चीन की तरफ से तैयार की गई दो कोविड-19 वैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की तरफ से मंजूरी देने के बावजूद यूएई और बहरीन समेत मध्य-पूर्व के अन्य देशों ने इसे अपने यहां पर मान्यता नहीं दी है. यूएई ने तो यहां तक ऐलान कर दिया है कि चीनी वैक्सीन लगाने वालों को देश में एंट्री नहीं दी जाएगी. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि एक तरफ जहां चीन दुनिया के करीब 80 देशों में अपनी वैक्सीन को दान या एक्सपोर्ट कर रहा है  उसके बावजूद उसकी वैक्सीन को लेकर विश्वसनीयता क्यों नहीं बन पाई?


दरअसल, हाल के हफ्तों में चीन में बनी कोविड वैक्सीन को लेकर सवाल खड़े हुए हैं. मई के महीने में सेशेल्स में कोरोना के मामलों में अचानक आई तेजी सुर्खियां बनी. यहां पर विश्व की तुलना में सबसे तेजी के साथ कोरोना के टीके लगाए और अधिकतर आबादी को या तो पहला या फिर वैक्सीन की दोनों डोज दे दी गई.


इनमें से अधिकतर लोगों ने चीन में बनी वैक्सीन सिनोफॉर्म की डोज लगाई थी. यहां की सरकार ने मई की शुरुआत में ही कहा कि जो कोरोना के जो नए केस आ रहे हैं उनमें से 37 फीसदी ऐसे लोगों हैं जिन्होंने वैक्सीन की डोज ले ली है.


उसके बाद से सऊदी अरब, बहरीन, यूएई और फिलिपिंस ने चीन की वैक्सीन के प्रभावोत्पादकता और इसकी मंजूरी पर चिंता जताई है. फिलिपिंस के राष्ट्रपति ने तो सिनोफार्म वैक्सीन लगाने की वजह से इसके प्रमोट करने को लेकर हो रही आलोचना के के चलते माफी तक मांगी. साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की मई के आखिर की एक रिपोर्ट में तो यहां तक कहा गया कि फिलिपिन्स के लोग कोरोना की वैक्सीन खासतौर से चीन की वैक्सीन को सुरक्षा और प्रभावोत्पाकता की वजह से नहीं लेना चाहते हैं.


हालांकि, सबसे ज्यादा गंभीर चिंता चीन की वैक्सीन पर सऊदी अरब ने जताई है. वह उन देशों में है जिन्होंने सिनोवाक और सिनोफार्म वैक्सीन को मंजूरी नहीं दी है. इसकी वजह से चीन के वैक्सीन पर निर्भर रहने वाले पाकिस्तान और अन्य देशों के लिए भारी चिंता बढ़ गई है. पाकिस्तान अब सऊदी अरब से बात कर इसका वैकल्पिक समाधान तलाशने में लगा हुई हैं.


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