दिल्ली: फंड विवाद को लेकर दिल्ली सरकार और दिल्ली नगर निगम में ठनी हुई है. इसी कड़ी में गुरुवार को दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने एमसीडी अस्पतालों के स्वास्थ्य कर्मियों को देरी से वेतन देने के मुद्दे पर एमसीडी के तीनों मेयर को चिट्ठी लिखकर उनपर झूठे दावे करने और राजनीति करने का आरोप लगाया है. दरअसल, एमसीडी के तीनों मेयर ने सीएम आवास के सामने विरोध प्रदर्शन किया था और कहा था कि दिल्ली सरकार की तरफ से एमसीडी को बड़ी राशि का भुगतान करना है.


तीनो मेयर के इस दावे पर पलटवार करते हुए डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने दावा किया कि पांचवें दिल्ली वित्त आयोग के अनुसार दिल्ली सरकार ने न केवल एमसीडी को बकाया राशि का भुगतान किया है. बल्कि एमसीडी के ऊपर दिल्ली सरकार का लोन का पैसा बकाया है. रिकॉर्ड के आधार पर एमसीडी के पास दिल्ली सरकार का 6008 करोड़ रुपये का लोन बकाया है. जबकि दिल्ली जल बोर्ड का एमसीडी के ऊपर 2596 करोड़ रुपये बकाया भी है. इसलिए एमसीडी को दिल्ली सरकार को 8600 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान करना है.


एमसीडी अस्पतालों के डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मियों के वेतन में देरी मामले से मुझे बहुत पीड़ा हुई- मनीष सिसोदिया


महापौरों को लिखे पत्र में मनीष सिसोदिया ने कहा कि एमसीडी अस्पतालों के डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मियों के वेतन में देरी किए जाने संबंधी आपके कार्यों से मुझे बहुत पीड़ा और निराशा हुई है. आपके कार्यों से स्पष्ट है कि एमसीडी के उपलब्ध प्रशासनिक विकल्पों का उपयोग करके मामले का व्यवहारिक समाधान खोजने के बजाय आप केवल झूठ बोलने और इस मुद्दे पर शर्मनाक राजनीति करने में रुचि रखते हैं.


इसके जरिए आपने हजारों स्वास्थ्य कर्मियों के परिवारों को दर्द पहुंचाया और जब पूरा देश कोरोना के खिलाफ लड़ाई में एकजुट हो गया था उस समयय में राष्ट्रीय राजधानी की प्रतिष्ठा को कम किया है. सिसोदिया ने तीनों मेयर से राजनीति न करने और एमसीडी में भ्रष्टाचार और वित्तीय कुप्रबंधन के वास्तविक मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया. साथ ही कहा कि एमसीडी केंद्र सरकार से बकाया 12,000 करोड़ रुपये की मांग करे, जो की दिल्ली के लोगों अधिकार है.


पत्र में उप-मुख्यमंत्री की ओर से दी गई जानकारी-


1- पिछले कई वर्षों में, न केवल दिल्ली सरकार ने एमसीडी को टैक्स के अपने उचित हिस्से का भुगतान किया है, बल्कि ऋण के रूप में एक बड़ी राशि का भुगतान भी किया है. 1 अप्रैल 2020 तक, शहरी विकास विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार, तीनों एमसीडी पर कुल 6,008 करोड़ रुपये का ऋण बकाया है. इसमें ईडीएमसी पर 1977 करोड़ रुपये, एनडीएमसी पर 3243 करोड़ रुपये और एसडीएमसी पर 788 करोड़ रुपये बकाया हैं.


2- हाल ही में दिल्ली के राज्य वित्त पर कैग की रिपोर्ट (ऑडिट रिपोर्ट नंबर 1) में यह नोट किया गया है कि 31 मार्च 2018 तक दिल्ली सरकार को तीनों एमसीडी से 3814.89 करोड़ रुपये तक के अवैतनिक ऋणों की एक बड़ी राशि देय है.


3- एमसीडी के दिल्ली सरकार को बकाया ऋण की भारी राशि के अलावा, तीन एमसीडी को सामूहिक रूप से 2596.32 करोड़ रुपये का बकाया दिल्ली जल बोर्ड को देना है।


4- वर्तमान वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए दिल्ली सरकार द्वारा एमसीडी को देय राशि के अनुसार, पांचवें दिल्ली वित्त आयोग की गणना के अनुसार, 26 अक्टूबर 2020 तक कुल 1965.91 करोड़ रुपये देय है, जिसमें से 1752.61 करोड़ रुपये का भुगतान पहले ही किया जा चुका है.


5- दिल्ली सरकार पर एमसीडी के कुल बकाया में से कोई राशि शेष नहीं है, यह तथ्य को कोर्ट ने भी बरकरार रखा है. दिल्ली उच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश के 12-06-2020 के आदेश में, यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि दिल्ली सरकार ने मई 2020 के महीने में उत्तरी दिल्ली नगर निगम को कानूनी रूप से देय राशि वितरित कर दी है.


चूंकि एनडीएमसी मार्च 2020 से डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों के वेतन का भुगतान करने में असमर्थ थी, इसलिए दिल्ली सरकार एनडीएमसी के छह अस्पतालों में कर्मचारियों के वेतन के लिए 8 करोड़ रुपये का अग्रिम भुगतान कर दिया, जिसे भविष्य के भुगतान में समायोजित किया जाएगा.


6- केंद्र सरकार ने एमसीडी को 12,000 करोड़ रुपये की देय राशि का भुगतान नहीं किया है. केन्द्र सरकार देश के सभी नगर निगमों को अनुदान प्रदान करती है. नगर निगमों को दी जाने वाली राशि की गणना उसकी आबादी के आधार पर की जाती है और उस शहर में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए 488 रुपये प्रति व्यक्ति नगर विकास निधि के रूप में दिए जाते हैं. कुल मिलाकर, दिल्ली एमसीडी को छोड़कर देश के सभी शहरों में नगरपालिका को फंड के रूप में 2,87,636 रुपये दिए जाते हैं.


केंद्र सरकार ने इस फंड से गाजियाबाद और गुरुग्राम को फंड तो दे दिया है, लेकिन दिल्ली में एमसीडी को कोई फंड नहीं मिलता है. दिल्ली की आबादी के आधार पर, यह पिछले दस वर्षों में करीब 12,000 करोड़ रुपये है, जो केंद्र द्वारा एमसीडी को प्रदान किया जाना चाहिए था. इस राशि में से एक रुपया भी एमसीडी ने केंद्र सरकार से क्यों नहीं मांगा?


7- एमसीडी की अपनी आंतरिक ऑडिट रिपोर्टों में तीनों एमसीडी के वित्तीय कुप्रबंधन को पूरा करने की ओर इशारा किया गया है. 2016-17 की इंटरनल ऑडिट रिपोर्ट में नॉर्थ एमसीडी के चीफ म्यूनिसिपल ऑडिटर ने 3,299 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितताएं पाईं. इसके अतिरिक्त, ऑडिट रिपोर्टों में बताया गया है कि दक्षिण एमसीडी के पास 10,000 करोड़ रुपये हैं. संपत्ति कर का 1,177 करोड़ बकाया है, लेकिन वसूली का कोई प्रयास नहीं है.


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