जबकि उसके बाद राशन दुकान की व्यवस्था, सरकारी अस्पताल और बिजली विभाग आते हैं.