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DETAIL: आरक्षण के इस 'आग' से कौन झुलसेगा?
नई दिल्ली: 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के लिए एक बड़ी मुसीबत खड़ी हो गई है. ये मुसीबत भी किसी विपक्षी ने नहीं बीजेपी से ही जुड़े उसके संगठन ने खड़ी की है. आरएसएस के प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने आरक्षण को लेकर बयान देकर ये आग एक बार फिर भड़का दी है. पूरा विपक्ष बीजेपी के खिलाफ खड़ा हो गया है और बीजेपी डैमेज कंट्रोल में जुटी है.
जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल के दौरान एक सवाल के जवाब में मनमोहन वैद्य ने कहा, 'आरक्षण के नाम पर सैकड़ों साल तक लोगों को अलग करके रखा गया, जिसे खत्म करने की जिम्मेदारी हमारी है इन्हें साथ लाने के लिए आरक्षण को खत्म करना होगा.आरक्षण देने से अलगाववाद को बढ़ावा मिलता है. आरक्षण के बजाय अवसर को बढ़ावा देना चाहिए.'
बयान पर मनमोहन वैद्य ने सफाई भी दी कि वो आरक्षण खत्म करने की नहीं आधार बदलने की बात कर रहे थे. लेकिन तब तक मनमोहन वैद्य के पिता और आरएएस के पूर्व प्रचारक एमजी वैद्य ने भी कह दिया कि आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए.
पूर्व प्रचार प्रमुख एमजी वैद्य ने कहा, 'एससी-एसटी के लिए आरक्षण की आवश्यकता है लेकिन बाकी जिन्हें आरक्षण मिल रहा है उन्हें इसका लाभ मिला है या नहीं इसके लिए एक निष्पक्ष कमेटी का गठन हो जो इसकी समीक्षा करे. कुछ जातियों को छोड़कर बाकी जातियों और समुदायों को मिलने वाले आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए.'
जिन पांच राज्यों में चुनाव है उनमें से सबसे अहम यूपी है. यूपी में 21 फीसदी दलित वोटर हैं. इनमें से 10 फीसदी गैर जाटव हैं वो बीजेपी के साथ हैं, जबकि ओबीसी 40 फीसदी के करीब हैं. इसमें से गैर यादव वोटर बीजेपी के साथ हैं. पंजाब में तो दलित वोटरों की तादाद 30 फीसदी के करीब है.
ऐसे में बीजेपी को डर सता रहा है कि मनमोहन का ये बयान उसके लिए दो राज्यों में मुश्किल साबित कर सकता है. हालांकि अब डैमैज कंट्रोल की कोशिश RSS की तरफ से भी की जा रही है. संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने कहा है कि संविधान में आऱक्षण की जो व्यवस्था की गई है, RSS उसका समर्थन करता है और इसमें किसी तरह के विवाद की जरूरत नहीं है.
आरएसएस है तो बीजेपी का मूल संगठन लेकिन दोनों में अंतर ये है कि बीजेपी जहां राजनीतिक पार्टी है वहीं आरएसएस एक गैर राजनीतिक संगठन, लेकिन आरोप लगते हैं कि बीजेपी की हर राजनीति आरएसएस से ही तय होती है.
देश में अभी आरक्षण को लेकर जो व्यवस्था लागू है उसके मुताबिक अनुसूचित जाति को 15 फीसदी, अनुसूचित जनजाति को 7.5 फीसदी और ओबीसी यानी पिछड़ों के लिए 27 फीसदी आरक्षण है. बाकी बची 50.5 फीसद नौकरियां सामान्य जातियों के लिए हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसद से ज्यादा आरक्षण देने पर रोक लगा रखी है वरना आरक्षण की सीमा बढ़ भी सकती थी. आरक्षण को लेकर राजनीतिक दल भले हाय तौबा मचा रहे हों, लेकिन खुद लोग क्या चाहते हैं ये भी कम महत्वपूर्ण नहीं है.
राजनीतिक पार्टियों को आरक्षण का विरोध करने पर वोट बैंक छिनने और हार का डर सता रहा है लेकिन सोशल मीडिया पर समर्थकों का एक गुट इस तरह की बातें भी कह रहा है कि बीजेपी ने अगर RSS के बयान का फिर विरोध किया तो वो बिहार की तरह यूपी में भी हार का मुंह देख सकती है.
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अवधेश कुमार, राजनीतिक विश्लेषक
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