नई दिल्ली: पूर्वी लद्दाख के जिस डेपसांग-प्लेन्स इलाके में चीनी सेना भारतीय सैनिकों की पेट्रोलिंग में बाधा डाल रही है, वो भारत-चीन सीमा के सामरिक दर्रे, काराकोरम पास के बेहद करीब का इलाका है. इसी डेपसांग प्लेन्स में वर्ष 2013 में भी चीन की पीएलए सेना ने करीब 25 दिन तक अपने तंबू गाड़ लिए थे, जिससे फेसऑफ की स्थिती बन गई थी.


जीवन नाला और रकी नाला के बीच में पांच पेट्रोलिंग प्वाइंट हैं


जानकारी के मुताबिक, डीएसडीबीओ यानि दुरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी रोड इसी डेपसांग प्लेन के करीब से होकर जाती है. ये जगह काराकोरम पास(दर्रे) के करीब है और  यहां से दौलत बेग ओल्डी की दूरी 30 किलोमीटर की है. इस डेपसांग प्लेन में कुल पांच पेट्रोलिंग प्वाइंट (पीपी) हैं जहां चीनी सेना भारतीय सैनिकों को गश्त करने से लगातार रोक रही है. दरअसल, यहां एक वाई-जंक्शन बनता है, जो बुर्तसे से कुछ किलोमीटर पर है. उसी से सटे दो नालों जीवन नाला और रकी नाला के बीच में ये पांच पेट्रोलिंग प्वाइंट हैं. ये पेट्रोलिंग प्वाइंट पीपी-10, 11, 11ए, 12 और 13 हैं.


इन पांचों पेट्रोलिंग प्वाइंट पर चीनी सेना गश्त के दौरान अड़ंगा लगा रही है. खबर है कि चीनी सेना ने डेपसांग प्लेन के करीब अपने इलाके में हेवी-मोबिलाइजेशन किया है. इसके तहत बड़ी तादाद में सैनिक, गाड़ियां और स्पेशल एक्यूपमेंट इकठ्ठा किया है.


साफ है कि गलवान घाटी, फिंगर-एरिया, पैंगोंग त्सो लेक और गोगरा (हॉट स्प्रिंग) के बाद पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन की सेनाओं के बीच ये पांचवा फ्लैस-पॉइंट यानि विवादित इलाका है.


एलएसी को पश्चिम की तरफ धकेलना चाहती है चीनी सेना?


ऐसा लगता है कि चीनी सेना एलएसी यानि लाइन ऑफ एक्चयुल कंट्रोल को पश्चिम की तरफ धकेलना चाहती है ताकि डेपसांग प्लेन्स में कुछ इलाकों पर अपना कब्जा जमा लिया जाए.


इसी डेपसांग प्लेन्स में साल 2013 में भी चीनी सेना अपने टेंट गाड़कर बैठ गई थी. उस दौरान दोनों देश की सेनाओं के बीच फेसऑफ की स्थिति बन गई थी, क्योंकि भारतीय सेना ने भी अपना कैंप कुछ दूरी पर जमा लिया था. उस वक्त उच्च स्तर के राजनीतिक और राजनयिक दखल के बाद ही फेसऑफ खत्म हुआ था और दोनों देश की सेनाएं पीछे हटी थीं. करीब 25 दिन बाद फेसऑफ खत्म हुआ था.


2013 के फेसऑफ के बाद IAF ने डीबीओ में बंद पड़ी हवाई पट्टी शुरू की थी


इस फेसऑफ के करीब चार महीने बाद ही भारतीय वायुसेना ने डीबीओ में सालों से बंद पड़ी अपनी हवाई पट्टी को फिर से शुरू किया था. उस दौरान वायुसेना ने अपने मिलिट्री ट्रांसपोर्ट  एयरक्राफ्ट, सी-130जे सुपर हरक्यूलिस को यहां पर लैंडिंग कर दुनिया की सबसे उंची हवाई पट्टी का खिताब हासिल किया था. ये हवाई पट्टी '62 के युद्ध के दौरान बनाई गई थी. लेकिन कुछ साल बाद ही इस इलाके में भूकंप आने के बाद ये क्षतिग्रस्त हो गई थी. इसके बाद यहां भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर तो ऑपरेशन्स करते थे लेकिन ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट की लैंडिंग बंद कर दी गई थी. अप्रैल 2013 के फेसऑफ के चार महीने बाद लेकिन यहां इस हवाई पट्टी का मालवाहक विमानों के लिए तैयार कर लिया गया.


पूर्व एयर वाइस मार्शल मनमोहन बहादुर चेतक हेलीकॉप्टर्स की लैंडिंग कराते थे


वायुसेना के पूर्व एयर वाइस मार्शल मनमोहन बहादुर ने खुद अपनी साल 1980 की फ्लाईट लॉगबुक साझा करते हुए कहा कि वे तभी से डीबीओ और बुर्तसे में अपनी चेतक हेलीकॉप्टर्स की लैंडिंग कराते थे. ऐसे में चीन द्वारा एलएसी को पश्चिम की तरफ खिसकना सरासर गलत है.


डीबीओ हवाई पट्टी बनने से सैनिक और सैन्य साजो सामान को इलाके तक पहुंचाने में काफी मदद मिलती है. डीबीओ रोड और डीबीओ हवाई पट्टी से सैनिकों की मूवमेंट काफी तेज हो गई है.


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