25 जनवरी 2023 यानी आज देश और भारत निर्वाचन आयोग 13 वां 'राष्ट्रीय मतदाता दिवस' मना रहा है. किसी भी लोकतांत्रिक देश में सरकार बनाने में मतदाताओं की सबसे बड़ी और अहम भूमिका होती है. मतदाता ही हैं जो अपनी कीमती वोट से किसी भी पार्टी को हर पांच साल के लिए सत्ता में ला सकते हैं और हटा भी सकते हैं.
साल 2018 में RTI से मिले आंकड़ों के अनुसार भारत की कुल आबादी में 4.85 करोड़ 18 से 19 साल के युवा हैं. हैरानी की बात ये है कि इनमें से 3.42 करोड़ मतदाताओं ने अपना नाम वोटर लिस्ट में शामिल ही नहीं किया है. जिसका मतलब है कि चुनाव आयोग उनका नाम वोटर लिस्ट में दर्ज करने में नाकाम रहा है.
आयोग के आंकड़ों के अनुसार देश में 18 से 19 आयु वर्ग की अनुमानित जनसंख्या का केवल 29.49 प्रतिशत (1.43 करोड़) 1 जनवरी, 2018 तक मतदाता सूची में पंजीकृत हैं.
क्यों हैं युवा मतदाता इतने जरूरी
साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में हर साल लगभग 2 करोड़ युवा 18 साल की उम्र को पार कर रहे हैं. ऐसे में उनका वोट इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इतनी बड़ी संख्या का मतदान किसी भी राजनीतिक दल की किस्मत पलट सकता है.
चुनाव आयोग के आंकड़ों की मानें तो साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान लगभग 10 करोड़ ऐसे मतदाता थे जिन्होंने पहली बार वोटिंग की थी.
भारत में मतदान कौन कर सकता है?
भारत का हर नागरिक जिनकी आयु 18 साल या इससे ज्यादा है, उसे वोट देने का अधिकार है और यह अधिकार भारत का संविधान देता है. देश के हर नागरिक को पांच साल के अंतराल में अपने देश, प्रदेश के साथ ही नगर निकाय व पंचायत के प्रतिनिधियों को चुनने का अधिकार है.
लेकिन ये भी जान लीजिए कि हमारे देश में वोटिंग करने की मतदान की न्यूनतम आयु 18 साल शुरू से नहीं थी. इससे पहले मतदान करने के लिए पंजीकरण की उम्र 21 साल थी.
राजीव गांधी के कार्यकाल को देश के कई महत्वपूर्ण निर्णयों के लिए याद किया जाता है. उनमें एक फैसला था कि 18 साल के युवाओं को वोट देने का अधिकार देना. 20 दिसंबर, 1988 को भारत में वोट करने वाले मतदाताओं की उम्र 21 साल से घटाकर 18 साल करने के लिए संसद में कानून को मंजूरी दी गई थी.
वोटर आईडी कितना जरूरी
भारत के किसी भी राज्य में मतदान करने के लिए मतदाता को अपना नाम वोटर लिस्ट में जोड़ना बेहद अहम है. उन्हें वोट देने के लिए वोटर आईडी कार्ड बनवाना ही होगा.
मतदाता को पहचान गुप्त रखने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर मतदाता के पास यह अधिकार है कि वह बिना किसी जोर-जबरदस्ती के तथा डर और दबाव के बिना अपना मतदान कर सके. मतदाता की पहचान को गुप्त रखना और उसे सुरक्षा मुहैया कराना निष्पक्ष निर्वाचन का एक अहम हिस्सा है. पहचान गुप्त रखने के अधिकार को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली हुई है.
क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय मतदाता दिवस
भारत में हर साल 25 जनवरी को 'राष्ट्रीय मतदाता दिवस' के रूप में मनाया जाता है. इस दिन को मनाने की शुरुआत चुनाव आयोग के 61 वें स्थापना साल की गई थी. 25 जनवरी 2011 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने 'राष्ट्रीय मतदाता दिवस' का शुभारंभ किया था.
जानें 25 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है मतदाता दिवस?
भारत 1947 में आजादी के तीन साल बाद 1950 में 26 जनवरी को संविधान लागू किया गया था. जिसके एक दिन पहले यानी 25 जनवरी 1950 को चुनाव आयोग की स्थापना हुई थी, जिसकी वजह से आज भारत के चुनाव आयोग के स्थापना दिवस के दिन ही राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाने का फैसला लिया गया. 25 जनवरी के दिन राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाने का मुख्य कारण है.