CJI Ramana: भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन. वी. रमण ने शनिवार को कहा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है कि लोग महसूस करें कि उनके अधिकारों और सम्मान को मान्यता दी गई है और उन्हें संरक्षित किया गया है. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि न्याय से इनकार करने से अंतत: अराजकता फैलेगी.


सीजेआई ने श्रीनगर में एक समारोह को संबोधित करते हुए वकीलों और न्यायाधीशों से वादियों के लिए अनुकूल माहौल बनाने का आग्रह किया, जो अक्सर ‘बहुत अधिक मनोवैज्ञानिक दबाव में’ होते हैं. उन्होंने अफसोस जताया कि भारत में न्याय प्रदान करने का तंत्र बहुत ‘जटिल और महंगा’ है और देश अदालतों को समावेशी और सुलभ बनाने में बहुत पीछे है.


प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘एक स्वस्थ लोकतंत्र के कामकाज के लिए, यह जरूरी है कि लोग महसूस करें कि उनके अधिकार और सम्मान सुरक्षित और मान्यता प्राप्त हैं. विवादों का शीघ्र निपटारा एक स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान है.’’


उन्होंने कहा, ‘‘न्याय से इनकार अंततः अराजकता की ओर ले जाएगा. जल्द ही न्यायपालिका अस्थिर हो जाएगी क्योंकि लोग अतिरिक्त न्यायिक तंत्र की तलाश करेंगे.’’ उन्होंने कहा, ‘‘शांति तभी कायम होगी, जब लोगों की गरिमा और अधिकारों को मान्यता दी जाएगी और उन्हें संरक्षित किया जाएगा.’’


न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि भारत में अदालतों के पास अधिकारों के अधिनिर्णय और संविधान की आकांक्षाओं को बनाए रखने का संवैधानिक कर्तव्य है. उन्होंने कहा, ‘‘कानून के शासन और मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है- सभी को त्वरित और किफायती न्याय प्रदान करने में औपचारिक न्याय प्रणाली की अक्षमता. भारत में न्याय वितरण तंत्र बहुत जटिल और महंगा है.’’


उन्होंने कहा, ‘‘प्रौद्योगिकी न्यायपालिका के लिए सशक्त सहायक की भूमिका निभा रही है. अब, आभासी अदालतें समय, लागत और दूरी को कम करके पहुंच के अंतराल को पाट रही हैं. लेकिन भारत जैसे देश में, जहां एक विशाल डिजिटल विभाजन अब भी मौजूद है, तकनीकी नवाचारों की पूरी क्षमता के दोहन के लिए बहुत कुछ किये जाने की जरूरत है.’’


सीजेआईने कहा, ‘‘बुनियादी ढांचे की समस्याओं को हल करना मेरे दिल के बहुत करीब है. मैंने बुनियादी ढांचे के विकास और आधुनिकीकरण की आवश्यकता पर लगातार जोर दिया है. दुख की बात है कि स्वतंत्रता के बाद, आधुनिक भारत की बढ़ती जरूरतों की पूर्ति के लिए न्यायिक बुनियादी ढांचे में बदलाव नहीं किया गया है.’’


उन्होंने कहा, ‘‘हम अपनी अदालतों को समावेशी और सुलभ बनाने में बहुत पीछे हैं. अगर हम इस पर तत्काल ध्यान नहीं देते हैं, तो न्याय तक पहुंच का संवैधानिक आदर्श विफल हो जाएगा.’’ उन्होंने कहा कि जिला अदालतें न्यायपालिका की नींव हैं. उन्होंने कहा, ‘‘नींव मजबूत होने पर ही पूरी व्यवस्था फल-फूल सकती है. जैसा कि मैंने पहले उल्लेख किया है, देश भर में न्यायिक बुनियादी ढांचे की स्थिति संतोषजनक नहीं है. अदालतें किराए के भवनों से और दयनीय परिस्थितियों में चल रही हैं.’’


मुख्य न्यायाधीश ने अपने 20 मिनट से अधिक के भाषण की शुरुआत कवि अली जवाद जैदी के इस प्रसिद्ध रचना के साथ की-


‘‘मुद्दतों बाद जो आया हूं इस वादी में,


एक नया हुस्न, नया रंग नजर आता है.’’


सीजेआई ने कहा, ‘‘मुझे इस स्वर्ग में कई बार आने का सौभाग्य मिला है, लेकिन हर बार मैं इसकी सुंदरता से चकित हो जाता हूं और इसके आतिथ्य से हिल जाता हूं. यह एक ऐसी भूमि है जहां चार मौसमों का अनुभव होता है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘यहां के लोगों की दया और कश्मीर की समृद्ध संस्कृति, इस खूबसूरत भूमि पर आने वाली हर आत्मा को बदल देती है.’’


सीजेआई ने कहा, ‘‘एक अन्य पहलू जिस पर मैं प्रकाश डालता रहता हूं, वह है रिक्तियों को भरने की आवश्यकता. जिला न्यायपालिका में 22 प्रतिशत पद अब भी खाली पड़े हैं. इन पदों को भरने के लिए तुरंत कदम उठाए जाने चाहिए.’’ उन्होंने कहा, ‘‘सभी न्यायाधीशों के लिए सुरक्षा और आवास प्रदान करने के लिए भी उचित कदम उठाए जाने की आवश्यकता है.’’मुख्य न्यायाधीश रमण ने कहा कि न्याय को हकीकत में बदलने के लिए न्यायाधीशों और वकीलों को कड़ी मेहनत करने की शपथ लेनी चाहिए.


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