स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के पहले चरण के नतीजों को जारी कर दिया है. सबसे चिंता की बात ये है कि बाल कुपोषण के पैमाने पर कई राज्य या तो स्थिर रहे हैं या खराब हो गए हैं. पैरामीटर में शिशु और बच्चों की मृत्यु दर (5 साल से नीचे), चाइल्ड स्टंटिंग (अपनी उम्र में सामान्य लंबाई से कम), चाइल्ड वेस्टिंग (अपनी लंबाई के हिसाब से कम वजन) और कम वजन वाले बच्चों के अनुपात की हिस्सेदारी बढ़ी है. दूसरे शब्दों में कहें तो 2014 से 2019 के बीच पैदा हुए बच्चे (0-5 साल की उम्र) पहले के मुकाबले ज्यादा कुपोषित हैं.


बाल कुपोषण के मामले ने भारत की बढ़ाई चिंता


इससे पहले 2015-16 में जारी की गई राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की चौथी रिपोर्ट में देश के बच्चों में कुपोषण कम होने का खुलासा हुआ था. मगर सर्वेक्षण की मुख्य बात ये है कि 2015-2019 के बीच बाल कुपोषण आंकड़ों के पैमाने पर कई राज्यों में उलटफेर हुआ है. इसका मतलब हुआ कि स्थिति में सुधार के बजाए, कई राज्यों में या तो बाल कुपोषण में वृद्धि या बहुत धीमी दर से बढ़ोतरी हुई है. सर्वेक्षण का दूसरा चरण कोविड-19 महामारी की वजह से बाधित हो गया था. इसका नतीजा 2021 के मई महीने में आने की उम्मीद है. दूसरे चरण में कुछ बड़े राज्य जैसे मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब और झारखंड को शामिल किया जाएगा.


5वें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से खुलासा

स्वास्थ्य मोर्चे पर ताजा नतीजों से पता चलता है कि भारत की स्थिति पानी की उपलब्धता और स्वच्छता में सुधार के बावजूद 2015 से बदतर हुई है. विशेषज्ञों को आशंका है कि कोविड-19 के प्रतिकूल प्रभाव बाल कुपोषण के दूसरे चरण के आंकड़ों में ज्यादा खराब देखने को मिल सकते हैं. इस तरह के सर्वेक्षण का पांचवां और पहला चरण है. 17 राज्यों और पांच केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल कर 2019 की दूसरी छमाही में डेटा को इकट्ठा किया गया था.


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