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Gita Gopinath: 3 साल में तीसरी सबसे बड़ी इकनॉमी बन जाएगा इंडिया? IMF की गीता गोपीनाथ ने कर दी ये भविष्यवाणी!
IMF की डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर गीता गोपीनाथ ने कहा कि भारत 2027 तक तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. इसके साथ ही उन्होंने भारत से रोजगार में वृद्धि करने की भी बात कही.
Gita Gopinath: अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भारत के लिए राहत की खबर है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund) की डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर ने भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी भविष्यवाणी की है. गीता गोपीनाथ ने कहा कि 2027 तक भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा. उन्होंने कहा कि बीते वित्त वर्ष में भारत की वृद्धि कहीं बेहतर है.
दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में डायमंड जुबली कॉन्फ्रेंस में वो बोलीं कि 2030 तक छह करोड़ से करीब 15 हजार करोड़ अतिरिक्त रोजगार पैदा करने होंगे. वहीं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वित्त वर्ष 2025 के लिए भारत के आर्थिक विकास के अनुमान को बढ़ा दिया है. पहले आईएमएफ ने अप्रैल में 6.8 फीसदी का अनुमान जताया था वहीं अब इसे बढ़ाकर 7 फीसदी कर दिया गया है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से की मुलाकात
गीता गोपीनाथ ने शनिवार (17 अगस्त) को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से भी मुलाकात की. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बातचीत में कहा कि भारत और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष आपसी सहयोग को मजबूत करने के लिए अतिरिक्त विकल्प तलाशने के लिए भी पूरी तरह तैयार है. गीता गोपीनाथ ने भारत-आईएमएफ के बीच मजबूत रिश्तों की भी प्रशंसा की.
रोजगार बढ़ाने पर दिया जोर
गीता गोपीनाथ ने कहा, 'भारत को आर्थिक वृद्धि के रास्ते पर आगे बढ़ने तथा देश में पर्याप्त रोजगार सृजन सुनिश्चित करने के लिए और अधिक सुधार करने की आवश्यकता होगी. यदि भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण भागीदार बनना चाहता है तो उसे आयात शुल्क कम करना होगा.'
गोपीनाथ ने कहा, 'विश्व ऐसे माहौल में है जहां व्यापार एकीकरण पर सवाल उठ रहे हैं और भारत के लिए वैश्विक व्यापार के लिए खुला रहना महत्वपूर्ण है. भारत में शुल्क दरें अन्य समकक्ष अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक हैं. यदि वह विश्व मंच पर एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनना चाहता है, तो उसे उन शुल्क को कम करना होगा. विकसित देश का दर्जा प्राप्त करना एक बड़ी आकांक्षा है, लेकिन यह अपने आप नहीं हो जाता. इसके लिए कई क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर निरंतर, सुसंगत प्रयास की आवश्यकता होती है.'
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